सुषमा के स्नेहिल सृजन
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बदल रहा इंसान रे
बदल रहा इंसान रे
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अपनों का अब साथ छोड़कर, छीन रहा मुस्कान रे।
धन दौलत के लालच में क्यों, बदल रहा इंसान रे।।
बदल रहा इंसान रे
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नेक काम जो हरदम करते, ईश्वर उनके पास हैं। मात-पिता को भेजे आश्रम, करते निज उपहास हैं।।
बदल रहा इंसान रे
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’सुषमा’ सुंदर भाव रखो तो, मिलता है वरदान रे। धन दौलत के लालच में क्यों, बदल रहा इंसान रे।।
बदल रहा इंसान रे
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बात-बात में झगड़ा करता, रहता मद में चूर है। जिनकी गोदी में खेला था, करता उनको दूर है।।
बदल रहा इंसान रे
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देता परिजन कष्ट बहुत क्यों, उनको ही संतान रे। धन दौलत के लालच में क्यों, बदल रहा इंसान रे।।
बदल रहा इंसान रे
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अंत समय में तड़पा दे जो, पुत्र नहीं वो काम का। ईश्वर मालिक एक सहारा, नाम रटें प्रभु नाम का।।
बदल रहा इंसान रे
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वाणी से क्यों तीर चुभाता, तोड़े सब अरमान रे। धन दौलत के लालच में क्यों, बदल रहा इंसान रे।। धन दौलत के लालच में क्यों, बदल रहा इंसान रे।।
”सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)
लेखिका
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