विशेष
Trending

विशेष : ध्वनि उत्पत्ति दिवस बसंत पंचमी

विशेष : ध्वनि उत्पत्ति दिवस बसंत पंचमी

प्रतिवर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पांचवी तिथि को नव जागृति पर्व ‘बसंत पंचमी’ के नाम से मनाने की प्राचीन परंपरा है। ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ बसंत ऋतु के दौरान पशु -पक्षी, पेड़ -पौधे सहित समस्त सृष्टि में उमंग -उत्साह -उल्लास की ध्वनि गुंजित होती है।भगवान श्री कृष्ण ने गीता में बसंत ऋतु को ऋतुओं में सर्वश्रेष्ठ और स्वयं को बसंत कहा है।
पौराणिक कथानुसार बसंत पंचमी के दिन ही सृष्टि में ध्वनि की उत्पत्ति हुई थी।सृष्टि के जनक ब्रह्मा जी ने कीट -पतंगे से लेकर विशालकाय जीव जंतुओं और नन्हें नन्हें पौधों से लेकर बृहदाकार पौधों की रचना की थी। सुंदर सृष्टि की संरचना उपरांत ब्रह्मा जी को बोध हुआ कि सृष्टि में सन्नाटा है‌।पूरी सृष्टि मौन है। कहीं कोई कलरव,कोलाहल नहीं है। जिससे चहूंओर उल्लास के बजाय उदासी छाई हुई है।ऐसी मनहूसियत को दूर करने और समूचे वातावरण में उमंग जागने के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल लेकर वायुमंडल में छिड़क दिया था।जिससे चार भुजाओं वाली मनोहरी देवी सरस्वती अवतरित हुई थीं । उनके हाथों में पुस्तक,माला,वीणा सुशोभित हो रहे थी।
ब्रह्मा जी ने सृष्टि में नाद,ध्वनि,की उत्पत्ति करने का आग्रह नव अवतरित वीणा धारी देवी से किया।तब देवी ने वीणा वादन कर वीणा के मधुर नाद से सृष्टि में कोलाहल, कल -कल, सरसराहट, कलरव की उत्पत्ति की। सजीव निर्जीव समस्त चीजों में स्वर -नाथ -वाणी की उत्पत्ति करने वाली देवी का नाम वाग्देवी रखा गया।
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ अतः इस दिवस को बागेश्वरी जयंती,मदनोत्सव, ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसंत पंचमी को अवतरित श्वेत वस्त्र धारी सरस्वती देवी श्वेत सुंदर हंस पक्षी पर विराजमान होती हैं।पीले श्वेत पुष्प,नैवेद्य,वस्त्र और वीणा सहित अन्य संगीत वाद्य यंत्र देवी को प्रिय हैं।
धार्मिकता की दृष्टि से ही नहीं अपितु इतिहास, साहित्य जगत में भी बसंत पंचमी का दिवस अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस है। पौराणिक कथानुसार प्रभु श्री राम ने भीलनी शबरी के घर पहुंच कर इसी दिवस पर ममता भरे झूठे बेर खाए थे। महापराक्रमी राजा भोज की जयंती दिवस भी यही है। इतिहास में यह दिवस को विशेष ख्याति प्राप्त है, चूंकि इसी दिवस पर शूरवीर महाराज पृथ्वीराज चौहान ने शब्द भेदी बाण चलाकर क्रूर बादशाह मोहम्मद गौरी को मारा था।
हिंदी साहित्य जगत के अमरविभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था। निराला जी ने ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे’ जैसे कालजई सरस्वती वंदना की रचना की थी ।वे खुले दिल से धन वस्त्र निर्धनों को दान दिया करते थे।इसलिए निराला जी को महामानव ‘महाप्राण’ भी कहते हैं।महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का शुभारंभ बसंत पंचमी के दिन ही किया था।
वर्ष के बारह माह में से बसंत पंचमी की तिथि को अतिव पवित्र दिवस का दर्जा प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिवस पर ‘मूत्वा मुहूर्त’ होता है।ऐसे अबूझ मुहूर्त में विवाह,गृह प्रवेश, वाहन क्रय, कान नाक छेदन, शिक्षारंभ,अन्नप्राशन जैसे मांगलिक कार्यों का निष्पादन किसी समय शुभ मुहूर्त देखे बिना किया जा सकता है अर्थात इस दिवस का हर पल शुभ होता है। निर्धन छात्र-छात्राओं को पाठ्य सामग्री दान देने की प्रथा भी इस दिवस पर है।
बसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र धारण कर पीले खाद्य पदार्थों का सेवन करते हुए मां सरस्वती के भक्त अपने वाद्य यंत्रों,कलम, किताबों की पूजा अर्चना करते हैं। बेजान वस्तुओं यथा मिट्टी, चमड़े,धातु, लकड़ी से निर्मित वाद्ययंत्रों में मनमोहक, कर्णप्रिय तालों की उत्पत्ति विद्या देवी के गुणों का ही प्रताप है।
बसंत ऋतु में सरसों,सूरजमुखी, गेंदा,
सनई,अरहर के पौधों में पीले फूल खिलते उठते हैं।गेहूं, चना और जौ के पकते हुए दाने भरे फल की महक प्रकृति में गमक उठाती है। पलाश, सेमल, आम के पौधे में खिले पुष्पों पर मधुमक्खियां,तितली,भंवरे गुनगुनाते हुए फूलों के मकरंद का रस पान करते हैं। पेड़ पौधे भी पुराने पीले हो चले पत्तों को त्याग कर के नए सुकोमल पत्तियों से नयनाभिराम सिंगार करते हैं। जिसे देखकर कोयल कुकती है। मोर नाच उठता है जोकि जनाकर्षण का केंद्र बन जाते हैं।
रंगों का पर्व होली के आगमन का सूचक ‘हाकर’ बसंत पंचमी को ही माना जाता है।इस दिवस पर होलिका दहन स्थल चयनित करके गांव -शहरों में उस स्थल की सफाई उपरांत अरंडी के पेड़ की डगाल को वहां गाड़ा जाता है। लकड़ी कंडे को एकत्रित करते हुए इस कार्य में मगन लोग नगाड़े की धुन के साथ फाग गाने की शुरुआत करते हैं।
वैदिक ग्रंथों और महा ऋषियों के अनुसार विद्या के बिना इंसान का जीवन व्यर्थ होता है,अतः विद्या की देवी सरस्वती की जयंती पर निरक्षरों को अक्षर दान करें। विद्या दान का संकल्प लेते हुए स्मरण करें कविश्री की इन पंक्तियों को — कुछ लिखकर सो कुछ पढ़ कर सो, जागा जिस जगह उससे आगे बढ़कर सो।

विजय मिश्रा ‘अमित’
हिंदी-लोक रंगकर्मी

DIwali Offer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
रायपुर ऑटो एक्सपो 2025 का शुभारंभ TVS EXCEL xl100 बन रही है लोगो की सबसे अच्छी पसंद सिर्फ़ 1 लाख के डाउन पेमेंट मैं फैमिली के लिए बेहतरीन 7 सीटर Car Students के लिए देखने लायक सबसे Best फ़िल्में