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चुनावी शुचिता पर बेजा सवालों के तार्किक जवाब

विकास सक्सेना

दिल्ली विधानसभा के चुनावों की तारीखों के ऐलान के लिए चुनाव आयोग की तरफ से पत्रकार वार्ता का आयोजन किया गया। यूँ तो चुनाव कार्यक्रम की जानकारी चंद मिनटों में देकर इस बातचीत को समाप्त किया जा सकता था, लेकिन मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने इस मौके का भरपूर फायदा उठाते हुए उन तमाम सवालों का विस्तार से तार्किक जवाब देने की कोशिश की जिनके माध्यम से देश की चुनाव प्रक्रिया में खोट निकालने के प्रयास कुछ राजनैतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे हैं। अपने शायराना अंदाज में मुख्य चुनाव आयुक्त ने परोक्ष रूप से चुनाव प्रक्रिया पर बेजा सवाल उठाने वालों पर निशाना तो साधा ही, यह भी कहा कि देश में जीवंत लोकतंत्र है इसलिए सभी को सवाल पूछने की पूरी आजादी है और हमारा दायित्व है कि हर सवाल का जवाब लोगों को दिया जाए।

पिछले कई चुनावों का एक सामान्य चलन हो गया है कि जब भी चुनाव के नतीजे गैर भाजपा दलों के पक्ष में नहीं आते, तब वे अपनी नाकामी का ठीकरा चुनाव आयोग और ईवीएम के सिर फोड़ते हैं। लगातार मतदाताओं द्वारा नकारे जाने के बाद कुछ राजनैतिक दल तो अब चुनाव के नतीजे आने से पहले ही ईवीएम का रोना, रोना शुरू कर देते हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के बाद तो ईवीएम और चुनाव प्रक्रिया पर इन विपक्षी दलों के हमले और तीखे हो गए हैं। अब तक ईवीएम में खामी बताकर अपनी नाकामी पर पर्दा डालने वाले राजनैतिक दलों ने तो इस बार पूरी चुनाव प्रक्रिया को ही दूषित बताते हुए देश के मतदाताओं में भ्रम डालने का प्रयास किया। उन्होंने मतदाता सूचियों से बड़ी तादाद में नाम काटने या नाम जोड़ने, मतदान बंद होने के बाद मत प्रतिशत बढ़ने और ईवीएम हैकिंग को लेकर जिस तरह के सवाल उठाए उसने चुनाव प्रक्रिया से जुड़े पूरे तंत्र को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया।

संभवतया मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर आखिरी बार पत्रकारों से बातचीत करने के लिए आए राजीव कुमार ने दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के अवसर पर इन तमाम सवालों का सिलसिलेवार ढंग से जवाब दिया और पत्रकारों को पूरी प्रक्रिया बताई। चुनाव को लेकर हाल फिलहाल सबसे गंभीर सवाल मतदाता सूचियों से किसी दल विशेष के समर्थकों के नाम काटने और किसी दल विशेष से समर्थकों के नाम जोड़ने को लेकर उठ रहे हैं। इसको लेकर सीईसी राजीव कुमार ने बताया कि चुनाव आयोग हर साल मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का कार्य करता है। इसकी सूचना प्रत्येक राजनैतिक दल को दी जाती है। प्रत्येक बूथ पर मतदाता सूचियों का प्रकाशन किया जाता है। किसी भी मतदाता का नाम काटने या नाम बढ़ाने की एक निश्चित प्रक्रिया होती है जिसका पालन किया जाता है। राजनैतिक दल इन बूथों पर अपने अभिकर्ता बना सकते हैं। इसके अलावा इस सबकी सूचना सभी राजनैतिक दलों को नियमित रूप से दी जाती है। उन्होंने बिना नाम लिए कहा कि कुछ लोग 50 हजार वोट काटे जाने के आरोप लगा रहे हैं, एक साथ किसी क्षेत्र में इतने वोट कम होना अव्यवहारिक है। उन्होंने मतदाता सूचियों में हेरफेर का आरोप लगाने वालों से अपील की कि यदि अगर उन्हें लगता है कि कहीं गड़बड़ी हुई है तो उसकी स्पष्ट शिकायत करें, उस पर निश्चित तौर पर कार्रवाई की जाएगी। यूं ही आरोप लगाना ठीक नहीं है।

लोकसभा चुनाव के बाद एक खबर काफी चर्चा में रही जिसमें दावा किया जा रहा था कि जिन वोटों की गिनती हुई है उनकी संख्या ईवीएम में डाले गए कुल वोटों से तकरीबन पांच लाख अधिक है। इस समाचार के सामने आते ही लोगों में तरह-तरह की चर्चाएं होने लगी थीं। इस समाचार का जिक्र करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि जैसे ही यह समाचार उनके संज्ञान में आया तो अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया गया कि ईवीएम के अलावा बहुत से लोग डाक मतपत्रों के जरिए भी अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। यह अन्तर पोस्टल बैलेट को न जोड़ने के कारण आ रहा है। उन्होंने कहा कि इसके बाद संबंधित पोर्टल से उस समाचार को हटा दिया गया लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं की गई इस कारण जो नुकसान होना था वह तो हो गया।

मतदान की समाप्ति के कुछ घण्टों बाद मत प्रतिशत में पांच से आठ प्रतिशत तक की बढ़ोतरी को लेकर उठे सवालों का भी उन्होंने बड़े ही तार्किक ढंग से जवाब दिया। उन्होंने बताया कि देश में लगभग साढ़े दस लाख मतदेय स्थल (पोलिंग बूथ) होते हैं। प्रत्येक मतदेय स्थल पर कम से कम चार मतदान कर्मी नियुक्त किए जाते हैं। इस तरह मतदान प्रक्रिया में 45 से 50 लाख कर्मचारी लगे होते हैं। ये मतदान कर्मी अलग अलग विभागों के होते हैं और सामान्य तौर पर एक दूसरे से अपरिचित होते हैं। ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में कर्मचारियों को प्रभावित कर पाना असंभव है। जहां तक मतदान समाप्त होने के बाद मत प्रतिशत में बढ़ोतरी का सवाल है तो मतदान समाप्ति के समय पोलिंग बूथ पर मौजूद पीठासीन अधिकारी अत्यंत व्यस्त होते हैं। उन्हें ईवीएम, बैलेट यूनिट, बैटरी आदि को सील करना होता है और साथ ही बूथ पर मौजूद विभिन्न प्रत्याशियों के अभिकर्ताओं को फार्म 17ग देना होता है जिसमें उस बूथ पर पड़े वोटों का पूरा लेखा-जोखा होता है। उन्होंने कहा कि अत्यंत व्यस्तता के चलते बहुत से पीठासीन अधिकारी और सेक्टर मजिस्ट्रेट तत्काल पूरे आंकड़े नहीं दे पाते। लेकिन जब मतदान कर्मियों का दल मशीनों को जमा करने संग्रह केंद्र पहुंचता है तो वह ईवीएम के साथ मतपत्र लेखा (फार्म 17ग) की प्रति भी देता है। इनके आधार पर रात तक सारे आंकड़े सभी राजनैतिक दलों के साथ साझा करते हुए वेब साइट पर अपलोड किए जाते हैं। उन्होंने बताया कि बहुत से पोलिंग बूथ दूरदराज के क्षेत्रों में होते हैं इसलिए उनके आंकड़े मिलने में देरी हो जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि मतदान प्रक्रिया के समाप्त होते ही साढ़े दस लाख पोलिंग बूथों से आंकड़े जमा करके उसकी सटीक सूचना तुरन्त दे पाना असंभव है।

मत प्रतिशत में हेरफेर की किसी भी संभावना को सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने साफ किया मतदान प्रक्रिया समाप्त होने के बाद प्रत्येक मतदेय स्थल पर पीठसीन अधिकारी वहां मौजूद सभी पोलिंग एजेण्ट को मतपत्र लेखा (फार्म 17ग) की एक प्रति उपलब्ध कराते हैं। इसमें ईवीएम में पड़े वोट आदि का पूरा विवरण होता है। मतगणना के दिन प्रत्याशी फार्म 17ग साथ लेकर आते हैं और इनका मिलान करने के बाद ही ईवीएम से वोटों क गिनती की जाती है। फार्म 17ग और ईवीएम में दर्ज वोटों में किसी भी प्रकार का अन्तर होने पर उस मशीन की गणना नहीं की जाती है। ईवीएम की हैकिंग को लेकर उन्होंने साफ किया कि न्यायालय ने भी मान लिया है कि ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता है।

अगले महीने 18 फरवरी को सेवानिवृत्त होने से पहले अपनी आखिरी पत्रकार वार्ता में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने चुनाव की शुचिता को लेकर उठाए जा रहे सवालों के काफी तार्किक तरीके से जवाब दिए। उन्होंने कहा कि बीते चार वर्षों में देश के 30 राज्यों में विधानसभा चुनाव करवाए हैं। इन चुनावों में 15 अलग-अलग दलों ने सर्वाधिक सीटें हासिल की हैं। लेकिन इसके बाद भी इस बात की उम्मीद कम ही है कि राजनैतिक दल ईवीएम और चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाने बंद कर देंगे। क्योंकि जितनी बातें सीईसी राजीव कुमार ने बताई हैं कमोबेश उन सबसे राजनेता भली-भांति परिचित हैं। वे तो अपनी नेतृत्व क्षमता पर उठने वाले सवालों को दबाने के लिए अपनी नाकामी का ठीकरा ईवीएम और चुनाव आयोग के सिर फोड़ते हैं।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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