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25 वें वर्ष को छूता छत्तीसगढ़:कला- साहित्य जगत में बढ़ता छत्तीसगढ़

सात राज्यों से घिरा छत्तीसगढ़ राज्य जल, जंगल, जमीन और खनिज संपदाओं सहित विविध कलाओं से समृद्ध राज्य है। राज्य बनने के पूर्व यहां की सांस्कृतिक गतिविधियां, धरोहर,उपेक्षित थे।यहां के कलाकारों को छोटी मोटी प्रस्तुतियों के लिए भोपाल मध्यप्रदेश का मुंह ताकना पड़ता था, किंतु राज्य गठनोपरांत छत्तीसगढ़ को हरेक दृष्टि से पृथक पहचान मिली ।
किसी भी राज्य की पहचान वहां की कला, संस्कृति, साहित्य ही होती है।इसे चरितार्थ करते हुए छत्तीसगढ़ के खान-पान, पहनावा, रीति रिवाज और पर्यटन स्थल को भारत के मानचित्र पर और विदेशों में तेजी से प्रचारित- प्रसारित- स्थापित होने का अभूतपूर्व अवसर पच्चीसवें वर्ष को छूते छत्तीसगढ़ को मिला ।
राज्य बनने के बाद ही पद्मश्री तीजन बाई को पद्मविभूषण से तथा बड़ी संख्या में साहित्यकार, पुरातत्वविद,एवं कलाकारों को पद्मश्री से अलंकृत होने का गौरव प्राप्त हुआ। नवोदित छत्तीसगढ़ के ऐसे रत्नों में पद्मश्री शेखर सेन, श्यामलाल चतुर्वेदी, जॉन मार्टिन नेल्सन, पुनाराम निषाद, गोविंद राम निर्मलकर, सत्यदेव दुबे, जी सी डी भारती बंधु, मदन सिंह चौहान, डॉ सुरेंद्र दुबे, ममता चंद्राकर, उषा बारले, अजय कुमार मंडावी, डॉ राधेश्याम बारले, डोमन सिंह कुवंर, अरुण शर्मा,अनूप रंजन पांडे,अनुज शर्मा, पं. रामलाल बरेठ शामिल हैं।
पच्चीसवें पायदान पर पग धरते छत्तीसगढ़ की कला- संस्कृति- साहित्य- सिनेमा जगत की दशा दिशा पर परिचर्चा में शामिल विद्वजनों ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी।

उम्रदराज कलाकारों की सुध ले सरकार- रमा दत्त जोशी
“सास गारी देवय ननद चुटकी लेवय ससुरार गोंदा फूल” गाने की लोकप्रिय गायिका रेखा -रमा- प्रभा दत्त जोशी बहिनों के नाम से ख्याति प्राप्त वरिष्ठ लोकगायिकाओं से रमा जोशी कहती हैं -हर्ष की बात है कि राज्य गठनोपरांत राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय महोत्सव का आयोजन छत्तीसगढ़ में होने लगा है। यहां के कलाकार आए दिन राज्य के बाहर पंथी, पंडवानी, भरथरी, सुआ, करमा, ददरिया, रिलो जैसे लोक नृत्यों का प्रदर्शन करके छत्तीसगढ़ की धरा को गौरवान्वित कर रहे हैं। नवोदित छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विशिष्ट जनों को राज्य सरकार द्वारा प्रतिवर्ष राज्योत्सव पर पुरस्कृत करने की गौरवशाली परंपरा भी आरंभ हुई है। पुरस्कार प्रक्रिया में पक्षपात का आरोप न लगे इस हेतु पुरस्कार की पात्रता, नियमों और शर्तों में और अत्यधिक स्पष्टता- पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है। पुरस्कार हेतु उम्रदराज हो चले सुपात्रों को प्राथमिकता देने के अलावा आर्थिक मदद, स्वास्थ्य संबंधी सेवा सुविधाओं में वृद्धि की भी आवश्यकता है। विश्व धरोहर ‘नाचा’ कलाकारों की अद्भुत कला से नव पीढ़ी अवगत हो इसके लिए विशेष प्रशिक्षण शिविर का आयोजन होना चाहिए। लोकगीतों में नयापन के नाम पर भौंडापन घातक है। ऐसे प्रयोगों से संस्कृति में विकृति आ रही है।

छत्तीसगढ़ी फिल्मों को मिले शासकीय अनुदान-नीतिश लहरी
छत्तीसगढ़ी फिल्मों के लेखक एवं निर्देशक नीतीश लहरी कहते हैं कि-राज्य गठनोपरांत छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण की दिशा में उत्साहजनक प्रगति हुई है।छत्तीसगढ़ी सिनेमा को छालीवुड के नाम से प्रसिद्धि मिली है। वर्ष 1965 में बनी मनु नायक की पहली छत्तीसगढ़ी फिल्म ‘कहि देबे संदेश’ से आरंभ हुई फिल्मी यात्रा के अधखुले द्वार को पूरी तरह से खुलने का अवसर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद मिला है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों का प्रदर्शन राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में हुआ और मनोज वर्मा निर्देशित फिल्म ‘भूलन कांदा’ को पुरस्कृत होने का गौरव भी मिला। वर्तमान में सर्वाधिक सफल फिल्म बनाने का कीर्तिमान श्री सतीश जैन के नाम है, जिन्होंने वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ी फिल्म निर्माण के पथ को सुगम बनाया। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के निर्माण में अत्याधुनिक कैमरे,लाइट और विविध प्रभावशाली इफैक्ट्स को इस्तेमाल करने की पहल हुई है।अच्छी बात है कि राज्य शासन की ओर से छत्तीसगढ़ी फिल्मों के प्रोत्साहन हेतु राज्य अलंकरण देने की शुरूआत हुई है ,किन्तु अब तक छत्तीसगढ़ी फिल्म विकास निगम , छत्तीसगढ़ी फिल्म सिटी का गठन नहीं हो पाना, फिल्मों को सब्सिडी नहीं देना छत्तीसगढ़ी फिल्म जगत के लिए गतिरोधक सदृश्य है।दूरस्थ अंचलों में मिनी थियेटर की स्थापना, शूटिंग हेतु प्रशासनिक तौर पर सहजता से सहमति सुरक्षा तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

मातृभाषा के रूप में दर्ज हो छत्तीसगढ़ी भाषा- नंदकिशोर शुक्ल
चौरासी वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार नंदकिशोर शुक्ल अपने विशिष्ट पहनावे के साथ ही छत्तीसगढ़ी भाषा को मातृभाषा का दर्जा दिलाने के लिए तन-मन-धन से संघर्षरत है।वे कहते है- छत्तीसगढ़ के पैंसठ प्रतिशत रहवासियों की भाषा छत्तीसगढ़ी है,अतः स्वाभाविक रूप से छत्तीसगढ़ की पहली भाषा छत्तीसगढ़ी ही होना चाहिए।यूनेस्को का भी कहना है कि स्थानीय बोली भाषा की उपेक्षा हरगिज नहीं होना चाहिए।आगे वे कहते हैं कि प्राथमिक स्तर की शिक्षा शत-प्रतिशत छत्तीसगढ़ी में हो तथा बाकी उच्च स्तर पर एक अनिवार्य विषय के रूप में हो ,किन्तु जनप्रतिनिधियों की उदासीनता,नौकरशाहों की नीति और जनमन में दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव ने छत्तीसगढ़ी भाषा को दोयम दर्जे की भाषा बना कर रख दिया है।

भाषा के प्रचार प्रसार और समृद्धि हेतु छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया गया है,किन्तु अब तक स्वतंत्र अधिकार, नीति-निर्धारण,साधन सम्पन्न आयोग का दर्जा नहीं मिला है। कामकाज राज-काज छत्तीसगढ़ी भाषा में करने हेतु सरल मार्गदर्शिका बनाई जा चुकी है।वह भी धूल खाते पड़ी है। हर्ष की बात है नई पीढ़ी के बच्चे सोशल मीडिया के माध्यम से छत्तीसगढ़ को बेहतर सम्मान दे रहे हैं। रामचंद्र देशमुख जी की तरह यहां के कलाकार भी छत्तीसगढ़ी क्रांति जगाने पुरजोर कदम उठाएं।

आदिमजाति संस्कृति का संरक्षण हो सर्वोच्च प्राथमिकता -रिखी क्षत्रिय
छत्तीसगढ़ के लोकवाद्यों के संरक्षक,मशहूर लोक नर्तक, अनेक बार दिल्ली के गणतंत्र दिवस समारोह में शिरकत कर चुके रिखी क्षत्रिय कहते हैं कि-
राज्य गठनोपरांत दिल्ली के गणतंत्र दिवस परेड में छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक,धार्मिक, पुरातत्व स्थलों की चलित झांकियों को अब तक सत्रह बार प्रदर्शन करने का अवसर मिल चुका है। इससे विदेशियों को छत्तीसगढ़ की संस्कृति से रू-ब-रू होने के साथ ही छत्तीसगढ़ की भित्ति चित्र, कास्ट धातु,टेराकोटा बेल मेटल शिल्प को विश्व स्तर पर प्रसिद्धि मिली।
छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य है ।इस दृष्टि से इनकी कला संस्कृति की समृद्धि संरक्षण हेतु विशेष प्रयास जरूरी है। हर्ष की बात है कि छत्तीसगढ़ और देश के अन्य राज्यों के आदिमजाति समुदाय के लोकनृत्यों सहित वर्ष 2019 में पहला 2021 में दूसरा और 2023 में तीसरा विश्व आदिवासी दिवस नृत्य समारोह का आयोजन किया गया। राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज के मैदान पर आयोजित समारोह में मंगोलिया, इंडोनेशिया, युगांडा, फिलिस्तीन, श्रीलंका, उज़्बेकिस्तान, नाइजीरिया आदि देशों के आदिमजाति समुदाय के कलाकारों ने प्रस्तुति दी। इस समारोह से आदिम जनजातियों की जीवन शैली,पर्वों, परम्पराओं,नृत्यों, वाद्यों को राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय मंच मिला। यद्यपि इस दौरान इस बात का दुखद पहलू भी नज़र आया कि देश-विदेश के जनजातीय समुदाय की नृत्य शैली- पहनावा में शहरी संस्कृति का घुसपैठ हो रहा है। यह चिंताजनक विषय है। इसे देखते हुए विविध जनजाति समुदाय के जीवन स्तर में सुधार के साथ ही पारंपरिक रीति रिवाज को संरक्षित रखने गंभीरता से कार्य होना आवश्यक है।
परिचर्चा के सभी प्रतिभागियों के विचारों से यह बात छनकर बाहर आती है कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में छत्तीसगढ़ में राजनीतिक स्थिरता बनी हुई है। इसका प्रत्यक्ष लाभ लेते हुए यहां की भाषा,कला,संस्कृति, सभ्यता,साहित्य और पुरातत्व के संरक्षण हेतु जनप्रतिनिधियों को ईमानदारी से आगे आना ही चाहिए। राज्य गठनोपरांत छत्तीसगढ़ के पर्वों पर अवकाश देने की पहल हुई है जो की राज्य की लुप्त होती परंपराओं पकवानों और विविध खेलों के संरक्षण की दृष्टि से बहुपयोगी कहा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के पर्व हरेली, छेरछेरा, तीजा,भक्त माता कर्मा जयंती, विश्व आदिवासी पर घोषित अवकाश ने नई पीढ़ी को पर्यावरण, परम्परा और संस्कारों से जुड़ने का व्यापक अवसर दिया है।यह सराहनीय है क्योंकि- जिस गांव में पानी नहीं गिरता, वहां की फसलें खराब हो जाती हैं,और जहां साहित्य- संस्कृति का मान नहीं होता, वहां की नस्लें खराब हो जाती है।

विजय मिश्रा ‘अमित’
(लोक-हिंदी नाट्य निर्देशक)

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