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डिप्रेशन, स्ट्रेस से परेशान मेडिकल छात्र, इन डॉक्टरों को बचाने एनएमसी करेगा 15 जरूरी उपाय ?

मेडिकल स्टूडेंट्स के मानसिक स्वास्थ्य और उनकी भलाई के लिए बनी नैशनल टास्क फोर्स ने अपनी रिपोर्ट नैशनल मेडिकल कमिशन को सौंप दी है। रिपोर्ट के अनुसार, मेडिकल छात्रों पर डिप्रेशन, एंग्जाइटी और स्ट्रेस भारी पड़ रहा है। मेडिकल स्टूडेंट्स की आत्महत्या और उन पर हावी होते तनाव को लेकर गंभीरता दिखाते हुए एनएमसी ने देश भर के मेडिकल संस्थानों के प्रफेसर और मेडिकल एक्सपर्ट्स की 15 सदस्यों वाली नैशनल टास्क फोर्स बनाई थी। इसने ऑनलाइन सर्वे के जरिए करीब 38 हजार स्टूडेंट्स, फैकल्टी मेंबर्स से फीडबैक लिया। विशेषज्ञों से लेकर मेडिकल कॉलेज से जुड़े स्टाफ के सदस्यों से बात कर समस्या की तह तक जाने की कोशिश की।

कमिटी के सदस्य डॉ. योगेंद्र मलिक का कहना है कि अलग-अलग स्टडीज में जो कॉमन बात निकलकर सामने आई है, उनमें मेडिकल छात्रों में डिप्रेशन, एंग्जाइटी और स्ट्रेस उन पर भारी नजर आया है। टास्क फोर्स ने कई बड़ी सिफारिशें की हैं, जिनमें एक वीकली ऑफ, पांच दिन 10-10 घंटे की ड्यूटी, 10 दिन के लिए फैमिली के पास जाने की छुट्टी, सप्लीमेंटरी एग्जाम को फिर से शुरू करना, एग्जाम रिजल्ट रोल नंबर से दिया जाए, जानबूझकर स्टूडेंट्स को सेमेस्टर में फेल करने वाले कॉलेजों पर भारी जुर्माना, ई-कंप्लेंट पोर्टल जैसे अहम सुझाव दिए हैं।

50% से ज्यादा एंग्जाइटी के शिकार

भारत में किसी मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए बेहद कड़ी प्रतियोगी परीक्षा से गुजरना पड़ता है। उसके बाद अच्छा डॉक्टर बनने, परिवार की उम्मीदों का बोझ, हॉस्टल, एग्जाम, रैंगिंग का डर जैसे मुद्दे छात्रों पर हावी रहते हैं। साउथ इंडिया की एक रीजनल स्टडी कहती है कि 37% मेडिकल छात्र डिप्रेशन, 51% एंग्जाइटी और 33% स्ट्रेस से जूझ रहे हैं।

वहीं, नॉर्थ इंडिया की स्टडी का जिक्र करते हुए टास्क फोर्स ने कहा है कि 21.5% छात्रों में डिप्रेसिव डिसऑर्डर और 7.6% में मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर देखा गया। डिप्रेशन का प्रसार 8.5-71% तक है। 3882 छात्रों पर हुई 16 स्टडीज में 39% मेडिकल छात्रों में डिप्रेशन की समस्या पाई गई। वहीं, 686 छात्रों पर हुई 4 स्टडीज में 35% में एंग्जाइटी और 5354 छात्रों को लेकर हुई 28 स्टडीज में करीब 51% पीड़ित तनाव में पाए गए।

हर साल बड़ी संख्या में आत्महत्या कर रहे मेडिकल स्टूडेंट्स?

मानसिक बीमारी के लिए सहायता लेने के बारे में झिझक, व्यक्तित्व में कमी महसूस करना, अनौपचारिक परामर्श को प्राथमिकता, गोपनीयता की चिंता, जागरूकता की कमी, अनुचित हस्तक्षेप का डर, समय की कमी, उपचार तक सुविधाजनक पहुंच की कमी, समस्याओं का स्वयं प्रबंधन करने की प्राथमिकता देना शामिल है।

नैशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो और अन्य स्रोतों से एनएमसी को पता चला है कि पिछले 5 साल में 122 मेडिकल स्टूडेंट्स ने आत्महत्या की है। इनमें 64 अंडरग्रैजुएट और 58 पोस्ट ग्रैजुएट स्टूडेंट्स हैं। इस तरह से एक साल में करीब 25-26 मेडिकल स्टूडेंट्स आत्महत्या कर लेते हैं। हालांकि, कुछ और डेटा के अनुसार 74 स्टूडेंट्स तक प्रति वर्ष आत्महत्या कर लेते हैं। इस तरह के अंतर का कारण डेटा रिपोर्टिंग सिस्टम हो सकता है।

रिपोर्ट में एक संस्था Chahal की 2022 में हुई स्टडी का हवाला देते हुए कहा गया है कि जनवरी 2010 से दिसंबर 2019 तक 358 आत्महत्याएं दर्ज हुईं। इनमें से 125 मेडिकल स्टूडेंट्स थे, 128 फिजिशियन और 105 रेजिडेंट थे। हाल ही में 787 मेडिकल स्टूडेंट्स पर हुई एक स्टडी में बताया गया है कि 37 प्रतिशत में आत्महत्या का विचार आया, 11 प्रतिशत ने आत्महत्या करने की प्लानिंग की, 3 प्रतिशत ने आत्महत्या की कोशिश की और 7 प्रतिशत ऐसे थे, जो भविष्य में इस तरह का कदम उठा सकते थे।

NMC टास्क फोर्स ने की 15 बड़ी सिफारिशें

रेजिडेंट्स डॉक्टर्स की ड्यूटी का समय हफ्ते में 74 घंटे से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

एक दिन का वीकली ऑफ कंपलसरी है।

एक दिन 24 घंटे की शिफ्ट और पांच दिन 10-10 घंटे की शिफ्ट होनी चाहिए।

डॉक्टर के लिए 7 से 8 घंटे की नींद बहुत जरूरी है।

हॉस्टल की फैसिलिटी में कोई कमी न हो।

NMC को छात्रों की समस्या के तुरंत निवारण के लिए E COMPLAINT PORTAL शुरू करना चाहिए।

साल में अंडरग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट स्टूडेंट्स को रोटेशनल बेसिस पर कम से कम दस दिन का फैमिली वेकेशन ब्रेक देना चाहिए ताकि छात्र अपनी फैमिली से मिल सकें, उन्हें अपनी समस्या बता सकें।

रिजल्ट रोल नंबर के आधार पर जारी किया जाए, न कि छात्र के नाम के साथ पब्लिक किया जाए।

यूनिवर्सिटीज को सप्लीमेंटरी एग्जाम फिर से शुरू करना चाहिए, ताकि एक बार छात्र अच्छा न कर पाए तो वह सप्लीमेंटरी एग्जाम में फिर से अपीयर हो सके

टास्क फोर्स के नोटिस में आया है कि कई मेडिकल कॉलेज में छात्रों से दोबारा फीस वसूलने की वजह के चलते उन्हें जानबूझकर फेल कर दिया जाता है। ऐसा करने वाले कॉलेजों पर हेवी पेनल्टी लगाई जाए।

मेडिकल कॉलेज जॉइन करने पर ओरिएंटेशन प्रोग्राम हो, उसे भरोसा दिलाया जाए कि यह कैंपस उसके लिए सेफ है। एंटी रैगिंग सेल और नंबर के बारे में बताया जाए। हॉस्टल में नियमित रूप से चेकिंग हो।

परिवार के सदस्यों के साथ भी कॉलेज बातचीत करता रहा और कोई समस्या होने पर परिवार को जरूर बताएं।

हर मेडिकल कॉलेज में काउंसिलिंग सर्विस हो, कैंपस प्लेसमेंट को मजबूत किया जाए।

कॉलेज में स्टाफ-स्टूडेंट्स क्लिनिक हो, जहां वह अपनी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं पर बात कर सकें।

पीजी और सुपर स्पेशिलिटी कोर्सेज की सीटें बढ़ाई जाएं।

 

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