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सरिता-श्रद्धा का महासंगम राजिम कुंभ कल्प

 भारत के मानचित्र पर हृदय प्रांत के रूप में छत्तीसगढ़ अंकित है।ऐसे प्रांत की भूमि में कला,संस्कृति, साहित्य,धर्म,इतिहास की अनगिनत गाथाएं सुवासित हैं।जिनकी महक भारत की दहलीज को लांघकर विदेशों में भी बिखरी है।इस बात को ‘राजिम कुंभ कल्प 2025’ सम्पूर्ण सत्य और तथ्य के साथ निर्विवाद स्थापित करता है। यह केवल मनोरंजन मेला नहीं छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा अध्यात्मिक मेला भी है।
 यह मणिकांचन संयोग ही है कि उत्तर प्रदेश की धर्म नगरी प्रयागराज में गंगा- जमुना- सरस्वती नदियों के संगम में महाकुंभ का आयोजन चल रहा है।ऐसे ही छत्तीसगढ़ राज्य का प्रयाग राजिम में महानदी -सोढूंर- पैरी जैसी सरिताओं की त्रिवेणी संगम स्थल पर राजिम कुंभ कल्प का भव्य आयोजन होने जा रहा है। 12 फरवरी से 26 मार्च तक चलने वाले इस पारंपरिक धार्मिक मेला को भव्य स्वरूप देने के लिए इस वर्ष छत्तीसगढ़ शासन की ओर से लगभग बावन एकड़ क्षेत्र में सर्वजनहिताय बहुउद्देशीय नया मेला स्थल विकसित किया गया है।
  विदित हो कि छत्तीसगढ़ में राजिम की भांति शिवरीनारायण में महानदी, शिवनाथ, जोंक नदी तथा राजनांदगांव के डोंगरगावं के करीब सांकरदाहरा में शिवनाथ, डालाकस,और कुर्रुनाला नामक तीन नदियों का संगम होता है,पर छत्तीसगढ़ में राजिम को ही प्रयागराज के त्रिवेणी संगम की तरह मान्यता प्राप्त है। यहां छत्तीसगढ़ के निवासी अपने पुरखों का पिंडदान सहित परिजनों की मृत्युपरांत किए जाने वाले संस्कार, मुंडन,कर्मकांड, अस्थि विसर्जन आदि पूरी श्रद्धा के साथ करते हैं। इसीलिए अध्यात्म -आस्था सहित संस्कृति का मनमोहक नजारा,पखवाड़ा भर यहां कुम्भ कल्प में नजर आता है।
   अति प्राचीन काल से छत्तीसगढ़ का महा माघी पुन्नी मेला के नाम से पहचान बना चुके राजिम के मेला को भाजपा सरकार ने राजिम कुंभ कल्प नाम देकर राष्ट्रीय क्षितिज प्रतिष्ठित करने का सफल प्रयास किया है।    फलस्वरूप अब भारत के विभिन्न प्रांतों सहित विदेशी धर्मालुओं का आगमन भी यहां बड़ी संख्या में होने लगा है। विभिन्न सम्प्रदायों के साधु -संत -महात्माओं की भागीदारी प्रतिवर्ष राजिम कुंभ कल्प में बढ़ती जा रही है।इन अर्थों में यह मेला समाज की समरसता, एकता, चिरपुरातन संस्कृति  की सुदृढ़ता को बनाए रखने का जीता जागता सशक्त माध्यम है।
इसे दृष्टिगत रखते हुए राजिम कुंभ स्थल पर शांत -सौहार्दपूर्ण माहौल हो।साथ ही समुचित खान- पान, मनोरंजन,आवागमन, स्वास्थ्य तथा स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए स्थल को सम्पूर्ण सुविधायुक्त बनाने के लिए राज्य शासन द्वारा उच्चस्तरीय प्रयास किए गये हैं।अति विशिष्टजनों की आवा-जाही को सुगम बनाने हेतु हैलिपैड का निर्माण भी यहां किया गया है।
 राजिम कुंभ में आने वाले अनेक ग्रामीण परिवार महानदी की रेत अस्थाई आवास बनाकर कई कई दिनों तक रहते हैं,अतः दैनिक दिनचर्या,नित क्रियाकर्मों के सुलभ संचालन हेतु राज्य शासन की ओर से मेला स्थल पर  माकूल प्रबंध किए जा रहे हैं। मीना बाजार, पारम्परिक शिल्पकला बाजार,खेल तमाशे के साथ ही प्रतिदिन संध्या भजन, प्रवचन,लोककलाओं,लाईट शो जैसे कार्यक्रम जनरंजनार्थ करने की तैयारी है।
  ऐसी धार्मिक मान्यता है कि प्रभु श्री राम के साथ वनवास पथ पर सहगामिनी बनी माता जानकी ने यहां से गुजरने के दौरान महानदी की रेत से शिवलिंग निर्मित कर पूजा अर्चना की थी। वही आज कुलेश्वर महादेव के नाम से ख्याति प्राप्त हैं।बड़ी संख्या में आए श्रद्धालुजन यहां के कुलेश्वर महादेव के दर्शन करने के उपरांत पटेवा के पटेश्वर महादेव, चंपारण के चंपेश्वर महादेव, फिंगेश्वर के महादेव और कोपरा के कोपेश्वर स्वयंभू शिवलिंग का दर्शन करने पंचकोसी परिक्रमा करते हैं।
   राजिम कुंभ मेला का महत्व और भी अधिक इसलिए बढ़ जाता है,क्यों कि महानदी के तट पर भगवान राजीव लोचन का अतिप्राचीन मंदिर है।प्रभू राजीव लोचन का जन्मोत्सव माघ माह की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है।धर्माचार्यों का कहना है कि जन्मोत्सव में शामिल होने के लिए उड़ीसा से भगवान जगन्नाथ राजिम आते हैं।राजिम कुंभ स्थल से कुछ दूरी पर महाप्रभु वल्लभाचार्य जी का प्रकाट्य स्थल चंपारण तथा भक्त माता कर्मा और लोमस ऋषि का आश्रम भी जनमन को मोहित करते हैं।
    ऐसी खासियत के कारण ही धर्म नगरी राजिम को तीर्थों का संगम सहित परस्पर मेलजोल-संवाद का बृहद केंद्र बिंदु भी कहते हैं। राजिम मेले में संत समागम, गंगा आरती, धार्मिक प्रवचन, शाही स्नान तथा विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा।इस दृष्टि से यह धार्मिक श्रद्धालुओं, पर्यटकों सहित सांस्कृतिक विरासत की अक्षुण्णता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
*विजय मिश्रा ‘अमित’* वरिष्ठ लोक- हिंदी रंगकर्मी

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