सुषमा के स्नेहिल सृजन
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बेला जूही
बेला जूही
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देव घनाक्षरी
बेला जूही
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अलबेली उषा आई, सुनहरी छटा छाई,
हिम कण कंचन से,
चमके प्रथम प्रहर।
बेला जूही
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बेला जूही मदमस्त, महक बिखेर रही,
बागों में है खिले फूल,
देख ले ठहर-ठहर।
बेला जूही
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‘सुषमा’ सुहाए आग, शीत जरा दूर भाग,
चहुँओर घूम रही,
गाँव गली और शहर।
बेला जूही
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सनातनी मार्ग चल, मनुज तू आगे बढ़,
मंदिर अवध अब,
ध्वज है फहर-फहर।
”सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)
लेखिका
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