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5 मार्च 1989ः सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी, चिंतक और विचारक पृथ्वी सिंह आजाद का निधन

-रमेश शर्मा

भारत की स्वाधीनता के लिये जितना संघर्ष भारत के भीतर हुआ, उतना ही जन जागरण अभियान विदेशों में भी हुआ। असंख्य ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्राँतिकारी रहे जिन्होंने भारत के भीतर भी संघर्ष किया और जेल गये और भारत के बाहर भी स्वतंत्रता के लिये वातावरण बनाया। क्राँतिकारी पृथ्वीसिंह आजाद ऐसे ही स्वाधीनता सेनानी थे। वे गदर पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे।

ऐसे चिंतक विचारक और क्राँतिकारी पृथ्वी सिंह आजाद का जन्म 15 सितंबर 1892 को पंजाब प्रांत के मोहाली क्षेत्र अंतर्गत ग्राम लालरू में हुआ था। इन दिनों इस क्षेत्र को साहिबजादा अजीतसिंह नगर के नाम से जाना जाता है। उनके शादीराम भी राष्ट्र जागरण अभियान से जुड़े थे। परिवार के संस्कार और राष्ट्रवादी वातावरण के चलते पृथ्वीसिंह किशोर अवस्था में ही राष्ट्रवादी आंदोलन से जुड़ गये थे। आगे चलकर वे लाला लाजपत राय के संपर्क में आये और युवकों को संगठित कर क्राँतिकारी आँदोलन के समर्थक हो गये। समय के साथ वे सक्रिय हुए। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की गिरफ्तारी और खुदीराम बोस के बलिदान के समाचार भी आये। उन्हें लगा कि भारत की स्वतंत्रता के लिये भारत से बाहर अंग्रेजों के विरोधियों का भी समर्थन आवश्यक है। अपने इस विचार से उन्होंने तत्कालीन वरिष्ठों को अवगत कराया और सहमति लेकर वे 1912 में अमेरिका गये। वे हिंदुस्तानी एसोसिएशन ऑफ पेसिफिक कोस्ट के संस्थापकों में से एक लाला हरदयाल से मिले। इसी संस्था को गदर पार्टी के नाम से जाना जाता था। यह संगठन अमेरिका में प्रवासी भारतीयों को संगठित कर भारत की अंग्रेजों से मुक्ति के लिये वातावरण बना रही थी।

युवा पृथ्वी सिंह संस्था से जुड़े और इसके विस्तार के काम में लग गये। उन्होंने गदर पार्टी के मुखपत्र “गदर” का प्रकाशन और इसके विस्तार के काम में जुट गये। जब प्रथम विश्वयुद्ध आरंभ हुआ तो गदर पार्टी ने अपने अनेक कार्यकर्ताओं को भारत भेजा और अंग्रेजों से मुक्ति की सशस्त्र क्रान्ति को तेज किया और युवाओं से आह्वान किया कि अंग्रेजी सत्ता को उखाड़ फेंका जाये। भारत की स्वाधीनता का यही संकल्प लेकर पृथ्वी सिंह वह 29 अगस्त 1914 को लगभग 150 स्वतंत्रता सेनानियों के साथ भारत लौटे। उन्होंने पूरे पंजाब की यात्रा की और युवकों को संगठित करना आरंभ किया। जब यह समाचार अंग्रेजों को मिला तो 7 दिसंबर 1914 वे गिरफ्तार कर लिये गये। अंग्रेजों ने उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में भी आरोपी बनाया और मौत की सजा सुनाई गई। बाद में सुबूत के अभाव में मृत्युदंड तो बदला लेकिन आजीवन कारावास की सजा देकर सेलुलर जेल भेज दिया गया। उन्हें 1922 में नागपुर जेल स्थानांतरित किया गया। इसके साथ उन्हें कलकत्ता, मद्रास आदि विभिन्न जेलों में 10 साल रखा गया। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों ने अधिकांश राजनैतिक बंदी रिहा किये। इसका लाभ पृथ्वी सिंह जी को भी मिला और वे रिहा कर दिये गये। रिहाई के बाद वे रूस गये। वहाँ रह रहे भारतीयों तथा अंग्रेज विरोधी विचार के लोगों से संपर्क किया तथा भारतीय समाज के दर्द का वर्णन किया। उनके द्वारा दिये गये ये विवरण लेनिन पत्रिका में प्रकाशित हुये। बाद में उनके यह सभी संस्मरण एक पुस्तक के आकार में भी प्रकाशित हुये। भारत लौटने पर काँग्रेस से जुड़े और वे गांधीजी के नेतृत्व में आँदोलन की मुख्यधारा से जुड़ गये। विभिन्न आँदोलनों में जेल गये। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जब आजाद हिन्द फौज का गठन किया तो उनके समर्थक बने।

स्वतंत्रता के बाद उन्होंने पंजाब से संविधान सभा का चुनाव लड़ा और जीते । भारत सरकार ने 1977 में उन्हे तीसरा सबसे सम्मानित पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। जीवन का अंतिम समय अस्वस्थता में बीता और 5 मार्च 1989 को क्राँतिकारी और विचारक पृथ्वी सिंह आजाद ने 96 वर्ष की आयु में संसार से विदा ली। उनकी जीवन गाथा दो आत्मकथाओं में उपलब्ध है। इनमें “क्रांति पथ का पथिक” का प्रकाशन 1990 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा किया गया और “बाबा पृथ्वी सिंह आज़ाद, महान योद्धा, 1987 में भारतीय विद्या भवन द्वारा प्रकाशित की गई।

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