सुषमा के स्नेहिल सृजन
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झर..झर झरकर
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झर..झर झरकर झरना कहाते हैं
सुषमा के स्नेहिल सृजन
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आकार विचित्र लिए,बादलों के झुंड आए, पल-पल बदलती, आकृति दिखाते हैं।
सुषमा के स्नेहिल सृजन
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मेघमाला दृश्य बना,अंधेरा छाया है घना, अंबुधर अंबर में, मेघ को सजाते हैं।
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“सुषमा”पहाड़ी बीच,कलकल छल-छल, झर-झर झरकर, झरना कहाते हैं।
सुषमा के स्नेहिल सृजन
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बरखा का रूप धर,धरा में उतर कर, वारिधि से मिलने को, नदिया बहाते हैं।
”सुषमा प्रेम पटेल (रायपुर छ.ग.)
लेखिका
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