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चौंका देने वाली है पिणी गांव की यह अनोखी परंपरा, 5 दिनों तक कपड़ों का त्याग कर देती हैं महिलाएं!

नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश के हिमालय की गोद में बसा पिणी गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है। इन्हीं परंपराओं में से एक ऐसी रीति है, जिसके बारे में जानकर लोग अक्सर चौंक जाते हैं।
यह परंपरा है सावन के महीने में पांच दिनों तक महिलाओं द्वारा कपड़े न पहनने की। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी कई लोग इसका पालन करते हैं, लेकिन इसके पीछे की कहानी क्या है? आइए जानते हैं।

क्यों मानी जाती है यह परंपरा?

पिणी गांव में सावन के महीने में पांच दिनों तक महिलाएं कपड़े नहीं पहनती हैं। इस दौरान वे ऊन से बने एक पटके का इस्तेमाल करके अपना शरीर ढकती हैं। यह परंपरा गांव के लोगों के लिए बेहद पवित्र मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो महिला इस परंपरा का पालन नहीं करती, उसके परिवार में कोई अनहोनी हो सकती है। इसलिए, आज भी ज्यादातर महिलाएं इस रीति का पालन करती हैं।

परंपरा के पीछे की कहानी

इस परंपरा के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। एक कहानी के अनुसार, प्राचीन समय में इस गांव में एक राक्षस का आतंक था। यह राक्षस सजी-धजी महिलाओं को उठाकर ले जाता था। इससे परेशान होकर गांववालों ने देवता से प्रार्थना की। देवता ने राक्षस का वध किया और गांव को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई। तभी से यह परंपरा शुरू हुई कि सावन के महीने में पांच दिनों तक महिलाएं कपड़े नहीं पहनेंगी, ताकि किसी बुरी शक्ति का आकर्षण न हो।एक अन्य मान्यता यह है कि यह परंपरा प्रकृति के साथ एकता स्थापित करने से जुड़ी है। इस दौरान महिलाएं प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहती हैं और अपने शरीर को कपड़ों से ढकती नहीं हैं। यह एक तरह से प्रकृति की पूजा का प्रतीक है।

आधुनिक समय में परंपरा

आधुनिक समय में इस परंपरा का स्वरूप थोड़ा बदल गया है। अब सभी महिलाएं पूरी तरह से कपड़े त्यागने की जगह पतले कपड़े पहनती हैं। जो महिलाएं इस परंपरा का पालन करना चाहती हैं, वे इन पांच दिनों तक घर के अंदर ही रहती हैं और बाहर नहीं निकलतीं। इस दौरान पति-पत्नी भी एक-दूसरे से नहीं मिलते और न ही बात करते हैं। यह समय उनके लिए बेहद पवित्र और आध्यात्मिक होता है।

पुरुषों के लिए भी हैं नियम

इस त्योहार में पुरुषों को भी कुछ नियमों का पालन करना पड़ता है। इस दौरान वे मांस-मछली नहीं खा सकते और न ही शराब पी सकते हैं। गांव के लोग इस त्योहार को बेहद पवित्र मानते हैं, इसलिए इन पांच दिनों में किसी बाहरी व्यक्ति का गांव में प्रवेश वर्जित है। यह नियम गांव की शांति और पवित्रता को बनाए रखने के लिए बनाया गया है।

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