
विद्यार्थी परिषद के कार्यक्रम, बैठक, अभ्यास मंडल, अभ्यास वर्ग, अधिवेशन यह सब उपक्रम से कार्यक्रमों से एक दिशा में चलने वाले कार्यकर्ताओं की श्रृंखला खड़ी होती है। जिसके आधार पर लाखों छात्र इस कार्य से – अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ते है। ऐसे ही विद्यार्थी परिषद एक कार्यकर्ता अधिष्ठित जन आंदोलन की तरह विकसित हुआ। हमारे यहां कार्यकर्ता एक सामान्य विद्यार्थी के रूप में आता है, वही धीरे-धीरे कार्यकर्ता के स्वरूप में कार्यकर्ता विकास की प्रक्रिया में जुड़ जाता है।

कार्यकर्ता विकास में हम क्या चाहते हैं? अगर ऐसा पूछा जाए तो एक वाक्य में कहा जाए तो कह सकते है कि कार्यकर्ता की विवेक बुद्धि का विकास।
सही जीवन दृष्टि कार्यकर्ता को प्रदान करना यही कार्य की सफलता है। अपने प्रमुख कार्यकर्ता को किसी एक कार्यकर्ता ने कहा आप दंगा, लड़ाई झगड़ा, मारपिट या अन्य कोई शारीरिक काम मुझे बताइए परंतु यह कंधे के ऊपर के हिस्से का काम मत बताईये, बहुत तकलीफ होती है। मन में बड़ी अस्वस्थता होती है तो अपने प्रमुख कार्यकर्ता ने उस कार्यकर्ता से कहा देखो भाई, हमारा काम ही युवा विद्यार्थियों को सामाजिक स्थिति के बारे में अस्वस्थ करने का है, समाज की विषम परिस्थितियों के बारे में उसके मन में पीड़ा उत्पन्न करने का है। समाजिक वेदना से जोड़ने का है। समाज की परिस्थितियों के बारे में उनके मन में पीड़ा होगी तभी आगे चलकर सामाजिक उत्थान के कोई ना कोई काम में अपने आप को लगाएगा आचार्य चाणक्य कहते थे कि जब हम अपने स्वयं की पीड़ा सहते है तो हमारा बल बढ़ता है और जब किसी और की पीड़ा सहते है तो हमारा आत्मबल बढ़ता है। विद्यार्थी परिषद का कार्य यही है।
एक छात्रा कार्यकर्ता से बातचीत करते हुए किसी ने उसको पूछा विद्यार्थी परिषद में काम करने से तुम्हें क्या मिला तो उसने कहा पहले भिखारी सामने आता था तो थोड़ा असहज होती थी, धृणा होती थी लेकिन आज मन में प्रश्न उठता है – कि इसकी स्थिति ऐसी क्यों है?
पहले गंदा बच्चा देखती थी तो मुझे मन में तिरस्कार उत्पन्न होता था। आज उस बच्चे को गोद में उठा सकती हूं, उठाती भी हूं। यह परिवर्तन विद्यार्थी परिषद के कारण हुआ।
पिछले दिनों हमने अखिल भारतीय स्तर पर सामाजिक अनुभूति नाम का कार्यक्रम पूरे देश भर में किया। इस कार्यक्रम के द्वारा विद्यार्थी परिषद के हजारों कार्यकर्ता देश के ग्रामीण व वनांचल क्षेत्र में जाते हुए समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों के साथ संवाद करते हुए उनकी समस्या, उनके प्रश्नों, उनके जीवन को समझने का प्रयास किया। और साथ ही भारत के जनजीवन को एक सामान्य व्यक्ति के रूप में अनुभव करने का भी प्रयास किया। और सबसे बड़ी बात है कि जिस सामाजिक संवेदना की अनुभूति हम हमारे कार्यकर्ताओं को करना चाहते थे उसमें हम कई हद तक सफल हुए। समाज के प्रति उनके मन में एक संवेदना के भाव के साथ, वास्तव में ऐसे समाज जो पीड़ित, पतित, शोषित व वंचित है और पिछड़े वर्गों के साथ हमारे समाज के जनजाति बंधुओ के साथ स्वाभाविक ही मिलना हुआ, परिचय हुआ। एक गांव में अपने कार्यकर्ता की एक वृद्ध महिला से मिले दो बेटे में से एक बेटे की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। दूसरे बेटे की शादी हो गयी थी, वह अलग रहता था। आज वह महिला लोगों के कपड़े प्रेस करके अपना गुजरान चला रही है। बड़े बेटे की विधवा पत्नी बीमा योजना की और विधवा पेंशन के सारे पैसे लेकर घर छोड़कर चली गई थी। उसी बूढ़ी मां ने सर्वे में गए कार्यकर्ताओं को पूछा आप इतनी धूप में आए हैं आप लोग कुछ खाना खाए हैं कि नहीं? अपने कार्यकर्ताओं को उन्होंने खाना खिलाया, जब उनके घर की स्थिति व गरीबी देखकर एक रोटी खाकर वह कार्यकर्ता खड़े हो रहे थे तो बूढ़ी मां ने जबरदस्ती उनको बिठाकर ठीक से भोजन करवाया और कहा आप आराम से भोजन करो मैं किसी आशा अपेक्षा से आपको यह भोजन नहीं करवा रही हूँ।
ऐसे ही सामाजिक अनुभूति के दौरान एक और अनुभव – एक गांव में अपने ही बेटे ने अपनी बूढ़ी मां को घर के बाहर निकाल दिया था आज भी वह बूढ़ी मां गांव के चौराहे के पास एक टूटी फूटी झोपड़ी में रहती है और भीख मांग कर अपना जीवन यापन करती थी। ग्रामीण सर्वे के दौरान अपनी एक छात्रा कार्यकर्ता उनको मिलने के लिए गई तब अपनी आपबीती सुनाते हुए वह वृद्ध मां कईं समय तक रोती रही, अपने पास पास पर्स में रखे हुए कुछ पैसे लेने के लिए जब अपनी छात्रा कार्यकर्ता ने उन्हें आग्रह किया तो बड़े ही आग्रह के बाद उन्होंने उसे स्वीकृत किया। और छात्रा कार्यकर्ताओं को अपने मन से भरपूर आशीर्वाद दिया। और कहां तुम मेरी इस छोटी सी टूटी फूटी सी कुटिया में आई तेरा और मेरा कोई भी संबंध नहीं है, न कोई परिचय है, न खून का कोई रिश्ता है फिर भी मेरी वेदना को आपने समझा।
अनुभूति के दौरान ऐसे ही कई अनुभवों के कारण अपनी एक छात्रा कार्यकर्ता जिसकी पॉकेट मनी करीबन ₹4000 मासिक थी और मां को समझा-बुझाकर जो मिल जाते थे वह अलग। ऐसी छात्रा ने जब सामाजिक अनुभूति में गांव की व्यवस्था देखी, गांव की शिक्षा देखी, गांव के बच्चे देखें, गांव में चल रही नशावृत्ति देखी और व्यथित हो गई। मेरे देश में, मेरे शहर के नजदीक के किसी एक गांव में ऐसी स्थिति है तो दूरदराज क्षेत्र में रहने वाले लोगों की स्थिति क्या होगी? उसी समय मन ही मन उस छात्रा ने संकल्प लिया कि मेरे पॉकेट मनी से कम से कम 50% पॉकेट मनी में इन गरीब, पीड़ित, शोषित लोगों के बीच में कार्य करने के लिए, उनके उत्थान के लिए, उनके विकास के लिए खर्च करूंगी और आज वह कार्यकर्ता उस दिशा में कार्यरत भी है।
विद्यार्थी परिषद का कार्य ही विजन देने का है। विद्यार्थी कार्यकर्ताओं के विजन को व्यापक बनाने का है। मित्रों, विद्यार्थी परिषद में हमें सामूहिक रूप से और व्यक्तिगत रूप से विजन तो मिलता ही है और वही विजन हमारे अंदर संक्रमित होते हुए हमारा मिशन बनता है, जिसके आधार पर हमारा वर्तन और व्यवहार और एक्शन बनता है। और वास्तव में हमारे विजन को संतुलित करने का प्रयास विद्यार्थी परिषद में होता है। ऐसा हम सभी अनुभव करते होंगे।
महिला विषयक दृष्टिकोण आज भी सहज रूप से समानता का नहीं है। विद्यार्थी परिषद में हमने छात्र-छात्रा कार्यकर्ता को समान समझा सभी का व्यक्ति और कार्यकर्ता के इस रूप में विचार किया। इसका एक उदाहरण अगर समझना है तो राष्ट्रीय अधिवेशन में मंच पर से जब छात्रा नियंत्रक सूचना देती है और पूरे अधिवेशन में उपस्थित हजारों छात्र प्रतिनिधि सूचना का अक्षरश: पालन करते है, यह एक विशेषता है। ऐसे ही एक अधिवेशन में एक महिला पत्रकार ने कहा कि छात्र संगठनों में छात्राओं का सबसे ज्यादा सहभाग विद्यार्थी परिषद में ही है, हमारा महिला विषयक दृष्टिकोण यह सम्यक है। परिषद में हर स्तर पर छात्राओं को बड़ी संख्या में तथा महत्वपूर्ण दायित्वों पर सहभागी करते हुए सामाजिक जीवन मे अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। 1990 के दशक में देश में आरक्षण विरोधी आंदोलन से माहौल बिगड़ रहा था परिषद ने सामंजस्य बनाने का आह्वान किया उस समय प्रमुख नेताओं ने कहा कि यह आंदोलन काफी प्रयास के बाद बढ़ नहीं पाया, क्योंकि भारत के अधिकतम परिसरों में परिषद का मजबूत संगठन है तथा परिषद के सद्भाव बढ़ाने की भूमिका के कारण यह विवाद धीरे-धीरे शांत हो गया।
जाति, भाषा, प्रांत से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एकात्मता के लिए विद्यार्थी परिषद निरंतर प्रयास किए। परिषद कार्यकर्ताओं ने समरसता के भाव के साथ अपनी सामाजिक निष्ठा को परिश्रम पूर्वक व्यवहार में लाकर कईं बार ऐसे विघटनकारी व जातिवादी शक्तियों को परास्त किया है।
हम विद्यार्थी परिषद में एक गीत गुनगुनाते हैं सबको शिक्षा सुलभ हो शिक्षा यह संकल्प हमारा, भारत को भारत की शिक्षा का अधिकार हमारा और और इसी संकल्पना के साथ अगर हम विद्यार्थी परिषद की ओर देखते हैं तो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी चले साक्षरता अभियान में विद्यार्थी परिषद ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। यहां तक कि हमारे कार्यकर्ताओं ने प्रौढ़ शिक्षा के लिए भी कार्य किया। आज भी विद्यार्थी परिषद से निकले असंख्य कार्यकर्ता शिक्षा के अंदर नवाचार करने का प्रयास कर रहे है।
एसे ही एक नाम है राजस्थान जालोर के संदीप जोशी का जिनको हमने पिछले दिनों अहमदाबाद अधिवेशन में यशवंत राव केलकर युवा पुरस्कार से सम्मानित किया। संदीप ने बच्चों के बस्ते के बोझ को हल्का करने के लिए ‘बस्ता मुक्त दिन’ एवं प्राथमिक स्कूल से ही विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि जगाने के लिए ‘प्रयोगशाला’ शुरू की। देशप्रेम विकसित करने के लिए ‘भारत दर्शन गलियारा’ बनाया आज उनके इन सभी प्रयासों को राजस्थान सरकार ने अपनाया है।
ऐसे ही हमने शिक्षा के साथ सामाजिक उत्तरदायित्व बोध की बात करते है। गुजरात के भावेश प्रजापति नाम के कार्यकर्ता अछि रेपुटेड स्कूल की नोकरी छोड़कर एक ग्रामीण क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय में नोकरी स्वीकार करते है। वहां रहकर छात्रों व गांव के लोगो मे पर्यावरण के प्रति जागरूकता लेकर एक बाल – एक झाड़ यानी पौधा अभियान शुरू किया धीरे धीरे आसपास के सभी विद्यालयों को इस अभियान से जोड़ा और आज यह मॉडल गुजरात सरकार ने अपने विद्यालयों में स्वीकृत किया है। गुजरात के ही महेसाणा इकाई के कार्यकर्ताओं ने स्टूडेंट्स फ़ॉर सेवा के माध्यम से एक नवाचार को जन्म दिया, महाविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों को सप्ताह में एक घण्टा देने के लिए आह्वान किया। वन हवर फ़ॉर नेशन के माध्यम से आज असंख्य कार्यकर्ता रविवार के दिन झोग्गी झोपड़ियों में जाकर वहाँ के बच्चों को अक्षर ज्ञान देने का कार्य कर रहे हैं।
Student For Development (SFD) यह हमारी गतिविधि पर्यावरण के क्षेत्र में व पशु पक्षियों के बारे में सजगता व जागरण का कार्य लगातार कर रहा है। इस लोकड़ाऊंन के दिनों में ही हमारी मध्यभारत प्रान्त की देवास इकाई ने सेल्फी विथ सकोरा अभियान लिया, कहने के लिए कोई उसे केवल एक कार्यक्रम कह सकता है लेकिन मेरा माने तो यह विचार आना ही उत्तम है, और ऐसे प्रयास से आज हजारो छात्रों के द्वारा लाखों पक्षियों की गर्मी की प्यास बजाने का उत्तम कार्य हुआ यह परिषद के संस्कार ही है।
ऐसे ही पिछले दिनों मुजे उत्तरांचल के कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत करने का अवसर मिला, ध्यान में आया कि वहां की एक कॉलेज इकाई के कार्यकर्ताओं ने अपने महाविद्यालय में स्वयं प्रेरणा व स्वयम के पैसे लगाकर सम्पूर्ण परिसर में वोटर हार्वेस्टिंग का कार्य किया इतना ही नही इस कार्य के लिए प्राचार्य से लेकर सामान्य विद्यार्थियों को प्रेरित किया और सब ने मिलकर श्रमयज्ञ किया, आज वह महाविद्यालय परिसर पानी की दिक्कत से मुक्त है। यह विचार देने वाला संगठन विद्यार्थी परिषद है।
गुजरात के ही एक इकाई के कार्यकर्ता पिछले छह साल से संवेदन प्रोजेक्ट चला रहे है, और मेरा मानना है कि इन कार्यकर्ताओं ने दो बड़े पेड़ों के जीवन को बचा लिया। सालभर के उपयोग के बाद अपनी कॉपी में बचे हुए बिना उपयोग के पेजो को समाज व विद्यार्थियों से एकत्रित कर उसको फिर से नई नोटबुक बनाकर समाज के जो गरीब तबके का वर्ग है उन बच्चों को निःशुल्क ऐसी नोटबुक बांटने का कार्य लगातार चल रहा है, यह केवल कोई पेड़ को बचाने का ही कार्य मात्र नही है लेकिन मुजे लगता है यह समाज का एक वर्ग जो सम्पन्न है और एक वर्ग जो वंचित उसे जोड़ने का भी माध्यम हे और विद्यार्थी परिषद उसमे सेतु की भूमिका में है।
विद्यार्थी परिषद से मिले हुए संस्कार व्यक्तिगत जीवन मे भी कैसे चरितार्थ होते है उसके लाखों उदाहरण है, उनमे से एक उदाहरण में आपको बताने जा रहा हु। सितम्बर 2017 की घटना है मुम्बई के एलफिंस्टन रेलवे स्टेशन पर फुट ओवर ब्रिज पर अफरा तफरी मच गई थी, ब्रिज टूटने की अफवा ने लोगो को जान बचाने के लिये के नीचे पटरी पर कूदने पर मजबूर किया, उसी भीड़ में परिषद का एक कार्यकर्ता आकाश भी था, दांये बांये ऊपर नीचे कहि जाने को जगह नही थी, उसी स्थिति में उसका ध्यान एक महिला की और पड़ा जो येनकेन प्रकार से अपनी छोटी सी मासूम बच्ची को बचाने का प्रयास कर रही थी, किसी भी तरह आकाश ने उस बच्ची को बचाने की ठानी और लगातार कुछ समय तक अपने एक हाथ से उसे उठाकर भीड़ से दबने से बचाया। जब मैने बाद में उसको पूछा कि ऐसी स्थिति में आपको यह विचार कैसे आया तो जवाब मिला यही तो परिषद ने सिखाया है।
विद्यार्थी परिषद में हम लोग एक नारा लगाते हैं पढ़ाई के साथ लड़ाई। महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले का एक कार्यकर्ता मुंबई में विस्तारक के नाते आता है पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में कार्य प्रारंभ करता है, विद्यार्थी परिषद मुंबई महानगर का जनसंपर्क का दायित्व निभाता है और यह काम करते करते अपने मन में जो सपने संजो को लेकर आया था वह सपने पूरे करने के लिए परिषद के सोपे हर किसी कार्य को प्रभावित न करते हुए पूरे तन मन से प्रयास करता है। आईएएस की तैयारी करता है और आगे चलकर आईएएस परीक्षा में उत्तीर्ण होता है और बड़ा आईएएस अधिकारी बनता है। आज वही कार्यकर्ता आईएस अधिकारी के रूप में व्यवस्था परिवर्तन का एक अंग बन चुका है। विद्यार्थी परिषद कहती है लड़ो पढ़ाई करने को पढ़ो समाज बदलने को और आज समाज में बदलाव के अंग के नाते वह अपने आप को देखता है। यह है परिषद संस्कार।
छत्तीसगढ़ की बात है एक प्रवासी कार्यकर्ता अपने प्रवासी स्थान पर जाता है अपने कार्यकर्ता को मिलने के लिए बाजार में आई उसकी दुकान पर मिलने के लिए जाता है बातचीत शुरू होती है और कुछ ही देर में एक बुड्ढ़ा सा व्यक्ति अपनी साइकिल पर जलाऊ लकड़ियों का एक भारा लेकर बाजार में बेचने के लिए निकला हुआ दिखाई देता है। बार-बार कहीं जगह पर वह पूछता है लकड़ी चाहिए क्या ? कोई खरीद नही रह था, उसके चेहरे पर पसीने के साथ साथ चिंता की लकीरें भी स्पष्ट दिखाई दे रही थी। उतने में उस कार्यकर्ता की दुकान पर भी आ पोहचता है, जलन की लकड़िया चाहिए क्या? लगातार बाजार में उसको ऑब्सर्व करने वाले प्रवासी कार्यकर्ता ने आखिरकार उस से पूछ लिया कितने की लकड़ी है? कितने दूर से आए हो? उसने कहा कि मैं 10 किलोमीटर दूर से लकड़ी जंगल से लेकर आया हूं और यह लकड़ियां बेचने के लिए आया हूं तब जाकर मेरे घर का चूल्हा जलेगा। जो प्रवासी कार्यकर्ता था उसने कहा कि लकड़ी इस दुकान में रख दो। और पैसे देकर उसका विदा किया। स्थानीय कार्यकर्ता ने प्रवासी कार्यकर्ता को पूछा आपने इस लकड़ी को क्यों खरीदा? आप तो प्रवासी है। आप कहां ले जाओगे? प्रवासी कार्यकर्ता ने कहां नहीं ले जाऊंगा, यह लकड़ी यही रहेगी, लेकिन आज अगर यह लकड़ियां मैं नहीं खरीदता तो उसके घर का चूल्हा नहीं जलता और उसके परिवार को भोजन भी नहीं मिलता।
हम लोग कई बार बड़े कार्यक्रम करते हैं, व्यवस्था बनाने में समय भी लगता है, कुछ व्यवस्था बनने के बाद भी कभी कुछ कमियां रह जाती है। ऐसे ही एक बड़ी बैठक में शौचालय के पास के वॉश बेसिन से ड्रेनेज का पानी जाने में दिक्कत हो रही थी। ऐसे में किसी एक प्राध्यापक कार्यकर्ता का ध्यान उस पर गया किसी कार्यकर्ता को किसी भी प्रकार का आदेश ना देते हुए स्वयं उस नाली में हाथ डालकर कचरा साफ किया और पानी बहने लगा। परिषद में कोई भी कार्य मेरे लिए छोटा या बड़ा नहीं है यह संस्कार का भाव वहीं से प्रगट होता है।
विद्यार्थी परिषद में कार्य करने वाले कार्यकर्ता को केवल संस्कार ही नहीं अपितु जीवनदृष्टि मिल जाती है विद्यार्थी परिषद में कार्य करते करते ऐसे कार्यकर्ता आगे चलकर अपने जीवन में किसी न किसी सामाजिक कार्य के अंदर पहल करते हैं। ऐसे कई नाम गिना सकते हैं। वह डॉक्टर प्रसाद देवधर हो या डॉक्टर गिरीश कुलकर्णी हो या अशोक भगत जी का हो। डॉक्टर प्रसाद देवधर विद्यार्थी परिषद के स्टूडेंट फ़ॉर डेवलपमेंट के महाराष्ट्र प्रांत के निमंत्रके रहे और आज महाराष्ट्र के कोंकण में कुदाल क्षेत्र में डॉक्टर प्रसाद देवधर व उनकी धर्मपत्नी दोनों मिलकर ग्रामीण विकास कार्य के अंदर लगे हुए हैं लगातार वहां के गांव की स्वास्थ्य और उसके साथ-साथ खेती में नवाचार, ईंधन में बायोगैस प्रयोग जैसे कार्यो से ड़ॉ देवधर ने अपनी एक पहचान बनाई है। कि पुरस्कारों से वे सम्मानित भी हो चुके है।
ऐसे ही महराष्ट्र के अहमदनगर में रेडलाइट एरिया की महिला व उनके बच्चों के पुनर्वसन का कार्य करने वाले गिरीश कुलकर्णी ने इस कार्य मे अपना जीवन लगा दोय है। और यह दिशा उन्हें विद्यार्थी परिषद से मिली।
मित्रो पद्मश्री अशोक भगत नाम शायद हमारे लिए अनसुना नही होगा। सफेद धोती व एक उपवस्त्र में रहने वाले अशोक भगत विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रहे। आज झारखंड के वनांचचल क्षेत्र में नक्सल प्रभावित क्षेत्र के लोगो के उत्थान के कार्य मे लगे। शिक्षा, स्वास्थ्य व सेरोजगर जैसे कार्य आज विकास भारती के माध्यम से लगातार दिशा भृमित लोगो को राष्ट्रीय प्रवाह में जोड़ने का कार्य कर रहा है।
ऐसे ही एक और उदाहरण दे कर में आज इस विषय का समापन करने जा रहा हु। सामान्य रूप से राजनैतिक व्यक्ति के माध्यम से निस्वार्थ सेवा की कल्पना कम की जाती है लेकिन ऐसा एक उदाहरण गुजरात के वर्तमान मुख्यमंत्री श्री विजय रूपानी का है। विद्यार्थी परिषद गुजरात के प्रदेश मंत्री रहे विजय भाई ने अपने दिवंगत पुत्र पूजित की स्मृति में लगातार झोग्गी झोपड़ी में रहने वाले विद्यार्थियों के शैक्षणिक स्तर को ऊपर लाने का प्रयास कर रहे है। और यह बात उतनी ही सत्य है कि उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की परछाई इस पर नही पड़ने दी।
तो मित्रो ऐसी है विद्यार्थी परिषद की संस्कार प्रक्रिया। और यही विद्यार्थी परिषद की देशभक्ति के संस्कार है।
निर्माणों के पवनयुग में हम चरित्र निर्माण न भूले, स्वार्थ साधना की आंधी में वसुधा का कल्याण न भूले।
अस्तु।
भारत माता की जय।
आप है श्री चेतस सुखड़िया जी,
आप वर्तमान में मध्य क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हैं। आप मूलतः सूरत, गुजरात से हैं। आपकी शिक्षा B.Com LLB तक हुई है।1994 से आप अभाविप के संपर्क में हैं, 1999 से आप पूर्णकालिक कार्यकर्ता है। पूर्व में आप विभाग संगठन मंत्री, गुजरात प्रदेश मंत्री, एवं गुजरात प्रदेश संगठन मंत्री, केंद्रीय सचिवालय के सचिव व मध्य क्षेत्र के क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री रहे हैं, वर्तमान में आप मध्य क्षेत्र के क्षेत्रीय संगठन मंत्री हैं, आपका केंद्र भोपाल है।