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देहरादून का खाराखेत, जहां नमक कानून तोड़ा गया

राम प्रताप मिश्र
जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की यह पंक्तियां भले ही उर्दू अदब का हिस्सा हों लेकिन उस समय के सेनानियों के लिए निश्चित रूप से महत्वपूर्ण पंक्तियां है। स्वतंत्रता आंदोलन के अमर सेनानियों को पूरा राष्ट्र याद कर रहा है। चाहे 15 अगस्त का पावन पर्व हो या 26 जनवरी का। हमें ऐसे सेनानियों की याद बरबस आ जाती है जिन्होंने इस राष्ट्र के लिए अपना आत्मोत्सर्ग कर दिया। जिन सेनानियों के कारण हम आज स्वतंत्र भारत में सांस ले पा रहे हैं उन्होंने इस स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

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इतिहस के दर्पण में यदि उत्तराखंड का आकलन किया जाए तो यहां के चप्पे-चप्पे से भारत की स्वतंत्रता का जुड़ाव है। कुछ स्थानों का स्ववतंत्रता आंदोलन से जुड़ाव है तो कुछ स्थान सम्राट अशोक के काल से जुड़े हुए है जहां कण कण में स्वतंत्रता की अलख जगती दिखती है। ऐसा ही एक स्थान है विकासनगर का खाराखेत। जहां नून नदी के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी गई थी। यह घटना 20 अप्रैल 1930 की है जहां स्वतंत्रता आंदोलन के सपूतों ने नमक बनाकर कानून तोड़ा था। ऐसे लोगों की स्वतंत्रता आंदोलन में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका थी और उसी के बल पर हम सब आज पूरी तरह स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं।

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उत्तराखंड के देहरादून जनपद के विकासनगर में स्थित है खाराखेत गांव। यह वही स्थान है जहां स्थित खाराखेत स्वतंत्रता आंदोलन का गवाह है। इन स्थानों से हमें राष्ट्र भक्ति की प्रेरणा और पाथेय मिलता है। राष्ट्रवाद की यह भावना इसी बात का संकेत देती है कि अंग्रेजों के शासनकाल में नमक सत्याग्रह के माध्यम से पीढ़ी को जगाने का काम किया गया था। खाराखेत वह गांव है जहां गांधीजी के आह्वान पर स्वतंत्रता के संवाहकों ने अंग्रेजों का कानून तोड़ा था। इतिहास बताता है कि 20 अप्रैल 1930 को नून नदी के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश शासन को बड़ी चुनौती दी गई। स्वतंत्रता के प्रेमियों ने नून नदी के किनारे नमक बनाकर अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ा था। ऐसे महापुरुषों का नाम इतिहास में भले ही राष्ट्रीय फलक पर प्रचलित न हुआ हो लेकिन खाराखेत में एक शिलापट्ट पर उनके नाम अंकित है।

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देहरादून नगर से 18 किलोमीटर दूर खाराखेत में 20 अप्रैल, 1930 को अखिल भारतीय नमक सत्याग्रह समिति के नेतृत्व में स्वतंत्रता के पुजारियों ने नमक बनाकर अंग्रेजों के नमक कानून को तोड़ा था। इसी अभियान में खाराखेत को पूरे देश में प्रसिद्धि दिलाई। खाराखेत में एक स्तंभ बना है जिसे गांधीजी का स्तंभ कहा जाता है। इस स्तंभ पर जिन सेनानियों के नाम अंकित है उनमें हुकम सिंह, अमर सिंह, रीठा सिंह, धनपति, रणवीर सिंह, कृष्ण दत्त वैद्य, नारायण दत्त, महावीर त्यागी, नरदेव शास्त्री, दाना सिंह, श्रीकृष्ण, नत्थू राम, ध्रुव सिंह, किशन लाल, गौतम चंद, चौधरी बिहारी लाल, स्वामी विचारानंद, हुलास वर्मा, रामस्वरूप, नैन सिंह, किरण चंद आदि के नाम शामिल है। इसे प्राकृतिक परिवेश का नाम दिया जाए या नमक कानून तोड़ने का परिणाम के आज भी खाराखेत में बह रही नून नदी का पानी खारा लगता है। देहरादून नगर से बाहर मसूरी पर्वतमाला की तलहटी में बसा, खाराखेत गांव आज भी छोटा गांव है। जहां लगभग 40 घर हैं। प्रकृति के सुरम्य वातावरण में बसा यह शांत गांव स्वतंत्रता आंदोलन की अलख जगाने वाला गांव रहा होगा कोई नहीं कह सकता।

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यहां का दैनिक जीवन किसी भी आम पहाड़ी गांव से अलग नहीं है। कुछ साल पहले तक, गांव पहुंचने के लिए लगभग दो किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती थी और नून नदी की धारा को पार करना पड़ता था। ‘नून’ पर पुल बनने और गांव की सीमा को छूने वाली कंक्रीट की सड़क बनने से यहां के गांव के लोगों का जीवन बेहतर होता दिख रहा है। औपनिवेशिक काल के दौरान यहां एक खास घटना घटी और इस घटना ने इस शांत गांव को इतिहास के पन्नों में एक अच्छी पहचान दिलाई। खाराखेत गांव से नीचे आती नून नदी घाटी से नीचे की ओर बहती है। दांडी मार्च या नमक सत्याग्रह या दांडी सत्याग्रह एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन था जो राज सरकार के चंगुल से आज़ादी की लड़ाई पर केंद्रित था। नमक पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कर लगाया जाता था, जो उनके कुल राजस्व का लगभग 8 प्रतिशत था। नमक एक ऐसी वस्तु थी जिसका प्रयोग हर कोई करता था और इसलिए इस पर केंद्रित विरोध का उद्देश्य एक आम उद्देश्य यानी स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जनमानस के एक बड़े हिस्से को एकजुट करना था। दांडी मार्च (पैदल यात्रा) 12 मार्च 1930 से 06 अप्रैल 1930 तक चला , जिस दिन महात्मा गांधी ने दांडी में नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा था। कानून तोड़ने के लिए गांधीजी के साथ कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था। लेकिन इस आंदोलन का दूरगामी असर हुआ। देश के दूसरे हिस्सों में भी इसी तरह के विरोध प्रदर्शन शुरू हुए।

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दांडी मार्च से प्रेरित होकर, देहरादून और उसके आस-पास के कई क्रांतिकारियों ने इसी तरह का विरोध करने का फैसला किया। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि ‘खाराखेत’ नाम खुद हिंदी शब्द “नमकीन” से लिया गया है। नून नदी (जिसके बारे में हमने शुरुआत में लिखा था) गांव के पास बहती है। यह एक बारहमासी नदी है, हालांकि पिछले कुछ सालों में पानी की मात्रा में काफी कमी आई है। चूंकि ढाल कम है, इसलिए पानी का प्रवाह भी धीमा है और इसलिए यह अधिक वाष्पीकरण की अनुमति देता है, जिसके परिणामस्वरूप नमक बनता है। देहरादून और उसके आसपास के स्वतंत्रता सेनानी जिनमें महावीर त्यागी, कृष्ण दत्त वैद, नारायण दत्त डंगवाल, नरदेव शास्त्री, स्वामी विचारानंद, हुलास वर्मा, राम स्वरूप, चौधरी बिहारी और अन्य शामिल थे, 20 अप्रैल से 19 मई के बीच छह समूहों में खाराखेत में एकत्र हुए और नमक बनाया और फिर इसे देहरादून के टाउन हॉल (वर्तमान तहसील चौक क्षेत्र) में जनता को वितरित किया गया। तत्कालीन नमक कानून के अनुसार, यह असंवैधानिक था और इसके लिए 6 महीने से लेकर 1 साल तक की सजा हो सकती थी। खाराखेत के वीर स्वेच्छा से जेल गए, लेकिन इससे महात्मा गांधी द्वारा पहले दिए गए आह्वान के अनुरूप एक स्पष्ट संदेश गया। राष्ट्र “सम्पूर्ण स्वराज्य” (ब्रिटिश शासन के चंगुल से पूर्ण स्वतंत्रता) की तलाश में एकजुट हो रहा था। खारा खेत पहुंचने पर एक धातु का पट्ट आपका स्वागत करता है। जिस पर लिखा है “महात्मा गांधी नमक सत्याग्रह आंदोलन स्मारक” पर स्थापित है। यह शिलापट्ट जिस पर लोगों के नाम शामिल है। एक छोटे से रास्ते में यह स्मारक अपना सिर ऊंचा कर खड़ा हुआ है और यह बताने को काफी है कि यहीं पर स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों का काला कानून तोड़ा था।

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