Join us?

विशेष

आधुनिक रेल की वास्तविकता

आधुनिक रेल की वास्तविकता

 

भारतीय रेल की वर्तमान तस्वीर कितनी बदली यह किसी से भी छुपा नहीं है। एक समय था जब पूरे देश में छोटी लाइन थी जिसे अंग्रेजों ने बिछाया था इसको मीटर गेज/नेरो गेज कहा जाता था।कोयले से चलने वाले काले रंग के इंजिन हुआ करते थे, जिसे भाप के इंजिन या स्टीम इंजिन कहते थे। जिन युवाओं ने यह नहीं देखे वे सनी देओल की फिल्म गदर टू देखेंगे तो उसमें इस को दिखाया गया है। ट्रेन की बोंगियां इतनी भारी और छोटी होती थी कि कोयले के इंजिन खींच नहीं पाते थे।बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव होता था।समय बदलता गया मीटर गेज परिवर्तन किया गया। ब्रॉड गेज रेल लाइन बिछने लगी डीजल के इंजिन आए, डबल लाइन बिछाई गई, बिजली के इंजिन आए, बिजली की लाइन बिछाई गई। बोंगियोंं को आधुनिक सुख सुविधाओं से लैस किया गया, सीटों को आरामदायक बनाया गया।प्लेट फार्म हवाई अड्डे की तरह सर्व सुविधायुक्त बनने लगे।भारतीय रेल आज विश्व स्तर पर अपनी गाथा स्वयं लिख रही है।वंदे भारत, डेमो, मेमो, मेट्रो जैसे अनेक विकल्प आ गए ट्रेनों की गति बढ़ती जा रही है। मगर यहां एक चूक भी हो रही है जिसका जिक्र करना भी अनिवार्य है। मैं पिछले दिनों एक तीर्थ यात्रा पर चलने वाली विशेष ट्रेन से रामेश्वरम गया था, जो इंदौर से शुरू हुई थी। इसमें लगभग एक हजार तीर्थ यात्री थे। आई आर सी टी सी के द्वारा इस यात्रा का संचालन किया जा रहा था ऐसी ट्रेनें बारहों मास चलाई जाती हैं। जिसमें सुबह की चाय नाश्ते से लेकर पेयजल की भी व्यवस्था होती है।साथ ही दोनों समय भोजन की व्यवस्था होती है।यात्रियों को जो भोजन परोसा जाता है उसकी गुणवत्ता की जांच की जाए तो निश्चित रूप से कह सकते हैं कि यह खाना इंसानों के खाने लायक तो नहीं होता! इसी प्रकार आप यदि प्रतिदिन या साप्ताहिक ट्रेनों में यात्रा करते हैं तब भी पेंट्री से खाना मंगवाते हैं तो मेरे खयाल से दूसरी बार कभी नहीं मंगवाएंगे! रोटियां जो दी जाती हैं उन्हें रोटियां या चपाती कहना रोटियों का मजाक उड़ाना या स्वयं का पूरी तरह अंधे होना कहा जा सकता है। यदि जानवर को वह रोटी डाली जाए तो वह उसे कभी नहीं खाएगा।ऐसा प्रतीत होता है कि जो ठेकेदार यह खाना परोसते हैं उन्हें रोटी की या तो पहचान नहीं है या सब चलता है की सोच से यह कथित रोटी या चपाती परोसी जाती है।जिसे ठीक से सेंक कर नहीं दी जाती। कच्ची कागज़ की तरह बनी होती हैं। मैं तो माननीय रेल मंत्री जी को सुझाव दूंगा कि एक बार आम आदमी बनकर ट्रेन में यात्रा करें और खाना ऑर्डर कर खाएं तो आप को भी इनकी वास्तविकता से परिचय हो जाएगा। अब आते हैं हवाई अड्डे जैसे प्लेटफार्म पर ! केंटीन पर रेट लिस्ट लगी है, जिसमें चाय की मात्रा और कीमत लिखी है और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमतें भी लिखी हैं चाय की कीमत सात रुपए लिखा है मगर दस रुपए से कम में भारत के किसी भी स्टेशन पर नहीं मिलती साथ ही चाय की गुणवत्ता इतनी घटिया होती है कि उसको पीने के बाद आदमी कसम खा लेता है कि इन आधुनिक प्लेट फार्म पर कभी चाय नहीं पियेगा! आजकल वेफर्स बनाने वाली कंपनियों ने भी एक नई चाल पकड़ी है, जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे! रेलवे के केंटीन के लिए अलग से पेकिंग की जा रही है जिसकी मात्रा तो कम होगी ही कीमतें भी आम बाजार से अलग होती हैं।रेल नीर की बोतल पंद्रह रुपए में बिक्री करना है मगर केंटीन वाले सीधे बीस रुपए वसूल कर रहे हैं। बिसलरी के नाम पर स्थानीय नकली मिलते जुलते नामों की बोतल उसी कीमत पर बेची जा रही है इस ओर किसी भी रेल अधिकारी का ध्यान नहीं जाता या ध्यान नहीं देना चाहते? प्लेटफार्म पर लगे पेयजल के नल या तो बंद रखे जाते हैं या उनमें गंदा पानी दिया जाता है ताकि यात्री बोतल बंद पानी खरीदने को बाध्य हो जाए।मेरे जैसे अनेक लोग हैं जो सादा पानी ही पीते हैं बोतल का नहीं उनके लिए तो यह अभिशाप ही होता है। रेलवे के संबंधित अधिकारी इन जीवनदायिनी आवश्यकताओं के बिगड़े स्वरूप को सुधारने की ओर ध्यान दे ताकि लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ को रोका जा सके तथा जेबों को हल्का होने से बचाया जा सके। (विनायक फीचर्स)

DIwali Offer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button