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विशेष लेख

Special reports : नि:शब्द मतदाता, फैसला अंतिम

रायपुर (प्रतिदिन राजधानी )। 12 अप्रैल देश में आम चुनाव को लेकर माहौल तैयार हो गया है। राजनीतिक दल सभा के माध्यम से मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं जुबानी जंग चल रही है शब्द बाण चलाए जा रहे हैं । निर्वाचन आयोग में शिकायत निरंतर चल रहे हैं पर क्या शब्दभेदी बाण पर अंकुश लगाया जा सकेगा। आधुनिक दौर की राजनीति में रणनीति बनाने वाले खुद शब्दभेदी बाण तैयार कर रहे हैं। जुमले और कहावतों का दौर खत्म हो गया अब तो केवल राजनीति को निजता से बचने की जरूरत आन पड़ी है। मतदाता जो मुद्दों पर चर्चा करता रहा है आज नि:शब्द होकर रह गया है। मतदाता गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, महंगाई और हिंदुत्व पर चौक चौराहों पर चर्चा में मशगुल रहता रहा है, लेकिन आज स्थिति है कि मतदाता चर्चा में मुद्दों से अधिक राजनीति में राजनेताओं के चरित्र पतन की चर्चाओं को देख रहा है। एक दौर था देश में पॉलिटिकल पार्टियों राजनेताओं के विरोध पर सभाए करती थी, किंतु उन नेताओं में आत्म सम्मान और व्यक्तिगत आग्रह पूर्वाग्रह नहीं रहता था। आज के दौर में नेता पद की लालसा में व्यक्तिगत पूर्वाग्रह को आगे रखकर आलोचनाएं प्रतिक्रियाएं कर रहे हैं जो कि अनुचित है । पॉलिटिकल पार्टियों के प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया कर्मी रट्टू तोता की तरह प्रश्न करते हैं, यह प्रायोजित प्रश्न मीडिया कर्मियों की जनरल नॉलेज को चुनौती दे रहे हैं, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। मीडिया स्वतंत्र है, निष्पक्ष होकर काम करना चाहिए। मीडिया की लोकतंत्र के प्रति जवाबदेही है। संविधान में आर्टिकल 19 क मीडिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ काम करने का अवसर दिया गया शायद यही वजह है कि प्रशासनिक से लेकर राजनीतिक मंच में मीडिया का दबाव रहता है। परंतु हाल के दिनों में ऐसा लगा दबाव में काम कर रहा है। मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है, नेताओं को मीडिया के खिलाफ बद जुबानी करते भी सुना गया फिर भी मीडिया कर्मी मौन है, क्योंकि आधुनिक होने का चस्का लगा हुआ है, जो गंभीर है। मीडिया के शब्द मतदाताओं के शब्द होते हैं। ऐसे में मीडिया के अपने दायित्वों को समझना होगा, तभी मतदाता के पास शब्द हो पाएंगे और अधिकार करने में परेशानी नहीं रहेगी। आज मतदाता नेता चुने जा रहे हैं उनके पास मुद्दे नहीं है, केवल चेहरा देखकर नि:शान पर बटन दबा दिया जाएगा। ऐसी अभिव्यक्त उचित नहीं रह सकती। मीडिया को खोलकर सामने आने की जरूरत है और वास्तविकता के मुद्दों के साथ मतदाताओं को जगाने की जरूरत है ताकि केंद्र और राज्य में सरकार बनते समय जिम्मेदार लोग संविधान की शपथ के साथ काम कर सके, अन्यथा पंगु सरकार गरीबी और भुखमरी बढ़ाने में योग्य संचालक बनते रहेंगे।

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