
H-1B वीज़ा फीस का नया नियम: भारतीय IT प्रोफेशनल्स के लिए बड़ी राहत!-अमेरिकी सरकार ने हाल ही में H-1B वीज़ा से जुड़ी एक बड़ी उलझन को सुलझा दिया है, जिससे भारतीय IT कंपनियों और वहां काम करने वाले प्रोफेशनल्स को काफी राहत मिली है। पहले जब यह खबर आई थी कि H-1B वीज़ा की फीस बढ़ाई जा रही है, तो लोगों के बीच काफी असमंजस की स्थिति पैदा हो गई थी। कई भारतीय इंजीनियर तो विदेश यात्रा के दौरान भी घबरा गए थे और वापस लौटने लगे थे। लेकिन अब सरकार ने साफ कर दिया है कि यह नई फीस सिर्फ उन लोगों पर लागू होगी जो नए वीज़ा के लिए आवेदन करेंगे। जो लोग पहले से ही H-1B वीज़ा पर अमेरिका में काम कर रहे हैं, उन पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह 1 लाख डॉलर की फीस 2026 से लागू होगी, जिसका मतलब है कि फिलहाल मौजूदा वीज़ा धारकों को किसी भी तरह की चिंता करने की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!भारतीय कंपनियों पर कम असर, लोकल हायरिंग पर बढ़ा फोकस-यह जानना वाकई दिलचस्प है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय IT कंपनियों ने H-1B वीज़ा पर अपनी निर्भरता को काफी कम कर दिया है। नासकॉम का कहना है कि अब ये कंपनियां अमेरिका में ही स्थानीय प्रतिभाओं को नौकरी देने और उनके कौशल को निखारने पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित कर रही हैं। पिछले कुछ सालों में IT सेक्टर ने अमेरिका में स्थानीय ट्रेनिंग और हायरिंग पर 1 बिलियन डॉलर से भी ज़्यादा का निवेश किया है। अगर आंकड़ों पर नज़र डालें तो 2015 में जहां भारतीय कंपनियों को 14,000 से ज़्यादा H-1B वीज़ा मिलते थे, वहीं 2024 में यह संख्या घटकर करीब 10,000 रह गई है। इस बदलाव से यह साफ है कि अब भारतीय कंपनियां इस तरह के नियमों से ज़्यादा प्रभावित नहीं होंगी, क्योंकि उन्होंने अपनी रणनीति को पहले ही बदल लिया है।
मिलेट जैसा ‘सुपरफूड’, H-1B वीज़ा भी अब ‘प्रीमियम’-H-1B वीज़ा अमेरिका में उच्च-कुशल श्रमिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। नासकॉम का हमेशा से यह मानना रहा है कि कुशल प्रतिभाओं का आना-जाना सुचारू और अनुमानित होना चाहिए, ताकि कंपनियां अपनी भविष्य की योजनाओं को बेहतर ढंग से बना सकें। H-1B वीज़ा को अमेरिका की नवाचार (innovation) और आर्थिक विकास का एक अहम हिस्सा माना जाता है। लेकिन अब जब इसकी फीस इतनी बढ़ा दी गई है, तो यह वीज़ा एक तरह से ‘प्रीमियम प्रोडक्ट’ जैसा हो गया है। हालांकि, अच्छी बात यह है कि भारतीय IT सेक्टर ने खुद को इस बदलाव के लिए पहले से ही तैयार कर लिया है। स्थानीय स्तर पर लोगों को नौकरी देने और उन्हें ट्रेनिंग देने पर ध्यान केंद्रित करके, यह झटका भारतीय कंपनियों के लिए उतना बड़ा नहीं होगा जितना पहले सोचा जा रहा था।
टेक प्रोफेशनल्स में घबराहट और सोशल मीडिया पर हंगामा-जब से इस नई फीस की घोषणा हुई है, भारतीय टेक प्रोफेशनल्स के बीच काफी घबराहट फैल गई थी। सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो वायरल हुए जिनमें लोग एयरपोर्ट से वापस लौटते हुए दिखाई दे रहे थे। कुछ तो फ्लाइट में बैठने के बाद भी उतर गए, क्योंकि उन्हें इस बात का डर सता रहा था कि कहीं अमेरिका में उनकी एंट्री पर रोक न लगा दी जाए। खासकर नवरात्रि के समय जब बहुत से लोग भारत लौटते हैं, तो अचानक नियम बदलने की खबर से उनकी चिंता और बढ़ गई थी। हालांकि, बाद में सरकार की ओर से मिली स्पष्टीकरण ने उन्हें बड़ी राहत दी है और अब वे निश्चिंत हैं।
H-1B वीज़ा पर भारतीयों का दबदबा कायम-आंकड़ों के अनुसार, H-1B वीज़ा लेने वालों में 70% से ज़्यादा भारतीय ही हैं। यही कारण है कि वीज़ा से जुड़े हर बदलाव का सीधा असर भारतीयों पर पड़ता है। 2025 में अब तक अमेज़न को सबसे ज़्यादा 10,000 से ज़्यादा वीज़ा मिले हैं। इसके बाद TCS, Microsoft, Meta, Apple और Google जैसी बड़ी कंपनियां इस सूची में शामिल हैं। भारतीय IT कंपनियां जैसे Infosys, HCL और LTIMindtree भी इस टॉप लिस्ट का हिस्सा हैं। यह साफ तौर पर दिखाता है कि अमेरिकी टेक इंडस्ट्री के लिए भारतीय टैलेंट आज भी रीढ़ की हड्डी की तरह है और उनकी मांग लगातार बनी हुई है।
आगे की रणनीति: कंपनियों को नई दिशा की ओर-विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 6 से 12 महीनों में इस फैसले का कोई खास असर देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि यह नया नियम 2026 से लागू होगा। लेकिन अगर लंबी अवधि की बात करें, तो कंपनियों को अपनी भविष्य की योजनाओं पर फिर से विचार करना पड़ सकता है। हो सकता है कि वे अमेरिका में और ज़्यादा स्थानीय लोगों को नौकरी पर रखें और भारत से अमेरिका भेजे जाने वाले इंजीनियरों की संख्या को और कम कर दें। इस तरह, धीरे-धीरे H-1B वीज़ा पर निर्भरता कम होती जाएगी और कंपनियां नई परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल लेंगी।

