Join us?

लेख
Trending

मुरझाती नहीं है बेटियां

नवरात्रि पर्व चिंतन आलेख

पूरी दुनियां में भारत देश ही एक अकेला ऐसा देश है, जहां की एक वर्ष में दो बार नवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। क्वांर और चैत्र के माह में नौ-नौ दिन तक मां दुर्गा के नव रूपों की पूजा की जाती है। इस पर्व को छत्तीसगढ़ में भी धूमधाम से मनाने की परंपरा है।
छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां की डोंगरी-पहाड़, खेत-खार, तालाब-नदियों के किनारे घने जंगलों के बीच दंतेश्ववरी,बम्बेलश्वरी, महामाया, सतबहनिया,चंडी माई,मरही माता,शीतला माता,बंजारी,बिलई, चंद्रहासिनी माता, अंगारमोती जैसे अनेक नामों से माताश्री के मंदिर हैं। इसीलिए समुचे देश में यह एक ऐसा अकेला राज्य जहां के निवासी छत्तीसगढ़ को महतारी कहते हैं।
इस पर्व में ‘कन्या भोजन’ कराने का प्राचीन रिवाज है,दरअसल कुंवारी कन्याओं को देवी के रूप में पूजने की प्रथा है।कहा जाता है कि ‘बेटी खाएगी उसे देवी पाएगी।इसी मान्यता के परिपालन में नवरात्रि पर्व पर देवी भक्त नव कन्याओं को विविध पकवान फल खिलाते हैं। कन्याओं का चरण धोकर,चरण छू कर उन्हें अपनी श्रद्धा भक्ति सामर्थ के मुताबिक भेंट देकर आशीष मांगते हैं।
विछोह की वेदना भूल जाती हैं बेटियां
बेटी जो जन्म के बीस पच्चीस बरस मायके में बिताती है। ए सुनते सुनते कि बेटियां तो पराया धन होती हैं, दुर्भाग्य है कि विवाह उपरांत उन्ही बेटियों को ससुराल में भी जीवन भर पराया कहा जाता है।स्मरण कीजिए एक पौधे को मिट्टी से गमले में या गमले से मिट्टी में जब रोपा जाता है तो वह स्थान परिवर्तन की पीड़ा में मुरझा जाता है। वहीं बीस पच्चीस वर्षों तक मायके में पली बढ़ी बेटियां अपनी मिट्टी,अपना घर- परिवार,गांव- शहर अपनी सखी सहेलियों को छोड़कर समस्त पुराने रिश्तों के विछोह की वेदना को भूलाकर सदा सदा के लिए ससुराल में जा बसती है।
वहां भी अगर बेटी को माता-पिता की थोड़ी भी अकुशलता का समाचार मिलता है तो वह मायके जाने को मछली की भांति तड़फ उठती है।हमारे वेद पुराण इतिहास,और चिंतक चीख चीख कर बता रहे हैं कि बेटों की तूलना में बेटियां कम ज्ञानी नहीं होती। हमारे हरेक पर्व हमारी परम्पराएं बेटियों पर केंद्रित हैं। बेटियों की घटती संख्या के कारण समाज में अनेक रिश्ते-नाते, त्योहार समाप्त प्राय हो चलें है।
इस विषय पर गंभीर चिंतन मनन करने नवरात्रि पर्व फिर आया है।इस पर्व पर देवी की पूजा में लीन देवी भक्तों से यही कहना है कि रोते बिलखते परिवार को बिटिया हंसा देती है। इसीलिए वे देवी की वरदान होती हैं,अतः बेटियों का मान देवियों के मानिंद ही रखें। इसी में जगत की भलाई है। ऐसे ही भावनाओं की अभिव्यक्ति कविश्री ने दिल को छू लेने वाली पंक्तियों में व्यक्त किया है — हल्दी-कुमकुम,मेंहदी-सिंदूर का अवतार न होता
न होती बहिन -बेटियां तो रंक्षाबंधन-भाईदूज तीज का त्यौहार न होता।
जीती-जागती देवी हैं बेटी
आजकल बदलते वक्त के साथ इस प्राचीन परंपरा में बड़ी विकृति दिखाई दे रही है। समाज में बेटी- बेटा के मध्य बड़ा ही भेदभाव का बोल बाला दिखाई दे रहा है। बेटे होने की खुशी में जश्न मनाते हैं,किंतु जब बेटी जन्म लेती है तो ज्यादातर लोगों का मुंह ऐसे लटक जाता है,जैसे उन्हें सांप ने सुंघ लिया हो। ऐसी भयावह घटना भी सामने आ रही है कि आधुनिकता के साथ चिकित्सा विज्ञान में हुई प्रगति का दुरुपयोग करते हुए अनेक चिकित्सक और दम्पत्ति मिलकर कोख में पल रही कन्या भ्रूण की निर्मम हत्या कर दे रहे है।
ऐसी क्रूरतापूर्ण हरकत करते समय इंसान भूल जाता है कि घर में आती हुई लक्ष्मी,सरस्वती और दुर्गा की जघन्य हत्या करके महापाप का भागीदार अपने ही हाथों अपने सिर मोल ले रहा है। ऐसे घृणित कृत्य को करने वाला इंसान ईमानदारी से अपने हृदय में हाथ रखकर अपनी आत्मा से पूछे कि “कन्या भ्रूण हत्या’’ करने वाले मनुष्य की पूजा का मान क्या मां दुर्गा स्वीकार करेगी? इस सवाल का सीधा-सीधा उत्तर है कभी नहीं।
इसी तरह अनेक परिवारों में कम दहेज देने वाली दुल्हन को प्रताड़ित किया जाता है। उसे जलाकर मार डालने जैसा अकल्पनीय कृत्य किया जाता है। अनेक गांव में नारी जाति को डायन -टोनही कह कर मारा-पीटा जाता है ।ऐसी नासमझी और मूर्खतापूर्ण कदम उठाने वालों को यह सोचना चाहिए कि ऐसा करके वे लोग गांव घर की जीवित देवी का घोर अपमान कर रहे हैं। ऐसे ही कई अज्ञानी लोग अपना पाप धोने के लिए वर्ष में केवल दो बार नवरात्रि के पावन पर्व पर कन्या भोजन करवातें हैं। वे भूल जाते हैं कि घर परिवार की जीती जागती देवी का तिरस्कार करने वाले दुर्जनों को मां दुर्गा कभी भी क्षमा नहीं करेगी।
हमारे समाज में कई ऐसी घटनाएं भी उजागर हुई हैं जब बेटों ने माता पिता की जमीन जायदाद को बांट लियाऔर फिर मुंह फेर लिया। इसके विपरीत फुटी कौड़ी की आस किए बिना भी बेटियों ने अपने माता-पिता के दुख दर्द को अपना दुख दर्द समझा। बेटियों की ऐसी महिमा को ब्यक्त करते कविश्री ने लिखा है कि- फूल सी नाजुक होती है बेटियाॅ,
स्पर्श हो खुरदुरा तो रोती है बेटियां
रौशन करेगा बेटा तो एक ही कुल को,
पर दो दो कुल की लाज को सवांरती है बेटियाॅ।

विजय मिश्रा ‘अमित‘ पूर्व अति महाप्रबंधक(जन)

DIwali Offer

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
सुरभि ज्योति की वेडिंग रेडी लुक्स Fan’s मे Viral सुषमा के स्नेहिल सृजन – ज्योति पर्व घर में कौन सी दिशा में मंदिर होना चाहिए Stranger Things Fans के लिए खुशखबरी Stranger Things-5