आचार्य पं. पृथ्वीनाथ पाण्डेय
हम दीर्घकाल से देखते-समझते आ रहे हैं कि दीप-उत्सव ‘दीपावली’ के अवसर पर भारतीय समाज आज भी भ्रम की स्थिति में बना हुआ है। इसका मुख्य कारण है, ‘दीपावली’ त्योहार और उसके साथ जुड़े कई शब्द-प्रयोग का भ्रान्तिपूर्ण प्रयोग किया जाना। अब ऐसी स्थिति हो गयी है कि उन शब्दों में से कौन-से शब्द शुद्ध हैं और क्यों? इन प्रश्नों के उसे संतोषप्रद उत्तर प्राप्त नहीं होते। हम आज इस प्रकाशमय त्योहार के अवसर पर ‘दीपावली’ के साथ जुड़े लगभग सभी शब्दों के प्रयोग-औचित्य पर कारणसहित सार्थक विचार करेंगे।
भारतीय समाज में ऐसे बहुसंख्यजन हैं, जो आज तक यह नहीं जान और समझ पाये हैं कि ‘दीया’ शब्द उपयुक्त है या ‘दिया’ शब्द, फिर क्यों। ‘दीया’ के बाद क्रमश: ‘वर्तिका’ (बाती), ‘तैल’ वा ‘घृत’, ‘दीयासलाई’, ‘प्रज्वलन’ तथा ‘दीपावली’ की बारी आती है।
‘दीया’ शब्द ‘दीप’ का तद्भव है। ‘दीप’ की उत्पत्ति जिस धातु से होती है, वह ‘दीप्’ है, जिसका अर्थ ‘चमकना’ है। इस धातु में ‘क’ के योग से ‘दीप’ शब्द की रचना होती है। यह शब्दभेद के विचार से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग की दृष्टि से पुंल्लिंग-शब्द। इस ‘दीप्’ धातु से ‘दीपक’ शब्द का भी सर्जन होता है। इसके लिए ‘दीप्’ धातु में दो प्रकार के प्रत्यय जोड़े जाते हैं। पहला प्रत्यय ‘णिच्’ है और दूसरा ‘ण्वुल्’, जिसके जुड़ते ही ‘अक’ की ध्वनि निर्गत होती है। इस ‘दीपक’ का स्त्रीलिंग-शब्द ‘दीपिका’ है। लघु दीप को ‘दीपिका’ कहते हैं। संध्या के समय गायी जानेवाली एक रागिनी का नाम भी ‘दीपिका’ है।
आप सब सुस्पष्ट समझ लें कि ‘दियासलाई’ अनुपयुक्त शब्द है; ‘दीयासलाई’ उपयुक्त शब्द है। ‘दीयासलाई’ को ‘माचिस’ भी कहा जाता है, जो आंग्ल (अँगरेज़ी)-शब्द ‘मैचेस’ का अपभ्रंश-शब्द है। आज यही ‘माचिस’ शब्द जनप्रचलित हो चुका है।
अब ‘दीया’ के प्रयोग को समझें। आप यदि कहते हैं– ‘दीया’ जल रहा है’ तो आपका वाक्य अशुद्ध और अनुपयुक्त कहलायेगा; क्योंकि ‘दीया’ नहीं जलता, दीये में रखी गयी वर्तिका (बाती) जलती है। हम आज भी गाँवों में यह कहते सुनते हैं– दीया-बाती कर आओ।
जो भी लोग ‘दीया’ (दीपक) के अर्थ में ‘दिया-दिये-दिए’ का प्रयोग करते आ रहे हैं, उन सबको अपने इस शब्दप्रयोग के प्रति सजग और सतर्क हो जाना चाहिए; क्योंकि उनका प्रयोग अशुद्ध और अनुपयुक्त तो है ही, घोर आपत्तिजनक भी; क्योंकि समाज को दिशा दिखानेवाले ही लोग शब्दप्रयोग के प्रति अशुद्धता को धारण करेंगे तो समाज में कैसे सुधार हो पायेगा? ज्ञातव्य है कि ‘दिया’ क्रिया का शब्द है, जिसका ‘देने’ के अर्थ में व्यवहार होता है।
वर्तिका :– यह संस्कृत-भाषा से उत्पन्न शब्द है और शब्द-भेद की दृष्टि से विकारी संज्ञा-शब्द। लिंग-प्रकारानुसार यह स्त्रीलिंग का शब्द है। ‘वर्तिका’ की रचना को समझने के लिए पहले ‘वर्तिक’ को समझें। यह ‘वृत्त्’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ है, ‘वर्तमान रहना’। ‘बटेर’ का तत्सम शब्द भी ‘वर्तिक’ कहलाता है। उक्त धातु में जैसे ही ‘टाप्’ प्रत्यय जुड़ता है वैसे ही ‘वर्तिका’ शब्द का सर्जन (‘सृजन’ शब्द अशुद्ध है।) होता है।
तैल :– हम जिसे ‘तेल’ कहते हैं, वह अशुद्ध शब्द है। उसका शुद्ध शब्द ‘तैल’ होता है। तेल ‘तैल’ का विकृत रूप है एवं तद्भव शब्द भी। ‘तैल’ शब्द संस्कृत-भाषा से निर्गत हुआ है। यह शब्द-भेद के विचार से संज्ञा का शब्द है तथा लिंग की दृष्टि से पुंल्लिंग कहलाता है। जब ‘तिल’ शब्द में ‘अञ्’ प्रत्यय जुड़ता है तब ‘तैल’ शब्द की उत्पत्ति होती है। वास्तव में, ‘तैल’ का शाब्दिक अर्थ है, ‘तिल से सम्बन्धित’। तैल/तेल उसे ही कहा जायेगा, जिसे तिल के दानों को पेरकर निकाला जाता है। ‘तिल’ का माहात्म्य (‘महात्म, महात्म्य’ अशुद्ध हैं।) दान, तर्पण, होमादिक करने का है।
घृत :– आप ‘घृत’ को समझें। यह ‘घृ’ धातु का शब्द है, जिसका अर्थ ‘सींचना’ है। इसी धातु में ‘क्त’ प्रत्यय के योग से ‘घृत’ की रचना होती है। ‘घृत’ शब्द ‘घी’ का तत्सम रूप है। ‘घृत’ संस्कृत-भाषा का शब्द है, जो संज्ञा का स्त्रीलिंग-शब्द है।
महाकवि वृन्द कहते हैं, “सीधी अँगुरी घी जम्यो क्योंहूँ निकसति नाहिं।”
प्राकृत में इसे ‘घीअ’ और भोजपुरी मे ‘घीव’/’घीउ’ कहते हैं। यह एक प्रकार का खाद्य- पदार्थ है, जिसे मक्खन को तपाकर बनाया जाता है।
प्रज्वलन :– प्राय: लोग इसकी वर्तनी अशुद्ध लिखते आ रहे हैँ। इस शब्द की शुद्ध वर्तनी लिखना बहुत आसान है। यह ‘दीप्ति’ के अर्थ मे ‘ज्वल्’ धातु का शब्द है। इस धातु के पूर्व प्रकृष्ट रूप से/ उत्तम प्रकार से के अर्थ मे ‘प्र’ उपसर्ग लगा हुआ है तथा अन्त मे ‘ल्युट्’ प्रत्यय जुड़ा हुआ है। इसप्रकार ‘प्रज्वलन’ शब्द का सर्जन होता है। इसे शुद्ध लिखने के लिए पहले आप ‘ज्वलन’ लिखेँ, फिर ‘ज्वलन’ से ठीक पहले ‘प्र’ लगा देँ। इस तरह से आपका शुद्ध शब्द ‘प्रज्वलन’ बनेगा। इसी तरह से ‘प्रज्वलित’ शब्द शुद्ध है। इसमे भी आरम्भ मे ‘प्र’ उपसर्ग है तथा ‘ज्वल्’ धातु मे ‘क्त’ प्रत्यय जुड़ा हुआ है। इसप्रकार ‘प्रज्वलित’ शब्द की रचना होती है। दीप-प्रज्वलन ‘दीपावली’ का प्रतीक है। ‘दीपावली’ को ‘दीपमाला’ भी कहते हैँ। ‘दीपावली’ त्योहार को कोई ‘दिपावली’, कोई ‘दिवाली’ तो कोई ‘दीवाली’ कहता है। बहुसंख्यजन तो यह जानते ही नहीँ कि ‘दिपावली’, ‘दिवाली’ क्या हैँ और ‘दीवाली’ क्या। बस, लोग मना रहे हैँ तो वे भी उसी मे शामिल/सम्मिलित हो गये। आइए! हम इन शब्दोँ को सकारण समझते हैँ।
दीपावली-दीवाली :– इन दोनों ही शब्द-प्रयोग को लेकर लोग भ्रम और संशय की स्थिति में बने रहते हैं। यही कारण है कि कुछ लोग ‘दीपावली’ तो कुछ ‘दिपावली’; वहीं कुछ लोग ‘दिवाली’ तो कुछ ‘दीवाली’ का प्रयोग करते आ रहे हैं। यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि प्रत्येक शुद्ध शब्द-प्रयोग उसके अर्थ पर निर्भर करता है। शुद्ध शब्द ‘दीपावली’ है, जो ‘दीप’ (दीपक) और ‘आवली’ (पंक्ति) से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है, ‘दीपों की पंक्ति’।
मूल शब्द ‘दीप’ है, न कि ‘दिप’ है। इसी अर्थ में ‘दिवाली’ शब्द का भी प्रयोग होता है, जो कि अनुचित और अनुपयुक्त है; क्योंकि उपयुक्त शब्द ‘दीवाली’ है। जिस पट्टे/पट्टी को किसी यन्त्र से खींचकर खराद, सान आदिक चलाये जाते हैं, उसे ‘दिवाली’ कहते हैं। यद्यपि अनेक शब्दकोश में ‘दिवाली’ का भी ‘दीपावली’ के अर्थ में प्रयोग किया गया है तथापि वह व्याकरण के नियम के विरुद्ध है। कोशकार कोश को भरने के लिए सभी प्रचलित शब्दों को उसी अर्थ में ग्रहण कर लेते हैं, जो लोक-व्यवहार में हो सकते हैं। लोक-व्यवहार और शुद्ध-उपयुक्त प्रयोग दो अलग-अलग विषय हैं। इसका स्थानिक प्रयोग ‘दिवारी’ है और दिपालि-दीपाली भी। ‘उद्धव शतक’ में वर्णन है, “आवति दिवारी बिलखाइ ब्रजवासी कहै।” दीपावली का बिगड़ा हुआ रूप ‘दीवाली’ है, दिवाली नहीं; परन्तु विशुद्ध और उपयुक्त शब्द ‘दीपावली’ ही है।
बहुसंख्यजन प्रयोग करते आ रहे हैं–
1– दीपावली की शुभकामनाएँ।
2–दीपावली पर शुभकामनाएँ।
3–दीपावली के लिए शुभकामनाएँ।
ये तीनों शुभकामनात्मक वाक्य अशुद्ध हैं और अनुपयुक्त हैं; क्योंकि हम दीपावली अथवा किसी त्योहार के अवसर पर शुभकामना को व्यक्त करते हैं, इसलिए शुद्ध और उपयुक्त वाक्य होगा– दीपावली के अवसर पर शुभकामना।
‘कामनाबोधक’ शब्द ‘शुभकामना’ वा ‘कामना’ भावप्रधान होता है इसलिए इसका अलग से बहुवचन नहीं बनाया जा सकता। इच्छाबोधक शब्द स्वयं में बहुवचन का शब्द है। हम इच्छाएँ-इच्छाओं, कामनाएँ-कामनाओं इत्यादिक का प्रयोग नहीं कर सकते।
अन्त में, आप समस्त पाठक-पाठिकावर्ग को हमारी ओर से दीपावली/दीपमाला के अवसर पर आत्मिक सुख-समृद्धि की कामना है।
(लेखक प्रसिद्ध भाषाविद् हैं।)