Join us?

लेख
Trending

पटाखों पर क्यों नहीं लगता प्रतिबंध

चेतन उपाध्याय

खुशियों का महापर्व दीपोत्सव हर साल की तरह इस वर्ष भी गुजर गया। जाते-जाते यह फिर वही सवाल छोड़ गया। वही सवाल, आखिरकार पटाखों पर देशव्यापी प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाता? ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ वर्ष 2008 से कार्यरत राष्ट्रीय संस्था ‘सत्या फाउंडेशन’ यह मांग हर बार करती है। इस साल संस्था ने गूगल, एक्स और फेसबुक आदि सोशल मीडिया के सर्च बॉक्स में तीन शब्द डाले-‘पटाखा, दीपावली, हिंसा’। इस पर पटाखे के कारण हिन्दू बनाम मुस्लिम विवाद की बहुचर्चित धारणा के विपरीत चौंकाने वाले नतीजे मिले। इसका निचोड़ यह निकला कि पटाखों के चलते पूरे देश में हिंसा और हत्या के ज्यादातर मामलों में, लड़ाई हिन्दू बनाम हिन्दू की है। और कोई आठवीं पास विद्यार्थी भी इंटरनेट पर ये सारे सबूत देख सकता है। यानी कि पटाखे ने हिन्दुओं को आपस में ही बंटने और कटने पर मजबूर कर दिया है। हालांकि यह भी सच है कि धर्म विरोधी का तमगा मिल जाने के डर से अधिकांश लोग इस पर आंख पर पट्टी बांधे रहते हैं। आमतौर पर पटाखे के विरोध में गांव-गांव और मोहल्ले-मोहल्ले में हो रहे भयंकर विरोध और हिंसा के तमाम मामले थाने और मीडिया तक पहुंचते ही नहीं हैं। धर्म, परंपरा और उत्सव की आड़ में यह अराजकता है। इसे नजरअंदाज करना देशहित में अच्छा नहीं।

अफसोस यह है कि साउंड प्रूफ घरों में रहने वाले नीति-निर्माता जनता की इस बदलती नब्ज को पकड़ पाने में विफल हैं। यह पटाखे ध्वनि प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। यह कड़वा सच है कि दीपावली का पटाखा हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़ाने का माध्यम बन गया है, मगर त्योहार और धार्मिक स्वतंत्रता की गूंज में ये सारी बातें नक्कारखाने में तूती की आवाज बन गई है। हैरानी यह है कि इस पर्व की आड़ में पटाखे का इस्तेमाल लोग अपने दुश्मनों को नुकसान पहुंचाने के लिए कर रहे हैं।

विदेशों में हरियाली का प्रतिशत बहुत ज्यादा होता है और यह हरियाली, आतिशबाजी के शोर और धुएं को सोख लेती है। साथ ही विदेशों में पटाखा फोड़ने के लिए एक बड़ा मैदान होता है जहां फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी तैयार रहती है। हमारे देश में बड़े लोगों के घरों के आसपास कोई पटाखा नहीं फोड़ सकता। मगर सामान्य स्थानों पर धर्म की आड़ में पटाखे खुलेआम फोड़े जाते हैं। शिकायत करने पर पुलिस ‘धार्मिक’ मामला बताकर पल्ला झाड़ लेती है। बेशक, पटाखों से लोहवान, गुग्गुलु और चंदन की दिव्य महक आती है, पर यह चलन बंद होना चाहिए।

केंद्र और राज्यों के नीति-निर्धारकों का यह दायित्व है कि वे समाज को सही दिशा दें। नायक बनकर उभरें। आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श स्थापित करें। यह किसी से छुपा नहीं है कि आतिशबाजी के कारण हर साल अरबों रुपये की संपत्ति आग में स्वाह हो जाती है। आतिशबाजी के चलते बेजुबान जानवरों की जान खतरे में पड़ जाती है। देश भर के करोड़ों अस्थमा मरीज तड़पने लगते हैं। पटाखों के कारण बहुत सारे लोग सिर्फ एक चिंगारी से अपने आंखों की रोशनी खो देते हैं। इसलिए केंद्र सरकार को चाहिए कि वह बारूद के इस कारोबार पर प्रतिबंध लगाए। यह जरूरी है कि बिना किसी धार्मिक भेदभाव के साल के 365 दिन पटाखों पर राष्ट्रव्यापी प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि हर राज्य में बिकने वाले पटाखे, फुलझड़ियां आदि की अधिकतर आपूर्ति तमिलनाडु के शिवकाशी से होता है। वहां घर-घर पटाखे बनते हैं। पटाखों पर प्रतिबंध की वजह से इस साल 30 फीसदी कम पटाखे बने। तब भी इस वर्ष शिवकाशी के पटाखा निर्माताओं ने 6,000 करोड़ रुपये का धंधा किया। यह बहुत बड़ा आंकड़ा है। शिवकाशी का आतिशबाजी उद्योग करीब 100 साल पुराना है। शिवकाशी में करीब 1,150 पटाखा कारखाना हैं। इन कारखानों में लगभग चार लाख श्रमिक काम करते हैं। यह शहर देश के लगभग 70 फीसदी पटाखों का उत्पादन करता है।

(लेखक, सत्या फाउंडेशन वाराणसी के संस्थापक सचिव हैं।)

DIwali Offer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
ऐसे शेयर जो आपको बना करते है करोड़पति 1 लीटर पेट्रोल में Hero Xtreme 125R कितना चलती है ? जियो के इस रिचार्ज पर 3 महीने के लिए पाएं फ्री Amazon Prime सुरभि ज्योति की वेडिंग रेडी लुक्स Fan’s मे Viral