सृष्टि के जीवों में मनुष्य की गिनती एक विवेकशील प्राणी के रूप में होती। इसलिए त्याग, दान और दया जैसे भाव की अपेक्षा मनुष्य से स्वाभाविक रूप से की जाती है। इतिहास साक्षी है अधिकाधिक त्याग की भावना से भरे मनुष्य ही महान विभूतियों के रुप में विख्यात हुए।राजा हरिश्चंद्र, महर्षि दधीचि,दानवीर कर्ण,मर्यादा पुरुषोत्तम राम राज मोरध्वज,इसके आदर्श उदाहरण हैं। उन्होंने संदेश दिया कि- खुद दूसरों पर लूटाने वाले किसी को लूटा नहीं करते, पत्ते वही अच्छे लगते हैं जो डगालियों से टूटा नहीं करते
मनुष्यों को बटोरन लाल नहीं बांटन लाल बनने तत्पर रहना चाहिए अर्थात हमेशा लालच की गठरी को बड़ा करने के बजाय अपनी गठरी में अनावश्यक संचित धन दौलत को दान-पुण्य में खर्च करने हाथ खुले रखना चाहिए।त्याग की प्रवृत्ति से ही मनुष्य के भीतर,दया, दानशीलता का गुण विकसित होता है।
दान का अर्थ स्थूल रूप में धन दान से ही लिया जाता किंतु यह कोरा भ्रम है,इससे तो यही भान होता है कि निर्धन इंसान तो दान कर ही नहीं सकता। ऐसे भ्रम को दूर करने के लिए ही सभी धर्मों में धन दान के अलावा श्रमदान,विद्या दान,जल दान ,नेत्रदान, रक्तदान देहदान का भी उल्लेख मिलता है।
आप रास्ते में कहीं जा रहे हैं और कोई रिक्शा, ठेला वाला चढ़ाई वाली जगह पर बोझा भरे अपने रिक्शा ठेला को नहीं खींच पा रहा है।पसीने से तरबतर हो चला है। उस वक्त उसे अनदेखा करने के बजाय आप अपनी गाड़ी से उतरकर उसको चढ़ाई चढ़ने में मदद करते हैं। रिक्शा ठेला को ढकेलकर ऊपर तक चढ़ा देते हैं तो यह श्रमदान आपके धन दान से अधिक महत्व रखता है।
ऐसे ही रास्ते में कहीं जा रहे हैं और किसी सार्वजनिक जगह पर नल से बहते पानी को नल की टोंटी बंद करके रोक देते हैं।गांव- शहर में तालाबों- बावलियों की सफाई में सहयोग करते हैं,तो पानी की बरबादी रोकने की जिम्मेदारी के साथ साथ आप जल दान का भी पुण्य प्राप्त कर लेते हैं।
आपके आसपास अनेक अभाव ग्रस्त विद्यार्थी होते हैं।आते जाते आपको फटे बस्ते,फटे जूते-चप्पल, कपड़े, कापी किताब लिए वे दिख जाते हैं। कड़ी धूप में तपती जमीन पर नंगे पांव चलते,पानी बरसात में भीगते, ठंढ में ठिठुरते अनेक गरीब विद्यार्थी नजर आते हैं।आप ऐसे विद्यार्थियों की मदद अध्ययन सामग्री, स्वेटर, बरसाती,छाता, जूते चप्पल देकर कर सकते हैं।खाली समय में उन्हें पढ़ा लिखा देते हैं तो आपका ऐसा उपक्रम विद्या दान की श्रेणी में आ जाता हैं।
यह दान केवल उस विद्यार्थी के लिए ही नहीं बल्कि बृहद अर्थों में उसके परिवार समाज,देश के लिए भी बहुपयोगी सिद्ध होता है। दानों में विद्या दान,ज्ञान दान को इसीलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,डॉ अब्दुल कलाम जैसे महान हस्तियों ने सर्वोत्तम दान की संज्ञा दी है।
चिकित्सा विज्ञान में हुई जबरदस्त उन्नति, अनगिनत अत्याधुनिक मशीनों के अविष्कार से अब देहदान नेत्रदान,रक्तदान जैसे अनेक शारीरिक अंगों के दान का भी नया रास्ता खुल गया है,फलस्वरूप मृत्युपरांत कोई भी व्यक्ति अपने समूचे शरीर को अथवा शरीर के अलग-अलग अंगों यथा,फेफड़े,किडनी, आंख(कार्निया),ऊतक
त्वचा आदि का दान कर सकता है।यह मृत व्यक्ति की आत्मा को परम शांति देने वाला दान है।एक व्यक्ति के दिए आंख,किडनी फेफड़ा से अनेक जीवित व्याधिग्रस्त व्यक्तियों के जीवन दूखों का अंत और अपार सुखों का संचार होता है।
ऐसे ही जीवित व्यक्ति भी बड़ी सहजता से रक्तदान,किडनी,लिवर का दान कर सकते हैं। रक्तदान तो प्रत्येक तीन माह में एक बार किया जा सकता है।मानव देह में ऐसी क्षमता होती है कि दान दिया हुआ रक्त चौबीस घंटे में पुनः निर्मित हो जाता है, यह सर्वविदित है कि रक्त को किसी फैक्ट्री में नहीं बना सकते हैं।मानव शरीर के अलावा रक्त प्राप्ति का कोई अन्य स्रोत नहीं है,अतः रक्त दान में बढ़-चढ़कर भागीदारी विशेष कर युवाओं को अवश्य देना चाहिए।
दान देने की प्रवृत्ति इस बात को भी उजागर करती है कि–स्वयं का दर्द महसूस होना जीवित होने का प्रमाण है, लेकिन औरों का दर्द महसूस होना,औरों के दर्द को दूर करना इंसान होने का प्रमाण है। दानवीर बनें औरों के संग स्वयं के सुख का मार्ग प्रशस्त करें। सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ प्रणी होने की गरिमा को बनाए हुए संकल्प लें -दान दिए बिना सोना नहीं और दान देकर कभी रोना नहीं।
विजय मिश्रा ‘अमित’
पूर्व अति महाप्रबंधक (जन)
एम 8 सेक्टर 2अग्रोहा कालोनी,पोआ-सुन्दर नगर रायपुर (छग)492013