सुषमा के स्नेहिल सृजन

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बजे  शहनाइयां

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आधार छंद-विधाता

बजे  शहनाइयां

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सजाए स्वप्न जो बचपन, वही अब रंग प्यारी है। चली ससुराल की गलियाँ, सजी डोली सवारी है।

बजे  शहनाइयां

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पराया धन कहा जग ने, मगर ‘सुषमा’ नहीं माने- जुड़ी हर आस बेटी की, नया संसार न्यारी है।।

बजे  शहनाइयां

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पिता के आँख से आँसू, छिपेगा आज अब कैसे। कठिन यह काम है भगवन, समंदर रोकना जैसे।

बजे  शहनाइयां

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बजे शहनाइयाँ घर में, चली बिटिया दुलारी है- लिपट माँ-बाप के काँधे, बहे जलधार हो वैसे।।

 ”सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)

लेखिका 

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