सुषमा के स्नेहिल सृजन
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भूमिपुत्र और शीत
नाचे मोर
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आग जलाकर मेड़ पर, ऊर्जा लें संचार।
शीतलहर से जूझते, भूमिपुत्र बनिहार।।
नाचे मोर
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हाड़ मांस का देह यह, काँपें सारी रात।
भूमिपुत्र की विवशता, देखें कौन बिसात
नाचे मोर
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शीतल बहे बयार जब, गरम वस्त्र दें दान।
दीन-दुखी के तन ढंकें, ‘सुषमा’ सोच महान
नाचे मोर
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फसल उगाकर खेत में, करते हैं उपकार।
कठिन परिश्रम साध कर, हमको दें उपहार
नाचे मोर
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श्रम से सींचें खेत जो, रखना उनका मान।
दाम फसल अच्छे मिले, पूरे हों अरमान।
”सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)
लेखिका
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