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पितृ पक्ष : श्राद्ध तर्पण के लिए गंगा घाट पहुंचे श्रद्धालु

वाराणसी । धर्म नगरी काशी में आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा तिथि बुधवार से पितृपक्ष की शुरूआत हो गई। पहले दिन प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध करने के लिए श्रद्धालु गंगा तट और विमल तीर्थ पिशाचमोचन कुंड पर पहुंचे। गंगा तट पर बाढ़ के चलते श्राद्ध करने पहुंचे लोगों को परेशानी का सामना भी करना पड़ा। लोगों ने श्रद्धापूर्वक अपने पूर्वजों को स्मरण कर कर्मकांडी पंडितों की देखरेख में श्राद्ध कर्म किया। दशाश्वमेध घाट, सिन्धिया घाट,अस्सी घाट सहित पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध के लिए लोगों की भीड़ दिखी।

पिशाच मोचन कुंड के कर्मकांडी प्रदीप पांडेय ने बताया कि पितृपक्ष में पहला श्राद्ध प्रतिपदा तिथि को होता है। पहले दिन का श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है, जिनकी मृत्यु सनातनी हिंदू पंचांग के अनुसार प्रतिपदा तिथि को हो जाती है। इस दिन पितरों को तर्पण और पिंडदान दिया जाता है। लोग अपने नाना-नानी का भी पहले दिन श्राद्ध करते हैं। उन्होंने बताया कि पिशाचमोचन कुंड पर पितरों, प्रेतों, अकाल मौत से मोक्ष व जो प्रेत परिवार की सुख शांति में बाधक बनते है। उनकी मुक्ति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध, नारायण बलि आदि अनुष्ठान कराए जाते हैं। यह विमल तीर्थ है। इस कुंड पर पूरे भारत से ही अब विदेशों से भी लोग आते है। अपने पितरों का श्राद्ध करते है। प्रेत योनि से पीड़ित है उसे यहां मुक्ति मिल जाती है।

उन्होंने बताया कि प्रेत बाधाओं में सात्विक, राजस, तामस शामिल हैं। इन तीनों बाधाओं से पितरों को मुक्ति दिलवाने के लिए काला, लाल और सफेद झंडे लगाए जाते हैं। इसको भगवान शंकर, ब्रह्मा और कृष्ण के ताप्‍तिक रूप में मानकर तर्पण और श्राद्ध का कार्य किया जाता है। उन्होंने बताया कि गरुड़ पुराण में भी पिशाचमोचन कुंड का उल्लेख है। काशी खंड में उल्लेख है कि पिशाच मोचन तीर्थ स्थल गंगा के धरती पर आने से पहले स्थित था।

श्राद्ध की तिथियां

द्वितीया श्राद्ध 19 सितंबर, तृतीया श्राद्ध 20 सितंबर, चतुर्थी श्राद्ध 21 सितंबर, पंचमी श्राद्ध 22 सितंबर, षष्ठी श्राद्ध 23 सितंबर, सप्तमी श्राद्ध 23 सितंबर, अष्टमी श्राद्ध 24 सितंबर, नवमी श्राद्ध 25 सितंबर, दशमी श्राद्ध 26 सितंबर, एकादशी श्राद्ध 27 सितंबर, द्वादशी श्राद्ध 29 सितंबर, त्रयोदशी श्राद्ध 30 सितंबर, चतुर्दशी श्राद्ध एक अक्टूबर, दो अक्तूबर को सर्व पितृ अमावस्या है। इस दिन पितरों की विदाई होती है और जिन्हें अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि मालूम नहीं, या किसी कारणवश वे तय तिथि पर नहीं कर पाए, वो इस दिन श्राद्ध कर्म कर सकते हैं।

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