छत्तीसगढ़
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सीए चेतन तारवानी ने जीएसटी में हो रही तकलीफों के संबंध में  राज्य जीएसटी विभाग काे साैंपा ज्ञापन

रायपुर। सीए चेतन तारवानी ने जीएसटी में हो रही तकलीफों के संबंध में  राज्य जीएसटी विभाग काे ज्ञापन साैंपा  है। सीए चेतन तारवानी ने  साैंपे गए ज्ञापन में बताया कि -उचित कारणों से वैधानिक समयसीमा के बाद दायर अपीलों की स्वीकृति हेतु निवेदन एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के पालन की आवश्यकता।

यह देखा गया है कि राज्य के कई जीएसटी कार्यालय वैधानिक समयसीमा (DRC-07 आदेश जारी होने की तिथि से तीन माह) के बाद दायर की गई अपीलों को या तो स्वीकार नहीं कर रहे या सीधे अस्वीकार कर रहे हैं, और वह भी बिना अपीलकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए। यह प्रक्रिया न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है बल्कि MSMEs के लिए भारी परेशानी का कारण भी बनती है।

हमारे मुख्य तर्क निम्नलिखित हैं:

वाजिब कारणों के चलते अपील में देरी:

कई मामलों में आदेश की हार्ड कॉपी अपीलकर्ता को नहीं मिली, जिससे उन्हें आदेश की जानकारी ही नहीं हो सकी।बीमारी, वित्तीय संकट, कर्मचारी की कमी, तकनीकी समस्याएं जैसे कारणों से अपील समय पर दायर नहीं हो पाई। कई बार आदेश केवल जीएसटी पोर्टल पर अपलोड किया जाता है, और इसकी कोई सूचना अलग से नहीं दी जाती जिससे व्यापारी अनभिज्ञ रहते हैं।

 प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन:

कई आदेश बिना सुनवाई (ex-parte) पारित किए गए, जिसमें भारी टैक्स मांगा गया, जो अनुमान और एकतरफा मूल्यांकन पर आधारित है।
न तो नोटिस की सही सेवा हुई, न ही ईमेल/मोबाइल द्वारा सूचना दी गई, जिससे करदाता को अपील का अवसर ही नहीं मिल पाया।

 MSME इकाइयों को गंभीर नुकसान:
MSMEs के पास बार-बार अपील या मुकदमे करने की वित्तीय क्षमता नहीं होती।
पुनः अपील करने, ट्रिब्यूनल में जाने और वकील रखने में अत्यधिक खर्च आता है।
यह जीएसटी की “सरल अनुपालन” की मूल भावना के विपरीत है।

विलंब को माफ करने का वैधानिक आधार:
यद्यपि कानून में एक महीने की अतिरिक्त छूट का ही उल्लेख है, परंतु न्यायालयों ने बार-बार कहा है कि जहां पर्याप्त कारण हो, वहां तकनीकी प्रक्रियाओं को न्याय के मार्ग में बाधा नहीं बनने देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट एवं उच्च न्यायालयों ने यह भी कहा है कि अगर देरी में दुर्भावना नहीं है, तो न्यायोचित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।

 न्यायिक उदाहरणों का उल्लेख:
(i) Tvl. Deepa Traders बनाम डिप्टी कमिश्नर (GST), मद्रास उच्च न्यायालय (13 अगस्त 2024) – इस मामले में अदालत ने पाया कि आदेश केवल पोर्टल पर अपलोड किया गया था, जिसकी स्पष्ट सूचना नहीं थी। 285 दिन की देरी को माफ कर अपील पर सुनवाई का आदेश दिया गया।

(ii) कलकत्ता उच्च न्यायालय – यह तय किया गया कि WBGST अधिनियम की धारा 107 में ‘Section 5 of Limitation Act’ का स्पष्ट अपवर्जन नहीं है, इसलिए अपीलों की समयसीमा को बढ़ाया जा सकता है।

(iii) Shaikh Abdul Azeez बनाम आंध्र प्रदेश राज्य सरकार – यहां अपीलकर्ता की बीमारी को वैध कारण मानकर विलंब को माफ किया गया।

(iv) मदुरै खंडपीठ, मद्रास उच्च न्यायालय – यहां अपीलकर्ता को आदेश की जानकारी ही नहीं थी क्योंकि उनके अकाउंटेंट ने सूचना नहीं दी। कोर्ट ने अपील को शर्तों सहित स्वीकार किया।

 क्षेत्रीय अधिकारियों के लिए स्पष्ट निर्देशों की आवश्यकता:
वर्तमान में अधिकारियों के पास स्पष्ट मार्गदर्शन न होने के कारण वे अपीलों को सख्ती से अस्वीकार कर रहे हैं।
एक सरल, स्पष्ट और सहानुभूतिपूर्ण परिपत्र यदि विभाग द्वारा जारी किया जाए, तो सभी कार्यालयों में एकरूपता आएगी, MSMEs को राहत मिलेगी और अनुपालन में वृद्धि होगी।

हमारी विनम्र प्रार्थनाएँ:
कृपया विभाग की ओर से सभी अपीलीय अधिकारियों को निर्देश जारी किए जाएं कि:

• अपीलों की वैधानिक समयसीमा की गणना आदेश की वास्तविक प्राप्ति तिथि से की जाए, न कि केवल पोर्टल पर अपलोडिंग की तिथि से।
• प्रत्येक विलंबित अपील को उसके कारणों के आधार पर जांचा-परखा जाए।
• एकतरफा आदेशों, विशेषकर जहां सेवा केवल पोर्टल द्वारा हुई हो, के मामलों में विलंब को अधिक सहानुभूति से देखा जाए।
• प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन हर अपील में सुनिश्चित किया जाए।
• MSMEs को तकनीकी और कानूनी जटिलताओं से राहत दी जाए।
• इसके अतिरिक्त, जो अपीलें पूर्व में विलंब के कारण खारिज हो गई हैं, उन्हें भी पुनः विचारार्थ लिया जाए यदि अपीलकर्ता पर्याप्त कारण प्रस्तुत कर सके।

यदि उक्त सुझावों को अमल में लाया जाता है तो यह न्याय और निष्पक्षता के संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप होगा, MSME करदाताओं में विश्वास बढ़ेगा और जीएसटी प्रणाली की पारदर्शिता और भरोसेमंदी बनी रहेगी।

2. छत्तीसगढ़ राज्य के जीएसटी अधिकारियों द्वारा सीजीएसटी अधिनियम की धारा 71 के अनुचित उपयोग कर तनावपूर्ण महौल उत्पन्न करने के संबंध में

निवेदनपूर्वक आपका ध्यान छत्तीसगढ़ राज्य के व्यापारियों से संबंधित एक गंभीर विषय की ओर आकर्षित करना चाहते हैं, जो उनके व्यवसायिक हितों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है। वर्तमान में, राज्य जीएसटी विभाग द्वारा व्यापारियों, विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमियों, पर अनुचित दबाव और मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है।
हाल ही में, व्यापारियों को बार-बार नोटिस तो भेज ही जा रहे थे पर अब आक्रामक वसूली कार्रवाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस प्रकार की कठोर प्रशासनिक नीतियों के कारण व्यापारिक गतिविधियाँ बाधित हो रही हैं, जिससे प्रदेश में व्यापार और औद्योगिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

सीजीएसटी अधिनियम की धारा 71 का अनुचित उपयोग

सीजीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 71(1) के अनुसार, अधिकारियों को केवल व्यवसाय परिसरों तक पहुँचने तथा वहाँ उपलब्ध दस्तावेजों, खाता-बही, कंप्यूटर डेटा आदि के निरीक्षण का अधिकार दिया गया है, जिससे राजस्व से संबंधित आवश्यक ऑडिट, जांच, सत्यापन और निरीक्षण किए जा सकें।
हालांकि, हाल के समय में जीएसटी अधिकारियों द्वारा इस धारा का दुरुपयोग किया जा रहा है, जो कि निम्नलिखित रूपों में स्पष्ट रूप से देखा गया है—

1. व्यापारियों के मोबाइल फोन जब्त किए जा रहे हैं, जो इस धारा के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
2. अधिकारियों की टीमें व्यापारियों के स्टॉक की गिनती कर रही हैं, जबकि इस प्रकार की कार्रवाई के लिए उपयुक्त कानूनी प्रावधान धारा 67 के अंतर्गत ही मान्य है।
3. व्यापारियों को उनके चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) अथवा कर सलाहकार (Tax Consultant) से परामर्श करने से रोका जा रहा है।
4. कुछ मामलों में, सीए अथवा कर सलाहकार को बुलाने पर व्यापारियों को और अधिक कठोर कार्रवाई की धमकी दी जा रही है।

यह न केवल प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (Principles of Natural Justice) के विरुद्ध है, बल्कि जीएसटी अधिनियम के प्रावधानों का भी उल्लंघन है।

धारा 67 और धारा 71 के अधिकारों का भेद समझने की आवश्यकता
राज्य कर अधिकारियों द्वारा धारा 71 के अंतर्गत कार्रवाई करते समय, धारा 67 के अधिकारों का अनुचित उपयोग किया जा रहा है।
✅ धारा 67 – तलाशी (Search) एवं जब्ती (Seizure) से संबंधित प्रावधान केवल संयुक्त आयुक्त (Joint Commissioner) की पूर्वानुमति एवं ठोस कारण (Reason to Believe) के आधार पर ही लागू होते हैं।
✅ धारा 71 – केवल व्यापार परिसरों तक पहुँचने एवं आवश्यक दस्तावेजों के निरीक्षण तक सीमित है, इसमें तलाशी अथवा जब्ती का कोई अधिकार नहीं दिया गया है।
स्पष्ट रूप से, जीएसटी अधिकारियों का यह आचरण विधि सम्मत नहीं है, किंतु इसके आधार पर व्यापारियों पर अनुचित आर्थिक दंड एवं अन्य प्रशासनिक कार्रवाइयाँ की जा रही हैं।
व्यापारिक समुदाय पर प्रतिकूल प्रभाव

राज्य कर अधिकारियों की इन अनुचित एवं आक्रामक प्रवृत्तियों के कारण—
1. व्यापारीगण अत्यधिक दबाव में आकर अनावश्यक एवं अनुचित जुर्मानों का भुगतान कर रहे हैं। सिर्फ इसलिए क्योंकि वे राज्य कर अधिकारियो द्वारा उत्पन्न इस दबाव और व्यवहार को संभालने में असमर्थ हैं, न कि क्योंकि वे वास्तव में वे जिम्मेदार हैं।
2. अधिकारियों के कठोर एवं भययुक्त व्यवहार के कारण प्रदेश में व्यापारिक अस्थिरता एवं असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
3. कई व्यापारियों को उनकी व्यावसायिक प्रतिष्ठान सील करने की धमकी दी जा रही है, जिससे उनका व्यवसाय पूर्णतः ठप हो सकता है।

हमारी माँगें
हम विनम्रतापूर्वक माननीय वित्त मंत्री से अनुरोध करते हैं कि—
1. राज्य जीएसटी विभाग की कार्यप्रणाली की समीक्षा की जाए तथा यह सुनिश्चित किया जाए कि अधिकारियों द्वारा सीजीएसटी अधिनियम की धारा 71 का दुरुपयोग न किया जाए।
2. राज्य कर अधिकारियों को धारा 71 एवं धारा 67 के अधिकारों एवं उनके भिन्न उद्देश्यों की स्पष्ट समझ प्रदान करने हेतु उचित प्रशिक्षण (Training) दिया जाए।
3. अधिकारियों द्वारा व्यापारियों के साथ किए जा रहे अनुचित व्यवहार एवं प्रशासनिक दुरुपयोग की उच्चस्तरीय जाँच कराई जाए तथा दोषी अधिकारियों पर उपयुक्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
4. व्यापारियों के विरुद्ध अनावश्यक भय और दबाव बनाने की प्रवृत्ति को समाप्त किया जाए, ताकि प्रदेश में व्यापार और उद्योगों का सुचारू संचालन सुनिश्चित हो सके।

3. जीएसटी E-way bill-
पूर्व में मात्र 15 आइटम¨ पर राज्य में जीएसटी ई वे बिल की आवश्यकता होती थी , जो की मात्र एक जिले से दूसरे जिले में जाने पर दी जाने की आवश्यकता होती थी आपके द्वारा जी एस टी में ई वे बिल की छूट को समाप्त करने के कारण सभी आइटम पर ई वे बिल की आवश्यकता है तथा दूरी को समाप्त करने के कारण अब 100 मीटर पर भी E-way bill की आवश्यकता होगी इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति अपनी दो चक्का गाड़ी पर भी माल लेकर आ रहा है तो भी ई वे बिल की आवश्यकता होगी। जो छोटे व्यापारियों के लिए उचित नहीं है अतः आपसे निवेदन है कि आवश्यक संशोधन कर एक जिले से दूसरे जिले तक माल जाने पर ही ई वे बिल की आवश्यकता पर जोर देना चाहिए।

4. E-way bill मैं लिपकिय त्रुटि पर भी भारी पेनल्टी–

क्योंकि अनेक व्यापारी अभी भी जीएसटी के नियमों से अवगत नहीं हो पा रहे हैं इसलिए लिपकिय त्रुटि होना स्वाभाविक है छोटी-छोटी लिपकीय त्रुटि होने के कारण जीएसटी अधिकारियों द्वारा भारी E-way bill- पेनल्टी की मांग की जाती है जिससे व्यापारियों को विभाग द्वारा अत्याचार करना महसूस होता है अतः महोदय से निवेदन है कि अधिकारियों को प्रशिक्षण देकर CBIC द्वारा जारी E-way bill के लिए सर्कुलर नंबर. 64/38/2018 का पालन करने के लिए बाध्य करें। जिसके अंतर्गत लिपकीय त्रुटि होने पर मात्र ₹1000 की पेनल्टी लगानी चाहिए इसके बजाय अधिकारियों द्वारा धारा 129(1) (बी) के तहत पेनल्टी लगाई जाती है जो की 200% टैक्स की पेनल्टी होती है इससे व्यापारियों में भय का माहौल है |

5) नया रजिस्ट्रेशन एवं संशोधन देने में देरी-
यदि कोई व्यापारी नई रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन देता है तो विभागीय अधिकारियों द्वारा उस आवेदन में अनावश्यक त्रुटि निकालकर नोटिस दिया जाता है नोटिस में प्राय: त्रुटि में “अदर्स” बस लिखा जाता है और व्यवसाय स्थल के लिए दो प्रूफ देने के बावजूद और दस्तावेजों की मांग की जाती है जिससे 7 दिन में मिलने वाला रजिस्ट्रेशन मिलने में 21 दिन तक लग जाता है |

6)बिना उचित कारण स्पष्ट किये डिमांड नोटिस डीआरसी 07 जारी करना–
विभाग द्वारा जारी स्क्रुटनी नोटिस का ऑनलाइन जवाब देने के बाद अगर कोई व्यापारी अधिकारियों से संपर्क नहीं करता है तो डिमांड नोटिस जारी कर दिया जाता है जिसमें कारण के रूप में सिर्फ यह लिखा जाता है कि “आपका जवाब संतोष प्रnk; नहीं है” अधिकारियों को स्पीकिंग ऑर्डर पास करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए जो यह स्पष्ट करें कि अधिकारी को कौन से दस्तावेज की कमी लगी या कौनसा दस्तावेज अनुचित लगा।

7) रिफंड आवेदनों का तय समय सीमा पर निराकरण न होना–
यदि कोई व्यापारी रिफंड के लिए आवेदन देता है तो विभागीय अधिकारियों द्वारा उस आवेदन में अनावश्यक त्रुटि निकाल कर रिजेक्ट कर दिया जाता है और कई मामलों में तय समय सीमा में रिफंड आवेदन का निराकरण नहीं हो रहा है अधिकारियों द्वारा यह बोलकर टाल दिया जाता है कि आपका आवेदन हमारे पोर्टल पर नहीं दिख रहा है कृIया अपना आवेदन वापस लेकर नया आवेदन दाखिल करें जबकि जीएसटी प्रावधानों के अनुसार 60 दिनों के अंदर रिफंड आवेदनों का निराकरण हो जाना चाहिए।

8) जीएसटी नंबर कैंसिलेशन के लिए दाखिल आवेदनों का लंबे समय तक स्वीकार न होना
यदि कोई व्यापारी उचित कारणवश अपना जीएसटी नंबर सरेंडर करना चाहता है और उसके लिए ऑनलाइन आवेदन दाखिल करता है तो विभागीय अधिकारियों द्वारा सालों तक उस आवेदन का निराकरण नहीं किया जाता और वह पोर्टल पर पेंडिंग ही दिखता रहता है ऐसे आवेदनों का निराकरण 30 दिन के भीतर हो जाना चाहिए वैसे आवेदनों के निराकरण के लिए एक समर्पित कक्ष का गठन किया जाना चाहिए।

9.जीएसटीआर-3बी रिटर्न विलंब से दाखिल करने के मामलों में धारा 125, सीजीएसटी अधिनियम, 2017 के अंतर्गत दंडात्मक नोटिस जारी किए जाने के विषय मे:-

वर्तमान में राज्यभर के विभिन्न करदाताओं को केवल GSTR-3B रिटर्न के विलंबित दाखिला करने के कारण, जबकि संबंधित ब्याज एवं विलंब शुल्क का भुगतान विधिसम्मत रूप से किया जा चुका है, धारा 125, सीजीएसटी अधिनियम, 2017 के अंतर्गत दंडात्मक नोटिस जारी किए जा रहे हैं।
इस प्रकार की कार्यवाही से न केवल करदाताओं में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो रही है, बल्कि यह विधिक दृष्टिकोण से भी निम्नलिखित आधारों पर अवांछनीय एवं असंगत प्रतीत होती है:
धारा 47 एवं 50 के अंतर्गत विशिष्ट प्रावधान:
• GSTR-3B रिटर्न विलंब से दाखिल करने की स्थिति में धारा 47 के अंतर्गत विलंब शुल्क (Late Fee) तथा धारा 50 के अंतर्गत ब्याज का स्पष्ट प्रावधान किया गया है।
• उक्त प्रावधान “Lex Specialis Derogat Legi Generali” (विशेष कानून सामान्य कानून को निरस्त करता है) के सिद्धांत पर आधारित है।
. धारा 125 का दायरा – केवल सामान्य प्रकृति के उल्लंघन के लिए:
• धारा 125 केवल ऐसे सामान्य प्रावधानों के उल्लंघन हेतु लागू होती है, जहां कोई विशिष्ट दंड प्रावधान उपलब्ध नहीं है।
• जब करदाता विलंब शुल्क एवं ब्याज चुका चुका है, तो उसी तथ्य के लिए धारा 125 के अंतर्गत अलग से दंडारोपण करना द्वितीय दंड (Double Jeopardy) के सिद्धांत का उल्लंघन है।

10. राज्य GST प्रणाली के अंतर्गत DIN (दस्तावेज पहचान संख्या) प्रणाली लागू किए जाने के संबंध में।

जैसा कि आप अवगत हैं, केंद्र GST (CGST) विभाग द्वारा दिनांक 5 नवम्बर 2019 से DIN प्रणाली अनिवार्य की गई है, जिससे करदाताओं को प्राप्त प्रत्येक दस्तावेज़/पत्राचार की वैधता सुनिश्चित होती है। यह प्रणाली पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और प्रशासनिक जवाबदेही को प्रोत्साहित करती है।

DIN प्रणाली लागू किए जाने से निम्नलिखित लाभ होंगे:
1. करदाताओं को भेजे गए सभी पत्र, नोटिस, समन आदि की वैधता का स्पष्ट प्रमाण रहेगा।
2. फर्जी या असत्य पत्रों से सुरक्षा प्राप्त होगी।
3. विभागीय कार्यप्रणाली में पारदर्शिता बढ़ेगी।
4. करदाताओं का विभाग पर विश्वास और सहयोग में वृद्धि होगी।

हमारा आपसे विनम्र अनुरोध है कि राज्य GST विभाग में भी DIN प्रणाली को अविलंब लागू किया जाए, ताकि करदाताओं को बेहतर प्रशासनिक सेवाएं प्राप्त हो सकें तथा विभाग की कार्यप्रणाली और अधिक प्रभावी एवं पारदर्शी बन सके।
आपसे सकारात्मक विचार और शीघ्र निर्णय की अपेक्षा करते हैं।

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