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धराली का दर्द: करन माहरा का धामी सरकार पर बड़ा हमला, राहत से ज्यादा सच्चाई पर लगी रोक

 उत्तराखंड आपदा: राजनीति बनाम पीड़ा-यह लेख उत्तराखंड में हाल ही में आई आपदा के बाद की स्थिति और उस पर राजनीति के प्रभाव को दर्शाता है। कांग्रेस अध्यक्ष करन माहरा ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

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 प्रशासन का रवैया: सच्चाई दबाने की कोशिश?-माहरा के अनुसार, प्रशासन ने उन्हें और पत्रकारों को आपदा प्रभावित क्षेत्र तक पहुँचने से रोका। सरकार के पक्षधर पत्रकारों को ही हेलीकॉप्टर से भेजा गया, जिससे सच्चाई छिपाने की कोशिश की गई। यह रोक केवल सूचना तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि समय पर बचाव कार्य में बाधा डालने का भी काम किया, जिससे कई जानें बच सकती थीं। यह प्रशासन की लापरवाही और सच्चाई को दबाने की कोशिश को दर्शाता है।

 पीड़ितों की अनदेखी: मानवीय संवेदना का अभाव?-आरोप है कि प्रशासन ने पीड़ितों के परिजनों को भी अपने घरवालों से मिलने से रोका। यह अत्यंत अमानवीय कृत्य है, क्योंकि पीड़ितों के परिजन अपने प्रियजनों की तलाश में बेबस थे। समय पर सही कदम न उठाए जाने के कारण स्थिति और भी भयावह हो गई। यह घटना प्रशासन की उदासीनता और मानवीय संवेदना की कमी को उजागर करती है।

राहत कार्य में देरी: संसाधनों का दुरुपयोग?-माहरा का कहना है कि लैम्चागाड़ में एक छोटा सा अस्थायी पुल बनाकर राहत सामग्री और बचाव दल को आसानी से धराली पहुँचाया जा सकता था, लेकिन प्रशासन ने देरी की। उन्होंने खुद पैदल 50 किलोमीटर से ज़्यादा सफ़र तय किया। यह सवाल उठाता है कि क्या सरकार के पास संसाधन और अधिकारी हैं या नहीं, और अगर हैं तो उनका उपयोग क्यों नहीं किया गया? क्या सिर्फ़ हवाई दौरे और फोटो खिंचवाना ही उनका काम रह गया है?

धराली का दर्द: टूटे सपने और बेबसी-धराली में पहुँचकर माहरा ने एक भयावह दृश्य देखा। मलबे के ढेर के बीच टूटे सपने, बेघर लोग, लापता लोग, और सरकार के पास सही आंकड़े तक नहीं थे। बच्चों के स्कूल बैग और किताबें, बुजुर्गों के घर सब कुछ तबाह हो गया था। यह एक ऐसे गांव की कहानी है जहाँ जीवन पूरी तरह से ठहर गया है।

 फंसे मजदूरों की मदद: एक किरण आशा-माहरा ने धराली में फंसे 40-50 मजदूरों की मदद की, जिन्हें खाने, पैसे और रहने की जगह की कमी थी। उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया और सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया। यह घटना दर्शाती है कि आम लोग भी आपदा के समय एक-दूसरे का सहारा बन सकते हैं।

 सरकार की प्राथमिकता पर सवाल: राजनीति बनाम जनहित?- माहरा का मानना है कि सरकार ने राहत कार्य से ज़्यादा सच्चाई छिपाने में ध्यान दिया। हेलीकॉप्टर से फोटो खींचने में व्यस्त अधिकारी जमीनी हालात से अनजान रहे। उन्होंने कहा कि धराली के लोगों के आँसुओं को देखकर उन्हें न्याय, राहत और सम्मान दिलाने का संकल्प लिया है।

 धराली की आवाज: एक संकल्प-माहरा ने कहा कि वह धराली के लोगों की आवाज बनकर तब तक लड़ेंगे जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता। यह सिर्फ़ एक आपदा की कहानी नहीं, बल्कि उस सिस्टम की विफलता है जो संकट के समय भी राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाता।

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