परम्परागत खेती अब बीते दौर की बात हो गई है। नया दौर उन्नत तकनीक और प्राकृतिक खेती का है। बालाघाट जिले के किसानों ने इस व्यवहारिक तथ्य को समझा और प्राकृतिक तरीके से खेती कर सर्वोत्तम किसान का सम्मान हासिल किया।
किसानों की प्रगतिशीलता और उद्यमशीलता को अवसर प्रदान करने के लिये हर जिले में आत्मा परियोजना संचालित की जा रही है। इस परियोजना में बालाघाट जिले में अत्यंत सराहनीय काम हुआ है। प्राकृतिक खेती अपनाकर यहां के पांच किसानों ने न केवल मुनाफा कमाया, बल्कि सर्वोत्तम किसान होने का सम्मान भी हासिल किया है। इन्हें प्राकृतिक खेती के प्रसार उन्नत कृषि तकनीकों का इस्तेमाल करने एवं पर्यावरण संरक्षण में योगदान के लिये सम्मानित किया गया है।
बालाघाट जिले के कटंगी के किसान श्री रामेश्वर चौरीकर ने प्राकृतिक रूप से मशरूम की खेती करने के लिये रोचक तरीका अपनाया। इसके लिए रामेश्वर ने 10 गुणा 10 के कमरे में दीवारों पर टाट और सतह पर रेत का उपयोग किया और सुबह-शाम स्प्रे कर इस कक्ष को वातानुकूलित बना लिया है। क्योंकि मशरूम की खेती के लिये तापमान 16 से 25 डिग्री सेल्सियस तक जरूरत के मुताबिक मेन्टेन करके रखना पड़ता है। 45 से 90 दिन में इसकी फसल आती है। मशरूम बाजार में 200 से 250 रूपये किलो तक बिकता है। पहली फसल बेचने पर ही रामेश्वर को अच्छा खासा मुनाफा हुआ। मशरूम की खेती के इस नवाचारी तरीके के लिये रामेश्वर को ‘जिले का सर्वोत्तम किसान पुरस्कार- मिला है। इसी तरह आगरवाडा (कटंगी) के श्री दीनदयाल को उन्नत कृषि तकनीकों से खेती- किसानी के लिये, थानेगाँव (वारासिवनी) के श्री नरेन्द्र सुलकिया को कृषि उद्यानिकी में उत्कृष्ठ प्रदर्शन के लिये, बटरमारा (किरनापुर) के श्री हिरेन्द्र गुरवे को रेशम कीट पालन के लिये और चिचरंगपुर (बिरसा) के श्री जंगल सिंह को उन्नत नस्लों के पशुपालन से अतिरिक्त आय अर्जन के लिये जिलास्तरीय सर्वोत्तम किसान पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा अन्य 28 प्रगतिशील किसानों को उन्नत कृषि की विभिन्न श्रेणियों में ब्लॉकस्तरीय सर्वोत्तम किसान पुरस्कार दिया गया है। जिले के पांच सर्वोत्तम स्व-सहायता समूहों को कृषि में विशेष प्रदर्शन के लिये प्रोत्साहन राशि भी दी गई है।
बालाघाट जिले में प्राकृतिक (आर्गेनिक) खेती-किसानी यहां के किसानों के लिये बड़े फायदे का सौदा बन गई है। जिले के बडगाँव स्थित किसान विकास केन्द्र में किसानों को उन्नत व प्रगतिशील खेती के लिए विभिन्न प्रकार के व्यवहारिक प्रशिक्षण एवं एक्सपोजर विजिट कराये जाते हैं। इन्हीं प्रशिक्षणों एवं एक्सपोजर विजिट्स में मिले नवाचारों से प्रेरित होकर किसानों ने यहां के किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है। प्राकृतिक खेती पर्यावरण संरक्षण में भी सहयोगी है। इससे किसानों के एक पंथ दो काज पूरे हो रहे हैं।