लेख
Trending

डॉलर का दबदबा और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था

– राकेश दुबे

यह संकेत कहीं से भी अच्छे नहीं कहे जा सकते, अमेरिका के साथ भारत की कारोबारी स्थिति अप्रत्याशित है और देश के बड़े अर्थशास्त्री संभावित दिक्कतों से निपटने की तैयारी कर रहे हैं। वस्तुतःअमेरिका के साथी और विरोधी दोनों डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल से निपटने की तैयारी कर रहे हैं। इस बात के साफ संकेत हैं कि उनका दूसरा कार्यकाल मौजूदा विश्व व्यवस्था के लिए उनके पहले कार्यकाल की तुलना में अधिक अप्रत्याशित और शायद अधिक उथल-पुथल भरा हो सकता है और भारत भी इससे सुरक्षित नहीं रहेगा।

संबंधित विभाग ने अमेरिका के साथ भारत की कारोबारी स्थिति का आकलन किया और संभावित दिक्कतों से निपटने की तैयारी कर रहे हैं। सबसे पहले शुल्क में कमी का मामला बनता है, लेकिन भारत को अपनी स्थिति प्रस्तुत करने के लिए अमेरिकी प्रतिष्ठान के साथ अधिक सक्रियता से संबद्धता दिखानी होगी। यह दिलचस्प बात है कि ट्रंप ने हाल ही में ब्रिक्स देशों को धमकी दी है कि अगर उन्होंने ब्रिक्स मुद्रा बनाई या अमेरिकी डॉलर के स्थान पर किसी अन्य मुद्रा को तरजीह दी तो वह उन पर 100 फीसदी शुल्क लगा देंगे। ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं और इसका विस्तार करके अन्य देशों को स्थान दिया जा सकता है। यह स्पष्ट नहीं है कि किस बात ने उन्हें यह टिप्पणी करने के लिए विवश किया लेकिन इससे मुद्रा बाजार में अस्थिरता आई।

पहली बात, फिलहाल जैसे हालात हैं उनमें अमेरिकी डॉलर को कोई खतरा नहीं दिखता। बैंक ऑफ इंटरनैशनल सेटलमेंट्स के 2022 के नोट के मुताबिक 90 प्रतिशत मुद्रा व्यापार में डॉलर शामिल था। करीब 60 प्रतिशत विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में हैं। दूसरा, किसी मुद्रा को आरक्षित मुद्रा का दर्जा देने की इच्छा का कोई खास अर्थ नहीं है। इसके अलावा अब तक संभावित ब्रिक्स मुद्रा का आकार और उसकी कार्यविधि को लेकर भी कुछ पता नहीं है। ट्रंप शायद ब्रिक्स के सदस्य देशों को हतोत्साहित करना चाह रहे थे। खासतौर पर वह चीन को मुद्रा परियोजना आगे ले जाने देने से रोकना चाहते थे।

चाहे जो भी हो भारत को ऐसे प्रयासों से बचना चाहिए। चूंकि चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसलिए योजना में उसका कद भी बड़ा होगा। हालांकि यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि इसे कैसे तैयार किया गया है। तीसरी बात, कुछ वैश्विक व्यापार समय के साथ युआन में स्थानांतरित हो सकता है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है और उसके व्यापक कारोबारी संबंध हैं। बहरहाल, ऐसा सीमित दायरे में होगा क्योंकि चीन का पूंजी पर तगड़ा नियंत्रण है। मुद्रा भंडार की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के आंकड़ों के अनुसार 2024 की दूसरी तिमाही में चीनी मुद्रा में करीब 245 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा रखी गई थी जबकि अमेरिकी डॉलर वाला मुद्रा भंडार 6.6 लाख करोड़ डॉलर था। विभिन्न देश कारोबारी लेनदेन की सुगमता और वित्तीय बाजारों की गहराई को देखेंगे जो डॉलर के पक्ष में है।

यह बात ध्यान देने लायक है कि अगर डॉलर की स्थिति समय के साथ कमजोर पड़ती है तो इसकी वजह अमेरिकी राजनीति होगी। डॉलर के दबदबे वाली अंतरराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना कुछ देशों पर विकल्प तलाशने का दबाव बनाएगी। इतना ही नहीं ट्रंप द्वारा उच्च कर को प्राथमिकता और व्यापार घाटे को समाप्त करने की कोशिश डॉलर के खिलाफ जा सकती है।

अमेरिकी व्यापार घाटा शेष विश्व को डॉलर मुहैया कराती है। अगर आपूर्ति में उल्लेखनीय कमी आती है तो दुनिया विकल्प तलाशने पर विचार करेगी। भारत की बात करें तो गिफ्ट सिटी की स्थापना कुछ वित्तीय सेवाओं को देश में लाएगी और कंपनियों की लागत में कमी आएगी। ऐसे में निकट भविष्य में डॉलर पर निर्भरता कम होती नहीं नजर आती। अगर युआन अधिक लोकप्रिय होता है तो भी डॉलर भारत की प्राथमिकता वाली मुद्रा बना रहेगा। डॉलर की पुरानी मजबूती के अलावा भारत के हित भी चीन के बजाय अमेरिका से अधिक जुड़े हैं।

DIwali Offer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की अध्यक्षता में सभी योजनाओं से मिल रहा लाभ Food Item जो आपके रास्ते में जरूर होने चाहिए बॉलीवुड के अभिनेत्रियां जिन्होंने क्रिकेटर से को शादी भारत में 5 ऐसे जगह जहा कर सकते है हनीमुन का प्लान, वो भी सस्ते में