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एसएमसी अस्पताल में लगाया गया बिना तार वाला पेसमेकर

एसएमसी अस्पताल में लगाया गया बिना तार वाला पेसमेकर

एसएमसी अस्पताल में 18 मई को 72 वर्षीय महिला को आपातकालीन कक्ष में भर्ती किया गया | वह अपने घर में चक्कर आने से गिरकर बेहोश हो गयी थी। अस्पताल में उनका ECG किया गया जिसमे पाया गया की उनके दिल की धड़कन बहुत कम लगभग 30 प्रति मिनट और अनियमित थी | ECG के आधार पर मरीज को सिक साइनस सिंड्रोम की बीमारी है, ये पता चला।

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इस बीमारी में जो हृदय के अंदर साइनस नोड है जंहा पर हृदय की गति बनती है वह ख़राब हो जाता है, इसलिए हृदय गति बराबर बन नहीं पाती और इसीलिए हृदय की धड़कन कम हो जाती है। हृदय की धड़कन कम होने से मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है जिससे मरीज बेहोश होकर गिर जाता है एवं इससे उनके जान को भी खतरा हो सकता है।

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ऐसे मरीज के हृदय में परमानेंट पेसमेकर लगाने की आवश्यकता होती है जिससे 2 तार हृदय के दाहिने ओर डालते है, जो एक बैटरी से जुड़े होते है जिसे कॉलर बॉन के पास स्किन के निचे लगाया जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग 8-10 टाँके लगाए जाते है। पुरानी पद्धति वाले पेसमेकर में एक मोटी सुई जो फेफड़े के पास नली जो हृदय से जुडी होती है उसमे डाली जाती है।

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सुई डालते समय फेफड़े में छेड़ होकर हवा इकठ्ठा हो जाती है जिसे न्यूमोथोरैक्स कहते है। इसी सुई से फेफड़े के आस पास की नस को चोट होने से वंहा रक्तस्त्राव होता है इसे हिमोथोरैक्स कहते है। जंहा पर टांके लगते है वंहा पर संक्रमण होने की भी सम्भावना होती है।

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इन सभी परेशानी से बचने के लिए हमने इस मरीज में बगैर तार वाला पेसमेकर डालने का निर्णय लिया । इस नयी प्रक्रिया में पैर के नस के माध्यम से एक लम्बा ट्यूब हृदय के दाहिने ओर डाला जाता है । इस नली के साथ एक डिलीवरी सिस्टम आता है जिसकी मदद से लीडलेस पेसमेकर जो की एक बटन के माप का होता है, उसे हृदय के राइट वेंट्रिकल के दिवार पर लगा दिया जाता है। इस प्रक्रिया में करीब आधा घंटा लगता है, इस नयी प्रक्रिया में जो पुरानी पद्धति वाले पेसमेकर में कम्प्लीकेशन होते थे, जैसे पेसमेकर के जगह पर संक्रमण, फेफड़े के चारो ओर रक्त या हवा इकठ्ठा होना इससे बचा जा सकता है। इस प्रक्रिया के बाद मरीज को अगले दिन छुट्टी दी गयी।

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