ये हैं रक्षाबंधन से जुड़ी प्रचलित कहानियां
नई दिल्ली। राखी का त्योहार यानी भाई-बहन के प्यार का त्योहार। हम अपने भाई-बहनों से कितना भी लड़ लें, लेकिन उनके बिना रहा भी नहीं जाता। इस दिन भाई-बहन के इसी नोक-झोंक भरे रिश्ते को मनाया जाता है। सावन मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला ये त्योहार इस साल 19 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन बहनें सज-संवरकर अपने भाई की आरती उतारती हैं, उनके टीका लगाती है और उनकी कलाई पर राखी बांधकर उनके मंगल के लिए कामना करती हैं। साथ ही, भाई बहन को ये वचन देता है कि वो हमेशा उसकी रक्षा करेगा। लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि इस त्योहार को मनाने की शुरुआत कैसे हुई थी? इसके पीछे कई धर्म से लेकर इतिहास से जुड़ी कई कहानियां हैं , जिनके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए।
कृष्ण-द्रौपदी से जुड़ी है कहानी
महाभारत से जुड़ी एक कहानी है कि भगवान कृष्ण, द्रौपदी को अपनी बहन मानते थे। आपको बता दें कि द्रौपदी पंचकन्याओं में से एक मानी जाती हैं। एक बार की बात है कि भगवान कृष्ण की उंगली में चोट लग जाती है और खून बहने लगता है। इसे रोकने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी के आंचल को चीरकर उनकी उंगली पर पट्टी बांधी थी।
ये खबर भी पढ़ें : मुख्यमंत्री के सुशासन में किसान हुए खुशहाल
द्रौपदी की इस श्रद्धा और प्रेम को देखकर भगवान कृष्ण ने उनकी सुरक्षा का वचन दिया था और कौरवों की सभा में द्रौपदी चीर हरण के समय चमत्कार करके अपनी द्रौपदी की लाज बचाई थी। ऐसा माना जाता है कि तभी से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा, जिसमें बहनें भाई की कलाई पर कच्चा धागा बांधती हैं और भाई बदले में बहने की रक्षा का वचन देते हैं।
देवी लक्ष्मी और राजा बाली की कहानी
रक्षाबंधन से जुड़ी एक ये कहानी भी प्रचलित है, जो देवी लक्ष्मी और राजा बाली से जुड़ी है। बाली भगवान विष्णु का परम भक्त था और उन्होंने उसे वचन दिया था कि वे उसकी रक्षा करेंगे। इसके लिए वे उसके द्वारपाल बनकर रह थे। इस वजह से देवी लक्ष्मी को वैकुंठ में अकेली रह रही थीं। अपने पति को वापस लाने के लिए उन्होंने एक साधारण स्त्री का रूप धारण किया और राजा बाली के पास आश्रय लेने गईं। बाली ने उन्हें अपने महल में रहने की जगह दी। देवी लक्ष्मी के आने से बाली के जीवन में सुख-समृद्धी की बढ़ोतरी होने लगी।
ये खबर भी पढ़ें : कोलगेट ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ महत्वपूर्ण साझेदारी की शुरुआत की
फिर एक दिन सावन मास की पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी ने बाली की कलाई पर सूत का धागा बांधा और उसके लिए मंगल कामना की। इससे खुश होकर बाली ने उनसे मनचाही इच्छा मांगने को कहा। इस पर देवी लक्ष्मी ने द्वारपाल की ओर इशारा किया और अपने असली रूप में सामने आईं। भगवान विष्णु ने भी अपना असल स्वरूप लिया। बाली ने अपना वचन पूरा किया और भगवान विष्णु को देवी लक्ष्मी के साथ वैकुंठ जाने के लिए कहा। तब से रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।
ये खबर भी पढ़ें : आधुनिक तकनीकी का उपयोग कर खनिजों की करें खोज : सचिव पी. दयानंद
रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी
रक्षाबंधन की बात हो और रानी कर्णावती का जिक्र न हो, ऐसा नामुमकिन है। मेवाड़ के राजा राणा सांगा के साथ रानी कर्णावती का विवाह हुआ था। गुजरात के शासक बहादुर शाह से युद्ध में राणा सांगा वीरगति को प्राप्त हुए थे। ऐसे में मेवाड़ को हार से बचाने के लिए रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूं को पत्र में राखी भेजी और सहायता के लिए प्राथर्ना की, लेकिन ये राखी बादशाह हुमायूं तक काफी देर से पहुंची। इस वजह से जबतक हुमायूं अपनी सेना के साथ मेवाड़ पहुंचे तबतक रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया था और बहादुर शाह की विजय हो चुकी थी।