Special reports: राजनीति में नेताओं के बिगड़े बोल और मर्यादित भाषा
रायपुर,(प्रतिदिन राजधानी)। देश में आम चुनाव होने जा रहे हैं सभी राजनीतिक दलों ने तैयारी के साथ कैंपेन शुरू कर दिया है । नामांकन की प्रक्रियाएं भी चल रही हैं ऐसे में जोश और होश नेताओं को होना चाहिए किंतु ऐसा नहीं है । राष्ट्रीय स्तर से लेकर क्षेत्रीय स्तर के नेताओं के बिगड़े बोल और मर्यादित भाषा को लेकर सवाल उठ रहे हैं वही यह कहा जा रहा है कि आयोग ऐसे बिगड़े बोल पर सवाल और कार्रवाई क्यों नहीं करता जबकि लगातार आयोग पर दबाव और शिकायतें पहुंच रही है । बता दें कि पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनाव में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के नामांकन रैली के दौरान पूर्व विधानसभा अध्यक्ष दो चरण दास महंत के बिगड़े बोलने राजनीति को सवालों पर खड़ा कर दिया देश के प्रधानमंत्री पर की गई । टिप्पणी से काफी बवाल मचा विरोध हुआ खंडन आया लेकिन सवाल मौजूद है कि आखिर नेताओं के बोल क्यों बिगड़ जाते हैं जबकि इलेक्शन कमीशन ने कई तरह की आचार संहिताओं का निर्देश पत्र जारी किया है । जिसमें साफ तौर पर यह लिखा रहता है कि नेताओं को मर्यादित भाषा का प्रयोग करना है गलती से भूल से होने वाली बातें छम में होती हैं मगर जानबूझकर बोली जाने वाली भाषा माफी योग्य नहीं है । इसे राजनीति का माहौल बिगड़ रहा है और आने वाली पीढ़ी के लिए भी संकेत अच्छे नहीं है । बस्तर से कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा का भी एक बयान काफी चर्चा में है । जिसमें उन्होंने कहा दारू पियो पैसा लो और सड़क पर नाचो यह क्या है कैसी भाषा है एक वरिष्ठ नेता के वचनों ने कई तरह की सवाल खड़े कर दिए माना जाता है । कि जब से ग्लोबलाइजेशन आया और आधुनिक तौर तरीकों से चुनाव होने लगे तभी से मर्यादित भाषा की परंपरा टूट रही है। इससे पहले 70 और 80 के दशक में हुए आम चुनाव में कई बड़े स्तर के नेताओं ने भाग लिया लेकिन उनके विरोधियों से सामना होते हुए कभी बिगड़े बोल सुनाई नहीं दिए आरोप प्रत्यारोप लगे दावे किए गए लेकिन निरर्थक शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया ऐसा माना जाता है। कहा जाता है सुना जाता है । नए दौर में राजनीति का यह कैसा स्वरूप है। जिसने नेताओं का रंग बदल दिया। भाषा बदल दी और चुनाव में युवा पीढ़ी को बदलने के लिए बिगडऩे का मौका दे दिया।