
बचपन में बच्चों को चीनी कम खाने दें, बड़े होने पर दिल नहीं देगा धोखा
नई दिल्ली। जैसे-जैसे शिशु के टेस्ट बड्स डेवलप होने लगते हैं वैसे-वैसे उसकी पसंद-नापसंद भी जाहिर होने लगती है। ज्यादातर नन्हें मुन्नों को मीठा रास आता है। लेकिन यही मीठा शुरुआती दौर में अगर कंट्रोल कर लिया जाए तो बड़े होकर दिल धोखा नहीं देता। ये एक स्टडी में जाहिर हुआ है। यूके के एक अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था और बचपन के शुरुआती दौर में चीनी का सेवन सीमित करने से वयस्कता में हृदय रोग के जोखिम को कम करने में अहम भूमिका निभाई जा सकती है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!यह निष्कर्ष युद्ध के बाद चीनी राशनिंग युग में पैदा हुए 63,000 से ज्यादा वयस्कों के व्यापक विश्लेषण से निकाला गया है। शोधकर्ताओं ने उन माताओं से जन्मे वयस्कों का अध्ययन किया जो 1950 के दशक की शुरुआत में ब्रिटेन में चीनी राशनिंग के दौर में रहे। उस समय गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 40 ग्राम से कम चीनी लेने की अनुमति थी और दो साल से कम उम्र के बच्चों को कोई अतिरिक्त चीनी नहीं खानी पड़ती थी। उनके दीर्घकालिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड पर नजर रखकर, वैज्ञानिकों ने शुरुआती दौर में सीमित चीनी सेवन और बेहतर हृदय संबंधी परिणामों के बीच एक स्पष्ट संबंध पाया।
हाल ही में हुए इस अध्ययन में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए: जिन प्रतिभागियों ने जन्म से दो साल की उम्र तक चीनी का सेवन कम से कम किया, उनमें हृदय रोग का कुल जोखिम 20 फीसदी कम, दिल का दौरा पड़ने का जोखिम 25 फीसदी कम, हृदय गति रुकने का जोखिम 26 फीसदी कम, एट्रियल फिब्रिलेशन का जोखिम 24 फीसदी कम, स्ट्रोक का जोखिम 31 फीसदी कम और हृदय रोग से मृत्यु का जोखिम 27 फीसदी कम पाया गया।
ये निष्कर्ष इस बात पर जोर देते हैं कि कैसे शुरुआती जीवन में आहार में छोटे-छोटे बदलाव भी जीवन भर हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का सुझाव है कि चीनी का कम सेवन मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों को रोककर अप्रत्यक्ष रूप से हृदय की रक्षा कर सकता है, जो हृदय रोग के मुख्य कारणों में से एक है।

