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पारदर्शिता के पैमाने पर खरा बिजली बिल

विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस ( 15 मार्च ) पर विशेष लेख

विकास शर्मा

आम से लेकर खास व्यक्ति के लिए विद्युत प्राथमिक आवश्यकता है। ऐसे में विद्युत उपभोक्ता को गुणवत्तापूर्ण बिजली की आपूर्ति और उसके लिए लगाए गए शुल्क की सारी जानकारी का होना सेवा की पारदर्शिता के लिए आवश्यक है। विद्युत के उपभोक्ता आज घरेलू , कृषि,उद्योग , व्यवसाय, व्यापार समेत हर क्षेत्र में होते हैं। इस आधार पर विद्युत उपभोक्ताओं की कई श्रेणी होती है और विभिन्न श्रेणियों के हिसाब से भिन्न प्रकार के विद्युत दर। खास बात यह कि इन दरों का निर्धारण स्वतंत्र विद्युत नियामक आयोग करता है।

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घरेलू विद्युत देयक

आम उपभोक्ता का बिल यानी घरेलू श्रेणी का बिजली बिल। इस विद्युत देयक) में हर विद्युत उपभोक्ता की एक पहचान संख्या होती है जिसे आम बोलचाल में बीपी या सर्विस क्रमांक कहा जाता है। इसके अलावा मीटर और पोल के नंबर भी दर्ज होते हैं। विद्युत उपभोक्ता को मोटे तौर पर दो वर्गों में बाँट सकते हैं, निम्न दाब (एलटी) और उच्च दाब (एचटी)। निम्न दाब में वे उपभोक्ता होते हैं जिन्हें 400 वोल्ट दाब तक के कनेक्शन दिए जाते हैं और उच्च दाब में वे उपभोक्ता होते हैं जो 11 किलो वोल्ट (1 किलोवोल्ट =1000 वोल्ट) या उससे अधिक दाब का कनेक्शन प्राप्त करते हैं। घरेलू उपभोक्ता और व्यावसायिक उपभोक्ता सामान्य तौर पर निम्न दाब उपभोक्ता होते हैं। सिंगल फेज कनेक्शन में 230 वोल्ट की आपूर्ति होती है जबकि थ्री फेज में 400 वोल्ट होता है। बिल में टैरिफ श्रेणी दी गई होती है, जिसमें घरेलू उपभोक्ता के मामले में एलव्ही 1 डीएल ( लो वोल्टेज डोमेस्टिक) लिखा होता है। लो वोल्टेज में ही आठ अलग-अलग श्रेणियाँ होती हैं जिसमें हमारे घरों के लिए कनेक्शन पहली श्रेणी में दिए जाते हैं। वहीं एचटी उपभोक्ताओं की 09 श्रेणी होती है।

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विद्युत देयक (बिल) की गणना

विद्युत बिलों को कई बार लोग उलझा हुआ समझते हैं जबकि इसकी गणना अधिक स्पष्ट और पारदर्शी होती है। आइये जाने कैसे ? विद्युत देयक हमारे द्वारा बीते माह की गई विद्युत खपत के आधार पर निर्धारित होती है। सामान्य तौर पर खपत को हम युनिट में जानते हैं। इसकी गणना की जानकारी भी बिल में दर्ज होती है जिसपर लिखा होता है वाचन (रीडिंग)। विगत माह के वाचन को वर्तमान वाचन से घटाकर इस माह के खपत की जानकारी प्राप्त होती है। इस खपत के प्रत्येक यूनिट के अनुपात में बिल राशि घटती और बढ़ती है।

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बिल में मुख्य रूप से तीन प्रकार के शुल्क और दो प्रकार के कर शामिल होते हैं। इसमें मांग या नियत प्रभार ,ऊर्जा प्रभार (विद्युत शुल्क) तथा एफपीपीएएस (फ्यूल एंड परचेज एडजस्टमेंट सरचार्ज) होता है जबकि दो प्रकार के कर शामिल होते हैं। विद्युत शुल्क (ड्यूटी) तथा ऊर्जा विकास उपकर (सेस)।

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विद्युत शुल्क और कर

बिल में दर्ज मांग प्रभार ( फिक्स्ड चार्ज) वो शुल्क है जो उपभोक्ता द्वारा लिए गए कनेक्शन के स्वीकृत भार पर लगाया जाता है। अपने घर के आकार और उपयोग के आधार पर भार निर्धारित कर विद्युत कंपनी से अनुबंध किया जाता है। असल में विदयुत कंपनी द्वारा प्रत्येक ट्रांसफार्मर की क्षमता के आधार पर विद्युत कनेक्शन प्रदान किए जाते हैं जिससे ट्रांसफार्मर पर अधिक लोड न हो। यह मांग प्रभार विभिन्न स्लैब में निर्धारित है जो खपत के आधार पर नहीं बदलते बल्कि भार में बदलाव पर ही बदलते हैं। इसके बाद ऊर्जा प्रभार होता है जो कुल यूनिट खपत से निर्धारित ऊर्जा शुल्क को गुणाकर निकाला जाता है। यह दरें भी टेलिस्कोपिक होती हैं, यानि कम खपत करने पर कम और अधिक खपत पर ऊँचे स्लैब के साथ अधिक दर होता जाता है। इसके बाद है एफपीपीएएस शुल्क। यह शुल्क बिजली उत्पादन के लिए लगने वाले इंधन और कोयले की दरों में आए उतार- चढ़ाव से प्रभावित और निर्धारित होता है। इसे वर्तमान दौर में विगत माह के कुल ऊर्जा प्रभार पर 10 प्रतिशत की दर से बिल में जोड़ा जाता है।

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विद्युत उपभोग किया जा रहा है इसलिए सरकार इस पर कर भी लगाती है। इन करों में है विद्युत शुल्क जिसकी गणना ऊर्जा प्रभार और एफपीपीएएस को जोड़ने के बाद प्राप्त राशि में 11 प्रतिशत की दर से की जाती है। यह शुल्क राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक उपभोक्ता पर लगाया जाता है। इसी कड़ी में होता है ऊर्जा विकास उपकर (सेस) जिसे 10 पैसे प्रति यूनिट की दर से केन्द्र सरकार लेती है।

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सुरक्षा निधि पर उपभोक्ता को ब्याज

बिल में कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी होती हैं इनमें सुरक्षा निधि , अतिरिक्त सुरक्षा निधि , विशेष रियायत और अधिभार प्रमुख हैं। सुरक्षा निधि वो राशि होती है जो हम पहली बार मीटर कनेक्शन लेते वक्त विद्युत कंपनी को जमा करते हैं। यह निधि जिसे हम सिक्यूरिटी डिपाजिट (एसडी) कहते हैं मूल रूप से उपभोक्ता से इसलिए प्राप्त किया जाता है क्योंकि वो अगले डेढ़ से दो माह बाद ही अपनी खपत का शुल्क कंपनी को भुगतान करता है। ऐसे में कंपनी उस संभावित खपत के लिए शुल्क लेती है जिसे आयोग द्वारा निर्धारित दर पर तय किया जाता है।

सामान्य रूप से अक्टूबर माह में बीते बारह माह में की गई औसत खपत को देखा जाता है। यदि औसत में वृद्धि दर्ज होती है तो पिछले औसत यूनिट से अतिरिक्त यूनिट पर वर्तमान दर से गणना कर राशि की मांग की जाती है। इसे अतिरिक्त सुरक्षा निधि (एएसडी) कहा जाता है। ली गई इस राशि को अगले बिल से सुरक्षा निधि में जोड़कर दर्शाया जाता है। खास बात है कि सुरक्षा निधि में जमा राशि पर कंपनी द्वारा वर्ष में एक बार ब्याज भी उपभोक्ता को दिया जाता है जिसे सामान्य तौर पर मई माह में बिल में दिया जाता है। सुरक्षा निधि वो राशि होती है जिसे कनेक्शन बंद करवाए जाने पर उपभोक्ता को वापस कर दी जाती है। किसी योजना अंतर्गत यदि किसी विशेष श्रेणी के उपभोक्ता को कोई रियायत प्रदान की जा रही है तो उस राशि को विशेष रियायत के तौर पर दर्ज किया जाता है, अधिभार की स्थिति तभी आती है जब हम निर्धारित समय पर बिल का भुगतान नहीं करते हैं। खास बात है कि उपभोक्ता मोर बिजली ऐप में भी अपने बिल की पूरी गणना को देख और समझ सकता है।

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प्राथमिक रूप से कठिन नजर आ रहा यह बिजली बिल सही मायनों में पारदर्शी बिल होने का प्रमाण है। क्योंकि विद्युत कंपनी की मंशा है जितनी खपत उतना शुल्क। यानी पाई-पाई का हिसाब एक विद्युत उपभोक्ता के पास हो इस लिहाज से बिल में हर शुल्क को दर्शाया जाता है। और हाँ, बिजली बड़ी कीमती वस्तु है जिसकी कीमत सिर्फ पैसे से नहीं आँकी जा सकती, ऐसे में मितव्ययिता से खर्च के लिए प्रेरित करने की भी मंशा होती है। इतना ही नहीं यदि किसी उपभोक्ता को बिल संबंधी शिकायत होती है तो वह संबंधित क्षेत्र के विद्युत वितरण केन्द्र में जाकर समाधान कर सकता है और उस पर भी उसे संतुष्टि न हो तो एक ग्राहक के नाते वो विद्युत उपभोक्ता शिकायत निवारण फोरम में जाकर इसकी शिकायत कर सकता है। यानी पारदर्शिता हर स्तर पर । क्योंकि विद्युत उपभोक्ता को विद्युत आपूर्ति करने के साथ उसे पारदर्शी विद्युत देयक के साथ संतुष्टिपूर्ण सेवा उपलब्ध कराना भी विदयुत कंपनी का कर्तव्य है।

विकास शर्मा
प्रकाशन अधिकारी
छ.ग. स्टेट पॉवर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी
रायपुर

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