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राजधानी

Special Reports :खाकी का खौफ , बादशाहत रोकने निकले तोंद वाले अफसर

रायपुर । राजधानी में अमन चैन कायम करने के लिए नए पुलिस कप्तान ने नए तौर तरीके शुरू कर दिए हैं। सुनाई में पड़ रहा है कि यूपी के अफसर को न्याय और अनुशासन पसंद है पर क्या उनके इरादों में ताकत मिल पाएगी। इस पर सवालिया निशान है जिन अफसर से उम्मीद कर रहे हैं उन सभी अफसर के तोंद निकली हुई है। ऐसे में पुलिसिंग करने के लिए फिजिकल अपीरियंस चाहिए जो अफसर के पास नहीं है।
वीआईपी ड्यूटी करते हुए अफसर थक चुके हैं। खाकी का ख्वाब है पर अफसर की तालीनता जवाब दे रही है। असल में अफसर को जी सर बोलने की आदत पड़ गई है खाकी पहन ली है, नियम जानते हैं दंड प्रक्रिया संहिता को पढ़कर परीक्षा पास की है पर पालन करने में मुसीबत है क्योंकि जिनके खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता का पालन करना है वे सभी सफेद पोस् लोग हैं जिन लोगों को राजनीतिक रूप में जान पहचान मिली हुई है। ऐसे में क्या लगता है कि कानून के वफादार राजधानी और प्रदेश में अपराध को नियंत्रित करने में सफल हो सकते हैं प्रश्न चिन्ह लग रहा है थाने के अंदर और बाहर की बादशाहत बिल्कुल अलग है। अपराधी टीवी चैनल में देखकर फिल्मों में देखकर अपराध के पैटर्न को अपना चुके हैं। पुलिस के पास पैटर्न नहीं है कानून का हथियार लेकर पुराने परंपरागत तरीके से बदमाशों को रोकने के लिए कार्यवाही होती हैं। हाईटेक पुलिस के पास सिस्टम है पर अफसर शरीर से थके हैं परिवार का बोझ है। थाने में काफी काम है, वीआईपी ड्यूटी है। ऐसे में अफसर कैसे कानून को मजबूत करेंगे। पिछले दिनों नए पुलिस कप्तान से चर्चा हुई, उनकी बातें सुनकर मीडिया कर्मियों में जोश आ गया। नजदीक बैठे अफसर भी होश में दिखाई पडऩे लगे लेकिन कप्तान साहब बेचारा सिपाही 12 घंटे 16 घंटे काम करने के बाद किस तरह से सड़क पर उतर पा रहा है यह विचार करना पड़ेगा, क्योंकि हवलदार से लेकर और उससे ऊपर के अधिकारी एक सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं जिसमें लेनदेन प्रमुख है। इसी वजह से घर मेंटेन है। ऑफिस मेंटेन है, तोंद निकली हुई है , कप्तान साहब सबसे पहले अधिकारियों को फिजिकल एक्सरसाइज की संज्ञा सर्वनाम सीखना पड़ेगा, मजबूती बनाना पड़ेगा , हथियार से नहीं हौसले से अपराधी पकड़े जाएंगे। टेक्निकल एक्सपर्ट मदद करते हैं मगर कानून उन उपायों को नहीं रोक सकता जो अपराध के लिए हर दिन एक युवा उम्र । क्या अपराधी को कहीं से प्रेरणा दे रहे हैं। वकालत करने वाले कोट वाले वकील अपराधियों को बचाने के तरीके बताते हैं, उन लोगों को कौन सिखाएगा की कानून का पालन करना जरूरी है। बचाने वाले अधिक हैं , फसाने वाले कम है, क्योंकि एक दूसरे के लिए सभी बने हैं। अधिवक्ता की रोजी अपराधी से चलती है, पुलिस की रोजी अपराधी से चलती है, थानों का खर्चा अपराधियों से निकलता है, ऐसे में सड़क में पुलिस भारी पेट लेकर ना निकले आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
रायपुर की पुलिसिंग में 80 प्रतिशत अफसर की तोंद निकली है। हवलदार , मुंशी थाने में बैठक कर्मचारी स्वस्थ भरी निगाहों से केवल रजिस्टर में पेन घूम रहा है। इसीलिए तो थाने के रजिस्टर में हर दिन पेंडिंग संख्या बढ़ती जा रही है। रोकने वाले से अधिक लिखने वाले हैं, पर कहीं ना कहीं कोई मजबूरी है जो अपराध को नियंत्रित नहीं कर पा रही। पिछले तीन माह में कई बार नशे के खिलाफ अभियान चलाया गया, भारी मात्रा में नशा पकड़ा गया। लेकिन नशेड़ी खत्म नहीं हुए हो भी नहीं सकते, क्योंकि पिलाने वाले घर के अंदर पर मौजूद है। उनको कैसे सबक सिखाएंगे कि टेलीविजन में बैठकर पीना सीख रहे हैं। एक स्टेटस बताने के लिए पीना जरूरी है, सिगरेट के धुएं में एक बेचारी लड़की किस तरह परेशान है, कैसे किसी संस्था का माहौल बिगड़ रहा है। नए कप्तान साहब नहीं सोच पा रहे हैं।
कप्तान साहब को इन बातों पर भी विचार करना पड़ेगा। उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन में काफी अंतर है। उत्तर प्रदेश में खेत की पगडंडियों में दौडऩा पड़ता है, यहां तो प्लेन सड़क में पुलिस का डंडा चलाने के लिए भी पहले गाड़ी मांगते हैं, फिर पान खाते हैं, फिर तंबाकू दबाते हैं और गाड़ी में सवार होकर पहुंचते हैं। क्या अपराध रुक पाएगा सोचा होगा, अंग्रेजी में कंट्रोल क्राइम के लिए विशेषज्ञों ने कई बातें लिखी हैं। इसलिए कप्तान साहब को विशेषज्ञों की चर्चाओं को समझना होगा। राजनीतिक हस्तक्षेप बंद करना होगा तभी थाने का अवसर बिना लेनदेन के काम करने का तरीका सीख पाएगा और अपराध नियंत्रित होने की दिशा में हम सभी बढ़ पाएंगे।

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