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दहेज की भयावह हकीकत: निक्की भाटी की मौत ने फिर जगाई चिंता

दहेज की आग: निक्की भाटी की दर्दनाक कहानी और समाज का सच

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दहेज का दानव: एक बेटी की चीख-आजकल देश में दहेज को लेकर फिर से चर्चाएं गर्म हैं। 26 साल की निक्की भाटी की दुखद मौत ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। खबरों के मुताबिक, ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में 21 अगस्त को निक्की को उसके पति और ससुराल वालों ने कथित तौर पर आग लगा दी थी। जो वीडियो और तस्वीरें सामने आईं, वे दिल दहला देने वाली हैं। निक्की और उसकी बहन की शादी 2016 में दो भाइयों से हुई थी। शादी के समय परिवार ने ससुराल वालों को एक स्कॉर्पियो गाड़ी, एक मोटरसाइकिल और सोना जैसी कीमती चीजें दी थीं। लेकिन, उनकी लालच की भूख यहीं नहीं मिटी। बाद में 36 लाख रुपये और एक लग्जरी कार की मांग ने निक्की की जिंदगी तबाह कर दी। यह सिर्फ निक्की की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन लाखों महिलाओं की दास्तां है जो हर दिन दहेज के कारण प्रताड़ना का शिकार हो रही हैं। यह प्रथा हमारे समाज पर एक ऐसा दाग है जिसे मिटाना बेहद जरूरी है।

दहेज के नाम पर मौतों का अंतहीन सिलसिला-राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। उनके अनुसार, भारत में हर दिन लगभग 20 महिलाएं दहेज के कारण अपनी जान गंवा देती हैं। इसका मतलब है कि हर घंटे कोई न कोई बेटी या बहू इस क्रूर प्रथा का शिकार हो रही है। निक्की की मौत के ठीक अगले दिन, राजस्थान के जोधपुर में एक और दिल दहला देने वाली घटना हुई। वहां एक शिक्षिका, संजू बिश्नोई ने अपनी तीन साल की बेटी के साथ खुद को आग के हवाले कर दिया। दुख की बात यह है कि बेटी की मौके पर ही मौत हो गई और संजू ने भी इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। ये घटनाएं साफ तौर पर दिखाती हैं कि दहेज सिर्फ एक पारिवारिक समस्या नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की बीमार और सड़ी हुई सोच का नतीजा है। जब तक हम अपनी सोच नहीं बदलेंगे, तब तक ऐसी घटनाएं रुकने वाली नहीं हैं।

कानून तो है, पर असर क्यों नहीं?-भारत में दहेज को रोकने के लिए 1961 में दहेज निषेध कानून लागू किया गया था। बाद में, 1983 में महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए आईपीसी की धारा 498ए जोड़ी गई। लेकिन, इन सबके बावजूद हालात में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। कानूनी प्रक्रिया इतनी पेचीदा है कि अक्सर पीड़ित परिवार को न्याय मिलने में सालों लग जाते हैं या वे न्याय से वंचित रह जाते हैं। कई बार तो आरोपी इसे ‘गिफ्ट’ बताकर या कोई और बहाना बनाकर केस से बच निकलते हैं। सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा कुशवाहा का कहना है कि अदालतें अक्सर शारीरिक सबूत, जैसे मेडिकल रिपोर्ट या चोट के निशान मांगती हैं, जबकि मानसिक उत्पीड़न जैसी बातों को नजरअंदाज कर देती हैं। यही कारण है कि ऐसे मामलों में सजा का प्रतिशत बहुत कम है और अपराधी बेखौफ घूमते रहते हैं।

बदलनी होगी सोच, तभी मिटेगा दहेज-महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाली जानी-मानी कार्यकर्ता योगिता भायाना का कहना है कि सबसे बड़ी समस्या हमारी सामाजिक सोच है। आज भी कई लोग दहेज को शादी का एक अनिवार्य हिस्सा मानते हैं। शादी में महंगी कारें और कीमती तोहफे देकर लोग अपनी शान दिखाते हैं, और सबसे दुखद बात यह है कि कई बार पीड़ित परिवार भी इस पर गर्व महसूस करता है। निक्की के मामले में, उनके पिता ने एक टीवी डिबेट में बताया था कि उन्होंने अपनी बेटी के ससुराल वालों को एक SUV गाड़ी दी थी। यह बात दर्शाती है कि दहेज हमारे समाज में कितना आम हो गया है। असली बदलाव तभी आएगा जब हम सब मिलकर इसे एक अपराध मानेंगे और इसका पुरजोर विरोध करेंगे। जब तक समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी।

चौंकाने वाले आंकड़े: दहेज का भयावह सच-एक शोध के अनुसार, 1930 से 1999 के बीच भारत में हुई 74,000 शादियों में से लगभग 90% में दहेज दिया गया था। 1950 से 1999 तक दहेज के रूप में दिए गए पैसों का कुल मूल्य लगभग 25 ट्रिलियन डॉलर था। हाल के आंकड़े भी बेहद डरावने हैं। NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2017 से 2022 के बीच दहेज के कारण 35,493 दुल्हनों की हत्या हुई। इसका मतलब है कि हर साल हजारों की संख्या में महिलाएं दहेज की बलि चढ़ जाती हैं। ये आंकड़े साफ तौर पर बताते हैं कि दहेज की समस्या केवल गांवों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह शहरों और संपन्न परिवारों में भी उतनी ही गहराई से मौजूद है। यह हमारे समाज के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।

हम क्या कर सकते हैं? दहेज मुक्त समाज की ओर-दहेज के कारण होने वाली मौतें सिर्फ अपराध नहीं हैं, बल्कि ये हमारे समाज पर एक गहरा कलंक हैं। निक्की भाटी जैसी घटनाएं तब तक होती रहेंगी जब तक हम अपनी सोच में बदलाव नहीं लाते। कड़े कानून बनाना निश्चित रूप से जरूरी है, लेकिन उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि परिवार अपनी बेटियों को बोझ न समझें और समाज शादी को एक लेन-देन का सौदा बनाना बंद करे। स्कूलों, कॉलेजों और मीडिया के माध्यम से लगातार जागरूकता फैलाना बहुत जरूरी है। सरकार को भी केवल पोस्टर या नारे लगाने के बजाय ठोस और प्रभावी कदम उठाने होंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब भी कोई महिला मदद के लिए पुकारे, तो उसे अनसुना न करें या वापस न भेजें। तभी हम सचमुच दहेज जैसी इस कुप्रथा को जड़ से खत्म कर पाएंगे और एक सुरक्षित समाज का निर्माण कर पाएंगे।

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