सुषमा के स्नेहिल सृजन

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गीत छंद-ताटक

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असुरक्षित नारी समाज की व्यथा   राह कौन सी जाऊँ मैं

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अपनी पीड़ा को हे भगवन, कैसे किसे दिखाऊँ मैं। पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

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मोहल्ले बाजारों में भी, अस्मत लूटी जाती है। अत्याचारी के हाथों से, गहरी पीड़ा पाती है।। काम वासना की नजरों से, कैसे कब बच पाऊँ मैं। पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

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दुखी बहुत ही मन होता है, नारी जब पीसी जाती। अंतर्मन तब विचलित होकर, बन आँसू धार बहाती।। कलुष वासना हृदय मिटे नर, शुभ-शुभ आस लगाऊँ मैं। पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

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क्रूर कल्पना दहला देता, विचलित मन को कर जाता। कब तक व्यथा सहेगी भारी, प्रश्न हृदय में उठ आता।। नारी के शुभ दामन से है, कैसे दाग मिटाऊँ मैं। पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

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अखबारों के पन्ने पढ़कर, टूट रहा धीरज सारा। अब तो भगवन! राह दिखा दो, ‘सुषमा’ जीवन हो प्यारा।। आस लिए वह जगती हर दिन, खबर सुखद बतलाऊँ मैं। पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

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पग-पग नारी सोच रही है, राह कौन सी जाऊँ मैं।।

 ”सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)

लेखिका 

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