पुरखा के चिन्हारी सहसपुर-लोहारा की बावली : शैलेन्द्र उपाध्याय
पुरखा के चिन्हारी सहसपुर-लोहारा की बावली : शैलेन्द्र उपाध्याय
कवर्धा। कबीरधाम जिला एक धार्मिक ऐतिहासिक तथा नैसर्गिक महत्व का जिला है। यहाँ विद्यार्थियों,सैलानियों,इतिहास एवं पुरातत्व के अध्येताओं के देखने और जानने के लिए अनेकों स्थल हैं। कवर्धा रियासत की एक महत्वपूर्ण जमीदारी स/लोहारा है। जहाँ राजमहल में एक आकर्षक एवं ऐतिहासिक बावली है जिसका निर्माण राजा बैजनाथ सिंह के वंश के लाल राजे सिंह ने लगभग 150वर्ष पूर्व कराया था।
आदित्य श्रीवास्तव ने बताया कि निर्माण की दृष्टि से यह बावली राजस्थानी शैली में निर्मित है।राजस्थानी कारीगरों के द्वारा निर्मित होगा ऐसा महसूस होता है। यह चतुष्कोणीय आकृति में बना चार मंजिला है जिसका दो मंजिल पानी में डूबा रहता है,नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई है।ऊपर से देखने पर यह यंत्र/दीवाल घड़ी जैसी दिखाई पडती है।बावली में आठ छोटे कमरे जैसे निर्माण हैं जिनका उपयोग राज-रानी गर्मियों में गर्मी से बचने आराम,स्नान करने के लिए करते रहे हैं क्योंकि गर्मियों में भीतर का तापमान बाहर से काफी कम होता है,कहते हैं राजा रानी यहाँ सुकून से बैठा करते थे। राजस्थानी शैली में निर्मित इस बावली के निर्माण का उद्देश्य जल संरक्षण, पेयजल उपलब्ध कराना तथा फुलवारी की सिंचाई करना ही प्रमुख रहता है। बावली की खासियत यह है कि इसका पानी कभी सूखता नहीं है। राजा खड्गराज सिंह जी इनको सुरक्षित एवं व्यवस्थित रखे हुए हैं,नजदीक ही एक रानी बावड़ी है जो सूखी एवं अनुपयोगी है।ठीक ऐसी ही बावली लेकिन आकार में छोटी कवर्धा राजपरिवार की फुलवारी में भी स्थित है।ये दोनों बावड़ियां राजस्थान का अहसास कराती हुई पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।निकट ही प्राचीन लेकिन भव्य राम मन्दिर निर्मित है।