लेख
Trending

राजस्थान में पीकेसीईआरसीपी परियोजना का साकार होता सपना


डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

राजस्थान और मध्यप्रदेश के बीच पार्वती, कालीसिंध, चंबल ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट यानी पीकेसीईआरसीपी के एमओयू के एक साल से भी कम समय में एमओए (मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट) में तब्दील होना राजनीतिक इच्छाशक्ति के रूप में देखा जाना चाहिए। देश में नदी जोड़ो परियोजना का सपना देखा गया था जो अब धरातल पर उतर रहा है। राजस्थान जैसे पानी की किल्लत से जूझते प्रदेश में पीकेसीईआरसीपी खासतौर पर पूर्वी राजस्थान के लिए गंगा अवतरण से कम नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भजनलाल शर्मा सरकार के एक साल पूरे होने के अवसर पर इस परियोजना के प्रथम चरण के अंतर्गत कालीसिंध नदी पर 1069 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित नवनेरा बैराज का लोकार्पण किया। परियोजना के प्रथम चरण में पेयजल के लिए कूल नदी पर रामगढ़ बैराज, पार्वती नदी पर महलपुर बैराज और नवनेरा बांध में संग्रहित जल के उपयोग हेतु नवनेरा-गलवा-बीसलपुर-ईसरदा (एनजीबीआई) लिंक परियोजना के तीन पैकेज के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया। इन पैकेज में 9416.70 करोड़ रुपए की लागत से नवनेरा बैराज से गलवा बांध होते हुए बीसलपुर व ईसरदा बांध तक जरूरत के अनुसार जल प्रत्यावर्तन के लिए नहर तंत्र, पम्पिंग स्टेशन एवं पाइपलाइन का निर्माण कार्य किया जाएगा।

संशोधित पार्वती-कालीसिंध चंबल (एकीकृत ईआरसीपी) परियोजना पूरी होने पर राजस्थान के 21 जिलों में रहने वाले लगभग सवा तीन करोड़ लोगों को सुलभ पेयजल की उपलब्धता के साथ साथ लगभग ढाई लाख हेक्टेयर नये क्षेत्र में सिंचाई तथा लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हेतु अतिरिक्त पानी की व्यवस्था हो सकेगी। लाभान्वित जिलों में झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, गंगापुर सिटी, दौसा, करौली, धौलपुर, भरतपुर, डीग, अलवर, खैरतल-तिजारा, कोटपूतली-बहरोड़, जयपुर शहर, जयपुर ग्रामीण, दूदू, अजमेर, ब्यावर और केकड़ी शामिल है।

राजनीतिक आलोचना-प्रत्यालोचना को अलग कर दिया जाए तो पीकेसीईआरसीपी परियोजना के क्रियान्वयन की शुरुआत राजस्थान जैसे प्रदेश के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। पीकेसीईआरसीपी से पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के नागरिकों और किसानों को सीधा लाभ मिलेगा। इससे प्रदेश में पेयजल, सिंचाई के लिए पानी, औद्योगिक विकास, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर और इसी तरह के अनेक फायदे होने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की गारन्टी और मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा द्वारा कार्यभार संभालने के एक माह से भी कम समय में राजस्थान के लिए जीवनदायी इस परियोजना पर सहमति बनवाना और एमओयू कर क्रियान्वयन के स्तर पर लाना अपने आप में बड़ी बात थी और आज उससे भी बड़ी बात एमओयू को एमओए में बदलना है।

करीब 21 साल पुराना सपना पार्वती-कालीसिंध-चंबल इस्टर्न राजस्थान केनाल परियोजना को लेकर केन्द्र सरकार, राजस्थान व मध्यप्रदेश के बीच संपन्न करार के साथ ही साकार होने लगा है। राजस्थान नहर के बाद यह अपने आप में सबसे बड़ा प्रोजेक्ट होगा जिससे 13 जिलों के रहवासियों की सभी तरह की पानी की जरुरत पूरी हो सकेगी। इसके साथ यह भी महत्वपूर्ण होगा कि हर साल बरसात सीजन में बाढ़ के कारण जन-धन और फसलों की बर्बादी का कारण बनने वाला यह पानी पानी की समस्या से जूझ रहे प्रदेशवासियों वासियों के काम आ सकेगा। बेकार बह जाने वाला पानी संग्रहित होगा, धरती, यहां के निवासियों और मवेशियों की प्यास बुझाने के काम आ सकेगा। इस परियोजना में राजस्थान को 4103 एमसीएम पानी मिलेगा वहीं, मध्यप्रदेश को 3000 एमसीएम पानी मिलेगा। सात साल बाद इस परियोजना के पूरे होने के बाद जहा प्रदेश की 3.25 करोड़ आबादी की पानी की जरूरत पूरी होगी वहीं करीब ढाई लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सकेगा। सही मायने में कहा जाए तो प्रकृति की अनमोल धरोहर पानी के आने से भविष्य में ना तो बाढ़ से जूझना पड़ेगा और ना ही सूखे के लिए ऊपर वाले को दोष देना पड़ेगा।

दरअसल, नदियों के बर्बाद होते पानी का सही उपयोग तय करने के लिए 1999 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना आरंभ की थी। यह योजना सिरे से चढ़ती उससे पहले ही 2004 में नई सरकार आते ही इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इसके बाद 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को जारी रखने के केन्द्र सरकार को निर्देश दिए। राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण द्वारा 44605 करोड़ की लागत से केन-बेतवा लिंक परियोजना पर काम किया जा रहा है। गंगानदी पर करीब एक हजार बांध हैं तो गोदावरी पर 350 के आसपास बांध है। इन बांधों पर पानी को सहेजते हुए नदियों के पानी को अनुपयोगी व बर्बादी का कारण बनने से बचाने के स्थान पर क्षेत्रों में पानी की समस्या का समाधान किया जाता है। मोटे रूप से देखा जाए तो नदियों को जोड़ने से पानी की बर्बादी यानी बाढ़ के कारण तबाही व समुद्र में समाहित होने से बचा कर पानी की समस्या के समाधान के लिए तो किया ही जा सकता है। वहीं, सूखे की समस्या का हल, खेती के लिए पानी की उपलब्धता और लोगों के पेयजल की समस्या का समाधान संभव है। राजस्थान नहर इसका जीता जागता उदाहरण है जिससे मरू प्रदेश और सर्वाधिक उपजाऊ और उत्पादक हिस्सा बनने के साथ ही समग्र विकास का माध्यम बन गई है।

जहां तक पार्वती, कालीसिंध, चंबल ईस्टर्न राजस्थान केनाल परियोजना का प्रश्न है, यह राजस्थान और मध्यप्रदेश सरकार व केन्द्र से सहमति नहीं बनने के कारण लंबे समय से आगे नहीं बढ़ पा रही थी। नई सरकार के गठन के बाद मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा की पहल और केन्द्र व मध्यप्रदेश सरकार के सहयोग से यह परियोजना धरातल पर उतरने की स्थिति में आ गई है। यदि निर्धारित सात साल में यह परियोजना धरातल पर आ जाती है, जिस पर आज की सरकार की प्रतिबद्धता को देखते हुए संदेह का कोई कारण नहीं दिखता, राजस्थान और मध्यप्रदेश दोनों की तस्वीर बदल जाएगी। राजस्थान के 21 जिले और मध्यप्रदेश के 13 जिले इस परियोजना से लाभान्वित होंगे। बैराज, कृत्रिम जलाशयों और बांध निर्माण से 159 बांधों को भरा जा सकेगा। बीसलपुर की क्षमता भी बढ़ेगी तो रामगढ़ बांध के भी भरने के सपना भी पूरा हो सकेगा। सबसे बड़ी बात कि चंबल और उसकी सहायक नदियों के जुड़ने से बाढ़ के कारण विनाश का कारण बनने वाले पानी का सदुपयोग हो सकेगा। पेयजल से लेकर खेती किसानी और उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के नए अवसर विकसित होंगे। यह सब सरकार की इच्छा शक्ति और उसे समय पर अमली जामा पहनाने से ही संभव हो सकेगा। माना जाना चाहिए कि आने वाले समय में पीकेसीईआरसीपी के कार्य को और तेज गति मिलेगी।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

DIwali Offer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
नई मारुति की XL7 कार ! नज़र डाले इसके शानदार फीचर्स पे जेनीलिया के कुछ क्लासिक इयररिंग्स जो हर लड़की के पास होने चाहिए क्या ब्यूटी प्रोडक्ट से बढ़ता है फर्टिलिटी क्षमता को खतरा? ऐसी भी कुछ जगह है जहां उनका जाना मुश्किल है