विवेक रंजन श्रीवास्तव – विनायक फीचर्स
यूके में प्रति वर्ष मार्च महीने के आखिरी रविवार को 1 बजे घडिय़ां 1 घंटा आगे बढा दी जाती हैं, इस तरह जीवन का एक घंटा बिना जिए ही आगे बढ़ जाता है।
यह वापस प्रति वर्ष अक्टूबर के आखिरी रविवार को 2 बजे 1 घंटा पीछे कर दी जाती हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अप्रैल से यहां समर सीजन शुरू हो जाता है जब सूर्योदय जल्दी होने लगता है।
वह अवधि जब घडिय़ां 1 घंटा आगे होती हैं उसे ब्रिटिश ग्रीष्मकालीन समय कहा जाता है। शाम को अधिक और सुबह में कम दिन का प्रकाश होता है (जिसे डेलाइट सेविंग टाइम भी कहा जाता है)। इस वर्ष 31 मार्च को आखिरी रविवार था , इसलिए जब मैं सुबह लंदन में सोकर उठा तो इंटरनेट से जुड़े होने के कारण मोबाइल में तो समय अपडेट हो चुका था, पर टेबल पर रखी घड़ी एक घंटे पीछे का टाइम ही बतला रही थी। रात 1 बजे समय को एक घंटा फारवर्ड कर दिया गया था। अब अक्तूबर के आखिरी रविवार अर्थात इस वर्ष 27 अक्तूबर को घड़ी वापस एक घंटा पीछे की जाएंगी । मतलब भारत के समय से जो साढ़े चार घंटे का अंतर यूके के समय का है, वह पुन: साढ़े पांच घंटो का कर दिया जायेगा। दुनियां के कई देशों में इस तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
भारत में डेलाइट सेविंग टाइम का उपयोग नहीं किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि भूमध्य रेखा के पास स्थित देशों में मौसमों के बीच दिन के घंटों में अधिक अंतर का अनुभव नहीं होता।