सुषमा के स्नेहिल सृजन

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बिन मौसम बारिश

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धरा पर जल धारा  जीवन सहारा

बिन मौसम बारिश

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आँगन में बूँद प्यारी, लगती है बड़ी न्यारी, छम-छम छम नाचे, बड़ा मन भाती है।

बिन मौसम बारिश

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विचित्र-विचित्र लीला, प्रकृति है दिखलाती, ऋतु बिन बरसात, कलियाँ खिलाती है

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अनजानी राहों पर, प्रियतम साथ हो तो, ‘सुषमा’ सजाए स्वप्न, नवगीत गाती है।

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धरा पर जल धारा, जीवन सहारा बन, मन के झंकृत तार, छेड़-छेड़ जाती है।

 ”सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)

लेखिका 

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