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अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर में 90 दिन का विराम, लेकिन भारत पर दबाव बरकरार

अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर: 90 दिन की राहत, लेकिन क्या यह स्थायी है?-यह लेख अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध पर केंद्रित है, जिसमें हाल ही में 90 दिनों के लिए टैरिफ में कमी आई है। क्या यह एक स्थायी समाधान है या सिर्फ एक अस्थायी राहत?

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90 दिन का ब्रेक: एक अस्थायी राहत-अमेरिका ने चीन पर लगाए गए भारी टैरिफ में 90 दिनों की राहत दी है। इसका मतलब है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव कुछ कम हुआ है। यह कदम अमेरिकी कंपनियों के लिए राहत भरा है जो चीन के साथ व्यापार करती हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ एक अस्थायी समाधान है और वास्तविक समस्याओं का समाधान अभी बाकी है। यह समय दोनों देशों को आपसी बातचीत और समझौते की दिशा में आगे बढ़ने का मौका दे सकता है।

बातचीत की उम्मीदें और संभावित समझौते-इस साल के अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच होने वाली मुलाकात से बड़े समझौते की उम्मीद है। इसमें फेंटेनिल की निगरानी और टैरिफ में कटौती जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं। अगर दोनों देश इन मुद्दों पर सहमति बना पाते हैं, तो इससे अमेरिकी कृषि और ऊर्जा निर्यात को फिर से बढ़ावा मिल सकता है। हालांकि, यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि अभी भी कई चुनौतियाँ बाकी हैं।

 टैरिफ युद्ध की हकीकत और जून की रियायतें-पिछले साल के अनुभवों से पता चला है कि केवल ऊँचे टैरिफ लगाने से मनचाहा परिणाम नहीं मिलता। अमेरिका ने जब भारी टैरिफ लगाए, तो चीन ने भी दुर्लभ खनिजों की आपूर्ति पर नियंत्रण करके जवाब दिया। जून में कुछ रियायतें दी गईं, जैसे कि चिप टेक्नोलॉजी और एथेनॉल पर कुछ प्रतिबंध हटाए गए। लेकिन यह सिर्फ एक छोटा सा कदम था।

अमेरिकी टैरिफ और भारत पर असर-अमेरिका के टैरिफ ने दुनिया भर के देशों को प्रभावित किया है। भारत को भी इसका असर झेलना पड़ा है। अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीदने के लिए दबाव बनाया, जबकि चीन को राहत दी गई। इससे भारतीय उद्योग और निवेशकों को एक साफ संदेश गया है।

आगे का रास्ता: सीमित रियायतें और लंबी लड़ाई-अमेरिका की चीन से शिकायतें अभी भी बरकरार हैं, जैसे कमजोर बौद्धिक संपदा सुरक्षा और सरकारी सब्सिडी। विशेषज्ञों का मानना है कि अगली बातचीत में सिर्फ सीमित रियायतें ही मिलेंगी। असली व्यापारिक संरचना पर विवाद लंबा चलेगा।

व्यापार जगत के लिए चेतावनी और भारत की रणनीति-अगले तीन महीने सिर्फ एक अस्थायी राहत का समय है। अमेरिकी कंपनियों को ऊँचे टैरिफ को सामान्य मानकर योजना बनानी होगी। भारतीय कंपनियों को इलेक्ट्रॉनिक्स, केमिकल और मेटल क्षेत्र में सतर्क रहना होगा। भारत को अमेरिका के साथ बातचीत करते हुए अपनी घरेलू प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ाना होगा।

राहत, लेकिन समाधान नहीं-अमेरिका-चीन के बीच यह समझौता वॉल स्ट्रीट को कुछ राहत देता है, लेकिन असलियत यह है कि व्यापार युद्ध की समस्या अभी खत्म नहीं हुई है। यह सिर्फ एक अस्थायी राहत है, और व्यापार जगत को इसी के अनुसार अपनी योजनाएँ बनानी होंगी।

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