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Hanuman Jayanti 2025: आज हनुमान जयंती पर पूजा में बजरंगबली को लगाएं गुड़-चने का भोग और पढ़ें चालीसा, मिटेंगे हर संकट

आज पूरे उत्तर भारत में हनुमान जयंती मनाई जा रही है. चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि पर हर साल हनुमान जयंती मनाई जाती है. आज लोगों ने व्रत रखा है. मदिरों और घरों में हनुमान जी की पूजा हो रही है. हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए लोग हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं और पूजा का समापन आरती से करते हैं.

वहीं  आप हनुमान जी को शीघ्र प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो इस दिन भगवान को गुड़-चने का भोग जरूर लगाए. गुड़ चने का भोग हनुमान जी को बहुत प्रिय है.

हनुमान चालीसा का प्रारंभ श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि दोहा से होता है. वहीं इसकी पहली चौपाई जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर है. जा सच्चे मन से हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. हनुमान जी की आरती के लिए गाय के शुद्ध घी या फिर तेल के दीपक का उपयोग करें. आप चाहें तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं.  आइए जानते हैं हनुमान चालीसा और आरती के बारे में.

गुड़-चने का भोग 

हनुमान जी को पूजा में कई तरह के भोग जैसे लड्डू, इमरती, पान का बीड़ा, केसर भात, पंचमेवा, नारियल आदि चढ़ाएं जाते हैं, जिनमें गुड़-चना भी एक है और यह भगवान हनुमान का सबसे प्रिय भोग है. हनुमान जयंती के दिन आप गुड़-चने का भोग लगाकर बजरंगबली को प्रसन्न कर सकते हैं. साथ ही हनुमान जी को गुड़ चना का भोग लगाने से मंगल दोष (Mangal Dosh) भी दूर होता है और परेशानियो से मुक्ति मिलती है.
गुड़-चना भोग का महत्व
धार्मिक दृष्टिकोण से गुड़-चना भोग का बहुत ही महत्व होता है. स्वयं भगवान विष्णु ने इसकी महत्ता का उल्लेख किया है. बजरंगबली के साथ ही भगवान विष्णु, मां संतोषी और शनि देव को भी गुड़-चना का भोग लगाया जाता है.

हनुमान चालीसा

दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग वन्दन।।

विद्यावान गुणी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।सोई अमित जीवन फल पावै।।

चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

दोहा-
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।

हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥ आरती कीजै…

अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥
दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥ आरती कीजै…

लंका सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सवारे॥ आरती कीजै…

लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥
पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥ आरती कीजै…

बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥
सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥ आरती कीजै…

कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमानजी की आरती गावे। बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥ आरती कीजै…

 

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