गोपेश्वर । पितृ पक्ष शुरू होते ही बदरीनाथ में पिंडदान और तर्पण के लिये तीर्थयात्रियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। पितृ पक्ष के पहले दिन मंगलवार को लोगों ने ब्रह्मकपाल में पितृ मोक्ष के लिये पिंडदान और तर्पण किया।
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हिन्दू धर्म में ब्रह्मकपाल में तर्पण और पिंडदान का विषेश महत्व बताया गया है। ऐसे में यहां प्रतिवर्ष देशभर से श्रद्धालु पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान के लिये बदरीनाथ पहुंचते हैं। ब्रह्मकपाल तीर्थपुरोहित उमेश सती, शरद सती, राकेश सती ने बताया कि पितृ पक्ष के पहले दिन तीन हजार लोगों ने धाम में पिंडदान और तर्पण किया है जबकि बड़ी संख्या में श्रद्धालु पिंडदान और तर्पण की तिथि की जानकारी ले रहे हैं।
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श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि मानसून में अपेक्षाकृत यात्रा में कमी के बाद श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही तथा नवरात्रि के दौरान श्री बदरीनाथ-केदारनाथ धाम में श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
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ब्रह्मकपाल तीर्थ की मान्यता
याज्ञवल्क्य स्मृति में महर्षि याज्ञवल्क्य लिखते है, आयुः प्रजा, धन विद्यां स्वर्ग, मोक्ष सुखानि च। प्रयच्छन्ति तथा राज्य पितरः श्राद्ध तर्पिता। अर्थात पितर श्राद्ध से तृप्त होकर आयु, पूजा, धन, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, राज्य व अन्य सभी सुख प्रदान करते हैं। मान्यता है कि ब्रह्माजी जब स्वयं की ओर से उत्पन्न शतरूपा (सरस्वती) के सौंदर्य पर रीझ गए तो शिव ने त्रिशूल से उनका पांचवा सिर काट दिया। जिस पर उनका सिर त्रिशूल पर चिपक गया और उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप भी लगा। इसके निवारण को भगवान शिव आर्यावर्त के तीर्थ स्थलों पर गए, लेकिन उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति नहीं मिली। जिस पर वे अपने धाम कैलाश लौटने लगे। इस दौरान बटिकाश्रम के पास अलकनंदा नदी के तट पर बदरीनाथ के इस स्थान पर ब्रह्मजी का पांचवा सिर त्रिशूल से धरती पर गिर गया। इसी स्थान पर भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली।
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श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने भी यहां गोत्र, ब्राह्मण और गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति के लिये पिंडदान और तर्पण किया था। स्कंद पुराण में पिंडदान के लिए गया, पुष्कर, हरिद्वार, प्रयागराज और काशी को श्रेयस्कर बताया गया है लेकिन बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्मकपाल में किए गए पिंडदान को सबसे ज्यादा फलदायी बताया गया है।
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