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राज्य

शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे; जिन्हें वाजपेयी-आडवाणी ने संवारा, उनका अब कौन सहारा…

भजनलाल शर्मा राजस्थान के मुख्यमंत्री बने, तो मोहन यादव को मध्य प्रदेश की कमान मिली है।

छत्तीसगढ़ में भी विष्णु देव साय को सीएम बनाया गया है, लेकिन यहां दिग्गज रमन सिंह को स्पीकर का पद दिया है।

अब सवाल है कि हिंदी पट्टी के दो बड़े राज्यों को दो बड़े नेताओं यानी शिवराज सिंह चौहान और वसुंधरा राजे सिंधिया का क्या होगा? लंबे समय तक सीएम पद संभालने वाले ये नेता फिलहाल सिर्फ विधायक हैं।

फिलहाल, भाजपा ने अब तक साफ नहीं किया है कि 70 वर्षीय राजे और 63 साल के चौहान की भविष्य की भूमिका क्या होगी। लंबे समय तक राज्य के शीर्ष पद पर रहने के बाद दोनों ही नेता खासे लोकप्रिय हैं। ऐसे में कहा जाने लगा है कि भाजपा इन्हें पार्टी या केंद्र सरकार में जगह दे सकती है। माना जाता है कि दोनों नामों को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने शुरुआती रफ्तार दी थी।

साल 1991 में वाजपेयी ने लखनऊ और विदिशा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और दोनों ही सीटों पर उनकी जीत हुई थी। बाद में तय हुआ कि वह विदिशा सीट छोड़ेंगे। इसके बाद विदिशा से चौहान का नाम आगे बढ़ाया गया था।

क्या केंद्र में मिलेगी जगह
एमपी और राजस्थान आने से पहले राजे और चौहान दोनों ही नेता केंद्र सरकार में भी जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि राजे को साल 2014 में केंद्र में आने का मौका दिया गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया था।

बहरहाल, अब जब भाजपा ने दोनों ही राज्यों में कमान नए नेताओं को सौंप दी है, तो बड़े नामों को लेकर कयासों का दौर शुरू हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा के एक नेता का कहना है कि इन दिग्गजों को बगैर कार्यभार के रखना असंभव सा है।

उन्होंने कहा, ‘उन्हें बगैर कार्यभार के नहीं रखा जाएगा। उन्हें क्या काम मिलेगा? वे उसे स्वीकार करेंगे या नहीं? उन्हें कब मिलेगा? इन सवालों के जवाब अभी नहीं दे सकता। हमारा संगठन कार्यकर्ताओं का सम्मान करता है और बड़े समर्थकों वाले शीर्ष नेताओं को कामों से दूर नहीं रखा जा सकेगा।’ जबकि, कहा यह भी जाने लगा है कि अगर इन नेताओं ने मिलने वाले नए कामों को अस्वीकार किया, तो आलाकमान को फैसला करने में समय लग सकता है। साथ ही केंद्र सरकार में भी जिम्मेदारी मिलने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा रहा।

एमपी-राजस्थान में दोनों नेता मजबूत
राजस्थान में कई सांसद, विधायक और पार्टी नेता राजे के साथ नजर आते हैं। वहीं, एमपी में भी सबसे लंबे समय तक सीएम रहने का रिकॉर्ड बना चुके चौहान खासे लोकप्रिय हैं। 2018 के चुनाव में भाजपा की राजस्थान और एमपी में हार हुई थी। इसके बाद 2020 में भाजपा की वापसी के बाद एमपी की कमान दोबारा चौहान को ही सौंपी गई थी।

दिल्ली नहीं जाएंगे शिवराज?
रिपोर्ट के अनुसार, पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी दावा करते हैं कि भविष्य के प्लान को लेकर चौहान की तरफ से की गई टिप्पणियां केंद्रीय नेतृत्व को नाराज कर सकती हैं। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, उनका कहना है कि इस बात की संभावनाएं कम हैं कि उन्हें अब दिल्ली में मौका दिया जाएगा।

चौहान ने यहां संवाददाताओं के एक सवाल के जवाब में कहा, ‘मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता था कि मैं (दिल्ली) जाकर अपने लिए कुछ मांगने के बजाय मर जाना पसंद करूंगा।’ पिछले हफ्ते अगले मुख्यमंत्री को लेकर जारी अटकलों के बीच चौहान ने कहा था कि वह दिल्ली नहीं जाएंगे और दावा किया था कि वह कभी भी राज्य में शीर्ष पद की दौड़ में नहीं रहे हैं।

चौहान ने मंगलवार को कहा, ‘जब कोई व्यक्ति आत्मकेंद्रित होता है तो वह अपने बारे में ही सोचता है। लेकिन भाजपा एक मिशन है, हर कार्यकर्ता के लिए कुछ काम है। मुझे जो भी काम सौंपा जाएगा, मैं करूंगा।’

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