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जनजातीय गौरव दिवस: भगवान बिरसा मुंडा के पुण्य स्मरण करने का इससे बेहतर तरीका कुछ नहीं

भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर उनका पुण्य स्मरण करने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता था कि उनकी जयंती हम जनजातीय समाज के गौरव के पलों का स्मरण करते हुए मनाएं। धरती आबा कहे जाने वाले भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी  ने जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का निर्णय जब 15 नवंबर 2021 को लिया तब यह घोषणा देश के करोड़ों नागरिकों और जनजातीय समाज की ओर से अपने राष्ट्र नायक को सच्ची श्रद्धांजलि थी। केवल 24 साल की आयु में भगवान बिरसा मुंडा ने अपने अतुलनीय साहस से उस ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी जिसका सूरज इस धरती पर अस्त नहीं होता था। अपने जीवन काल में ही उन्हें भगवान श्री कृष्ण का अवतार कहा जाने लगा था। आज जनजातीय दिवस पर जब हमारे सामने बहुत सी चुनौतियां हैं। हम भगवान बिरसा मुंडा के जीवन से प्रेरणा लेकर इनका सामना कर सकते हैं।

भगवान बिरसा मुंडा ने बचपन में ही रामायण और महाभारत की कथाएं सुनी थीं। उनके आरंभिक जीवन को गढ़ने में इन कथाओं का बड़ा योगदान था। आज की तरह ब्रिटिश काल में भी ऐसी शक्तियां थीं जो सामाजिक ताना-बाना नष्ट करने की कोशिश कर रही थीं जो भारत की एकता को नष्ट करने की कोशिश कर रही थीं जो जनजातीय समाज की पहचान समाप्त करने का प्रयास कर रही थी। भगवान बिरसा मुंडा ने इस खतरे को समझा। उन्होंने इसका विरोध किया। भगवान श्री कृष्ण की तरह ही उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए संकल्प लिया और समाज को एकजुट किया।

आज हमारे जनजातीय समाज को दो तरह से खतरा है। पहला खतरा आस्था पर चोट है। कुछ ऐसी शक्तियां हैं जो हमें अपने देवी-देवताओं से दूर करने की कोशिश कर रही हैं। जब मेरे माता-पिता ने मेरा नाम रखना चाहा तो उन्होंने भगवान विष्णु के नाम पर मेरा नाम रखा। हमारा जनजातीय समाज भगवान श्रीराम के वनवास के दौरान दंडकारण्य आगमन का साक्षी है और भगवान श्रीराम से गहरा अनुराग रखता है। हमारी जनजातीय समाज की श्रद्धेय माता शबरी ने तो शिवरीनारायण में कितने धैर्य से भगवान श्रीराम के आगमन की प्रतीक्षा की और जब वे आये तो इतनी भावविह्वल हुईं कि उन्होंने श्रीराम को मीठे बेर खिलाने के लिए स्वयं चखकर बेर खिलाये। यह आस्था का चरम उदाहरण है। ऐसी प्रेम, स्नेह और अनुराग की संस्कृति हमारी जनजातीय संस्कृति हैं जिसके नायक भगवान बिरसा मुंडा की आज जयंती है।
एक दूसरा खतरा आयातित विचारों से हैं। माओवाद ऐसा ही विचार है जो लाखों लोगों की बलि लेकर पनपता है जो हिंसा पर भरोसा करता है। हमारी जनजातीय संस्कृति सद्भाव पर विश्वास रखती है। सबसे मेलजोल पर विश्वास रखती है। लोकतांत्रिक मूल्यों पर विश्वास करती है। समानता, स्वतंत्रता और भातृत्व जैसे आधुनिक आदर्शवाद के तत्वों के बीज हमारी जनजातीय संस्कृति में हैं। आइये भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर प्रतिज्ञा लें कि अपनी सुंदर धरती को माओवाद से पूरी तरह मुक्त करेंगे। बस्तर के हमारे आदिवासी भाइयों ने हमारे वीर जवानों के सहयोग से माओवाद के खिलाफ बिगूल फूंक दिया है। माओवाद अब बस्तर में अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। बस्तर की शांति तेजी से वापस लौट रही है।

जनजातीय गौरव दिवस हमें छत्तीसगढ़ की धरती के अपने वीर सपूतों की भी याद दिलाता है। आजादी की लड़ाई में वीर गुंडाधुर का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। भूमकाल विद्रोह का जब हम स्मरण करते हैं तो वीर गुंडाधुर के साहस और चातुर्य भरी रणनीति से हम सब चकित रह जाते हैं। हम भूमकाल का गौरव केवल इसलिए नहीं मानते कि वीर गुंडाधुर और उनके साथियों ने अतुलनीय साहस का परिचय दिया अपितु यह इसलिए भी है कि उन्होंने एक कुशल रणनीति से अपनी लड़ाई लड़ी। किसी लड़ाई को जीतने के लिए संचार संबंध रणनीतियां बेहतर होनी बहुत जरूरी हैं। उन्होंने लाल मिर्च और तीर को आजादी की लड़ाई का प्रतीक बनाया।

वीर गुंडाधुर ने अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष किया था। यह साम्राज्यवाद जनजातियों का आर्थिक शोषण करता था। बस्तर ने थोड़े से नमक के बदले न जाने कितने अमूल्य संसाधन लूटाए। अफसोस इस बात का भी है कि आजादी के बाद भी यह शोषण पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ था। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी  ने इस शोषण की कड़ी को तोड़ने के लिए प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने वनधन केंद्र आरंभ किये ताकि संग्राहकों को बेहतर मूल्य मिल सके। राज्य सरकार उनके मार्गदर्शन में जनजातीय भाई-बहनों के लिए पूरे संकल्प के साथ काम कर रही है। हमने तेंदूपत्ता संग्राहकों को मिलने वाली राशि 4000 रुपए मानक बोरा से बढ़ाकर 5500 रुपए कर दी। वनाधिकार पत्रों के हस्तांतरण में जो दिक्कतें आ रही थीं उन्हें दूर किया।

आज इस अवसर पर शहीद वीरनारायण सिंह जैसे हमारे नायक भी याद आ रहे हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने अपनी लड़ाई छेड़ी। अकाल पड़ा हुआ था लेकिन अंग्रेजों की गलत नीतियों की वजह से राशन गोदामों में पड़ा हुआ था और जनता भूख से मर रही थी। शहीद वीरनारायण सिंह ने इसका प्रतिरोध किया और अपना बलिदान दिया। हमारी भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब बनी तो हमारा मूलमंत्र यही रहा कि देश को भय और भूख से मुक्त करना है। हमने छत्तीसगढ़ में पीडीएस की सुंदर व्यवस्था कायम की। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी  ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना आरंभ की जिसमें अगले पांच सालों तक लोगों को निःशुल्क राशन दिया जाएगा। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि शहीद वीरनारायण सिंह ने जनसामान्य की भूख की जो पीड़ा अपने समय में महसूस की, हमने छत्तीसगढ़ में यह सुनिश्चित किया कि कोई भी भूखा न सोये।

प्रधानमंत्री जनमन योजना और धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के माध्यम से हम तेजी से जनजातीय क्षेत्रों में विकास सुनिश्चित कर रहे हैं। यह कार्य केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा आरंभ किया गया है। हमारे लिए गौरव का विषय यह भी है कि प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री अटल जी ने ही इस मंत्रालय की स्थापना की ताकि आदिवासी क्षेत्रों में तेजी से विकास हो सके।

बस्तर और सरगुजा जैसे जनजातीय क्षेत्रों में हम तेजी से अधोसंरचना निर्माण तथा विकासपरक कार्य कर रहे हैं। जगदलपुर और अंबिकापुर को एयर कनेक्टिविटी मिल गई है। अब यहां पर्यटन की संभावनाओं को अपार विस्तार मिलेगा। अभी मैं जशपुर गया था वहां मधेश्वर महादेव की खूबसूरत भूमि मयाली में टूरिज्म इंफ्रास्ट्रक्चर को विकसित करने विशेष कार्य किये गये हैं। एयर और रोड कनेक्टिविटी बढ़ने से देश दुनिया हमारी सुंदर जनजातीय संस्कृति और यहां के विपुल प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा ले सकेगी। इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ी संख्या में पैदा होंगे। इन क्षेत्रों में हम इको टूरिज्म और नैचुरोपैथी को भी बढ़ावा दे रहे हैं। हमारे जनजातीय क्षेत्रों में तेजी से विकास हो रहा है। भगवान बिरसा मुंडा के दिखाये रास्ते पर चलकर हम एक समृद्ध समतामूलक समाज के उनके सपनों को पूरा कर रहे हैं। आज जनजातीय गौरव दिवस के दिन जब हम अपने कार्यों का मूल्यांकन करते हैं तो इस बात का विशेष गौरव होता है और इससे जनजातीय क्षेत्रों के लिए और भी बेहतर कार्य करने का हमारा संकल्प पहले से ज्यादा मजबूत हो जाता है।

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