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उद्योग जगत के संगठनों ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय पर राष्ट्रीय चिकित्सा उपकरण नीति के उल्लंघन का आरोप लगाया

 उद्योग जगत के लीडर्स ने प्रधानमंत्री  से आग्रह किया कि नवीकृत चिकित्सा उपकरणों के आयात को अनुमति देने के मुद्दे पर हस्तक्षेप करें

नई दिल्ली । पीएचडी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डिवाइसेज़ (ए आई एम ई डी) ने मैनुफैक्चरर्स ऑफ इमेजिंग, थेरेपी एण्ड रेडियोलोजी डिवाइसेज़ (एमआईटीआरए), एसोसिएशन ऑफ डायग्नॉस्टिक मैनुफैक्चरर्स ऑफ इंडिया (ए डी एम आई) तथा मेडटेक उद्योग के हितधारकों के सहयोग से पीएचडी हाउस में एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया। जहां पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी), स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक(डीजीएचएस) तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्ल्यू) द्वारा हाल ही में जारी कार्यालय ज्ञापन के संदर्भ में गंभीर विषयों पर चर्चा की गई।

ये ज्ञापन नवीकृत एवं पहले से इस्तेमाल किए जा चुके चिकित्सा उपकरणों के आयात की अनुमति देते हैं, बावजूद इसके कि इसी तरह की डिवाइसेज़ का निर्माण भारत में किया जाता है। उद्योग जगत के लीडरों का मानना है कि यह भारत को चिकित्सा उपकरण निर्माण में आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा खतरा है, साथ ही यह प्रधानमंत्री जी के ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों में बाधा भी उत्पन्न करता है। यह देश की स्वदेशी निर्माण क्षमता में रूकावट उत्पन्न करता है। इसके अलावा मरीज़ों की सुरक्षा के संबंध में भी गंभीर मुद्दों की संभावना उठाई गई है, क्योंकि हो सकता हैकि नवीकृत किए गए चिकित्सा उपकरण, नव निर्मित उपकरणों की तरह गुणवत्ता के मानकों पर खरे न उतरें, जो मरीज़ोंकी सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का कारण हो सकता है।

उद्योग जगत के दिग्गजों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह ज्ञापन स्वदेशी मेडटेक सेक्टर को कमज़ोर बनाता है, जो हाल ही के वर्षों में ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत निवेश के चलते तेज़ी से विकसित हुआ है। भारत द्वारा उच्च गुणवत्ता की मेडिकल डिवाइसेज़ बनाने की क्षमता के बावजूद नवीकृत डिवाइसेज़ के आयात की अनुमति देना, घरेलू सेक्टर की प्रगति में बड़ी बाधा बन सकती है। पहले से इस्तेमाल की जा चुकी और नवीकृत मेडिकल डिवाइसेज़ के आयात को बढ़ावा देकर यह पॉलिसी भारतीय उद्यमियों के लिए इनोवेशन और निवेश में बाधा उत्पन्न करती है, तथा भारत के प्रतिस्पर्धी मेडकटेक उद्योग के विकास में रूकावट है।

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